डिंडौरी मध्यप्रदेश
डिंडौरी (मध्यप्रदेश) – आदिवासी बहुल डिंडौरी जिले में शिक्षा व्यवस्था पर सवालों का अंबार खड़ा हो गया है, जहां गरीब आदिवासी बच्चों की शिक्षा और सुरक्षित भविष्य दांव पर लगा हुआ है। रोजाना टूट-टूटकर गिरने वाली आदर्श एकलव्य आवासीय विद्यालय की छतें छात्रों की जान पर बन आई हैं। छात्र हर दिन अपनी जान को खतरे में डालकर खंडहरनुमा भवन में पढ़ाई करने को मजबूर हैं, और जिम्मेदार अधिकारी आराम फरमाते नजर आ रहे हैं!
जब से जिले के सहायक आयुक्त संतोष शुक्ला ने पदभार संभाला है, तब से शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार और लापरवाही के काले बादल मंडराने लगे हैं। बच्चों को मिलने वाली बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखकर, इन मासूमों के हक को छीना जा रहा है। वहीं, अधिकारियों की मौज-मस्ती अपने चरम पर है।
जर्जर भवन बना जानलेवा:
सूत्रों के मुताबिक, शहपुरा स्थित आदर्श एकलव्य आवासीय विद्यालय के पुराने भवन की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि छतें टूट-टूटकर गिर रही हैं। बुधवार की रात का मंजर तो खौफनाक था, जब भवन का एक बड़ा हिस्सा धराशाई हो गया। गनीमत रही कि बच्चे बाल-बाल बच गए, लेकिन अब किसी बड़े हादसे की आशंका ने अभिभावकों की नींद उड़ा दी है।
नई इमारत तैयार, लेकिन छात्र अब भी खंडहर में!
लगभग 40 करोड़ों की अधिक लागत से पिपराड़ी गांव में आलीशान नया विद्यालय और छात्रावास भवन बनकर तैयार है, मगर राजनीतिक रस्साकशी के चलते छात्रों को उसमें प्रवेश नहीं मिल रहा। 741 छात्र-छात्राएं अभी भी जर्जर और जानलेवा भवन में अपनी पढ़ाई और रहने की व्यवस्था करने को विवश हैं।
राजनीति के फेर में फंसा बच्चों का भविष्य:
नवीन भवन का निर्माण तो हो गया है, लेकिन राजनीतिक खेल और अधिकारियों की निष्क्रियता ने इन छात्रों के सुरक्षित और सुविधाजनक भविष्य को खतरे में डाल दिया है। छात्रों और उनके परिवारों की मांग है कि इन्हें जल्द से जल्द नए भवन में स्थानांतरित किया जाए, ताकि वे भयमुक्त वातावरण में पढ़ाई कर सकें।
छात्रों की जिंदगी पर मंडरा रहा खतरा, प्रशासन मौन:
प्रशासनिक लापरवाही के कारण छात्रों की जिंदगी खतरे में पड़ गई है। कई बार शिकायतों के बावजूद, जिम्मेदार अधिकारी बेखबर बैठे हैं। नवीन भवन में जल्द प्रवेश कराने की मांग करते हुए, छात्र अब न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
क्या कह रहे हैं जिम्मेदार?
सहायक आयुक्त संतोष शुक्ला का कहना है कि, “आधे छात्र-छात्राओं को नए भवन में शिफ्ट कर दिया गया है, और कल तक सभी को शिफ्ट कर दिया जाएगा।” लेकिन सवाल उठता है कि जब नया भवन तैयार है, तो शेष छात्रों को क्यों खतरनाक भवन में रहने पर मजबूर किया जा रहा है?
सवाल उठता है, क्या प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है? क्या मासूम बच्चों की जान से खेलना प्रशासन की प्राथमिकता बन गया है?
समय रहते अगर कार्रवाई नहीं की गई, तो इसका खामियाजा छात्रों और उनके परिवारों को भुगतना पड़ सकता है।
रिपोर्ट-अखिलेश झारिया
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