नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित आदि महोत्सव 2025 में बस्तर के पारंपरिक व्यंजनों ने दिल्लीवासियों का दिल जीत लिया है। बीजापुर जिले के मुरकीनार गांव के निवासी राजेश यालम ने महोत्सव में बस्तरिया फूड का एकमात्र स्टॉल स्थापित किया है, जहां महुआ दारू और चापड़ा चटनी (चींटियों की चटनी) विशेष आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।
राजेश यालम, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र से आते हैं, ने अपने स्टॉल पर बस्तर के 27 विभिन्न पारंपरिक व्यंजनों की प्रस्तुति की है। हालांकि, महुआ दारू और चापड़ा चटनी ने विशेष लोकप्रियता हासिल की है। महोत्सव के शुरुआती दो दिनों में ही दिल्लीवासियों ने 50 लीटर महुआ दारू और 25 किलोग्राम चापड़ा चटनी का आनंद लिया। इन व्यंजनों का अनोखा स्वाद और पारंपरिक महत्व लोगों को आकर्षित कर रहा है।
आदि महोत्सव 2025, जो 16 से 24 फरवरी तक आयोजित हो रहा है, का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया। इस महोत्सव का उद्देश्य देशभर के आदिवासी समुदायों की कला, संस्कृति, शिल्प और व्यंजनों को प्रदर्शित करना है। राजेश यालम का स्टॉल विशेष रूप से बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को उजागर कर रहा है।
राजेश बताते हैं कि महुआ दारू बस्तर के आदिवासी समुदायों का पारंपरिक पेय है, जिसे महुआ फूलों से तैयार किया जाता है। वहीं, चापड़ा चटनी लाल चींटियों और उनके अंडों से बनाई जाती है, जो अपने तीखे स्वाद और स्वास्थ्यवर्धक गुणों के लिए प्रसिद्ध है। दिल्ली के लोग इन व्यंजनों के अनोखे स्वाद का आनंद ले रहे हैं और बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू हो रहे हैं।
महोत्सव में शामिल एक दिल्ली निवासी ने बताया, “मैंने पहली बार महुआ दारू और चापड़ा चटनी का स्वाद चखा। यह वास्तव में लाजवाब है। बस्तर की संस्कृति और व्यंजनों के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा।”
आदि महोत्सव 2025 में देशभर के विभिन्न आदिवासी समुदायों के शिल्प, कला, संगीत और व्यंजनों का संगम देखने को मिल रहा है। इस महोत्सव के माध्यम से आदिवासी संस्कृति की विविधता और समृद्धि को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करने का प्रयास किया जा रहा है।
राजेश यालम जैसे उद्यमियों के प्रयासों से न केवल बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि स्थानीय समुदायों को आर्थिक सशक्तिकरण का अवसर भी प्राप्त हो रहा है। आदि महोत्सव जैसे आयोजन आदिवासी समुदायों की पहचान और संस्कृति को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
यदि आप भी बस्तर के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखना चाहते हैं और आदिवासी संस्कृति के विविध रंगों से रूबरू होना चाहते हैं, तो 24 फरवरी तक चलने वाले इस महोत्सव में अवश्य शामिल हों।
( राजीव खरे ब्यूरो चीफ छत्तीसगढ़)
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