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ग्राम पंचायत कुआं में फर्जी बिलों का खेल साहू हार्डवेयर कुआं की दुकान बिना अस्तित्व के लग रहे बिल, बिना दुकान के हों रहा भुगतान
कटनी | मध्यप्रदेश के ग्रामीण अंचलों में जब-जब विकास कार्यों की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं, तो अक्सर ग्राम पंचायतों का नाम सबसे पहले सामने आता है। पंचायतें लोकतंत्र की पहली सीढ़ी कही जाती हैं, लेकिन जब इन्हीं पंचायतों में भ्रष्टाचार का जाल बुना जाने लगे ,तो गाँव की जनता के सपनों पर कुठाराघात होता है। ताज़ा मामला ग्राम पंचायत कुँआ का है, जहाँ “साहू हार्डवेयर कुआं” नामक एक दुकान, जो वास्तव में गाँव में अस्तित्व ही नहीं रखती, के फर्जी बिल लगाकर पंचायत को चुना जा रहा है। यह मामला केवल एक दुकान या एक पंचायत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन अनगिनत कहानियों का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ सिस्टम और जनप्रतिनिधि मिलकर सरकारी पैसों की बंदरबाँट कर रहे हैं।
फर्जी बिलों की कहानी
ग्राम पंचायत कुआं के विकास कार्यों के नाम पर जो बिल-पावती लगाई गई, उसमें साहू हार्डवेयर कुआं का नाम प्रमुखता से आता है। इन बिलों में सीमेंट, सरिया, बालू, गिट्टी, पाइप, बिजली के सामान, यहाँ तक कि मिठाई और रोज़मर्रा की वस्तुओं तक का भुगतान दिखाया गया है। अगर दुकान नहीं है तो स्टाम्प पेपर, बिलबुक और जीएसटी नंबर कहाँ से आया? पंचायत सचिव और सरपंच के बीच मिलीभगत से ये फर्जी दस्तावेज़ बनाए गए और भुगतान सरकारी खाते से करा लिया गया। यह एक सुनियोजित ठगी है, जहाँ “नकली सप्लायर” बनाकर सरकारी धन की लूट की गई।
सरपंच और सचिव की भूमिका
पंचायत स्तर पर बिल पास करने की प्रक्रिया में सबसे अहम जिम्मेदारी सरपंच और सचिव की होती है।सरपंच, ग्रामसभा और पंचायत की स्वीकृति के बिना भुगतान नहीं कर सकता। सचिव, बिलों की एंट्री, रजिस्टर और प्रावधानों की जिम्मेदारी निभाता है। फर्जी दुकान से सामान खरीदा दिखाया गया।
क्या कहते हैं कानूनी प्रावधान
भारतीय दंड संहिता के आधार पर,धारा 420 जनता और शासन को धोखा देना। धारा 467, 468, 471 जालसाजी और फर्जी दस्तावेज़ बनाना और उपयोग करना, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत भी सरपंच और सचिव दोषी हो सकते हैं। अगर प्रशासन चाहे तो तुरंत FIR दर्ज कराकर सख्त कार्यवाही की जा सकती है। ग्राम पंचायत कुआं में साहू हार्डवेयर कुआं के नाम से हो रहे फर्जी बिल, स्थानीय स्वशासन की साख पर गहरा सवाल खड़ा करते हैं। यह सिर्फ वित्तीय गड़बड़ी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों में दीमक लगाने जैसा अपराध है। अब देखना यह होगा कि जिला पंचायत सीईओ शिशिर गेमावत आखिर क्या कार्यवाही करते है या फिर सचिव और सरपंच को संरक्षण प्रदान करते हैं।
🖋️ पुलिसवाला न्यूज़ कटनी से पारस गुप्ता की रिपोर्ट
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