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जीवन में सम्यग्दर्शन प्राण वायु समान है:- मुनिराज ऋषभरत्नविजय जी

इंदौर मध्य

प्रदेश श्री नवपाद ओलीजी के छठवें दिन मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने छठा पद सम्यग्दर्शन के विषय पर प्रवचन दिया। जिसके बिना ज्ञान भी प्रमाणभूत नहीं, जिसके बिना चारित्र भी निष्फल है, जिसके बिना मोक्ष भी मिलता नहीं, उस सम्यग्दर्शन गुण को हम नमन करते हैं.. जो श्रद्धान, लक्षण, भूषण वगैरह अनेक भेदों से शास्त्र में वर्णित होता है, उस सम्यग्दर्शन गुण को हम नमन करते हैं….
बनिये को जंगल में पांच डाकुओं ने पकड़ा। दूसरा कुछ नहीं मिलने पर डाकुओं के सरदार ने सौ रुपये का चेक लिखने के लिए कहा। बनिये ने अभी तो ‘100′ ऐसा लिखा कि, वहाँ दूसरे डाकू ने अपने लिए एक शून्य बढ़ाने के लिए कहा, इस प्रकार प्रत्येक के कहने पर शून्य बढ़ाते जाने पर रकम हो गई 10,00,000 (दस लाख) तब बनिये ने हाथ-पैर जोड़कर अपने पर दया करने की विनंती की। सभी ने दया लाकर पूछा- तुझे क्या चाहिए? बनिये ने कहा-आप सभी ने एक-एक शून्य बढ़ाने का आग्रह किया तो वह भले रहे, मैं मात्र उस एक को मिटा देता हूँ।
बोलो, आगे का एक जाने के बाद का मूल्य क्या रहेगा? कहो ज़ीरो! बुद्धि हाँ शून्य जितने चाहे इकट्ठे हों, लेकिन उसके आगे एक वगैरह संख्या ना हो, तो वैल्यू कितनी? और आगे एक हो और पीछे ज़ीरो लिखो, तो ? दस। उसके पीछे ज़ीरो लिखो, तो? सौ। बात यह है – ज्ञान, चारित्र, ब्रह्मचर्य वगैरह सभी का मूल्य ज़ीरो है। यदि आगे सम्यक्त्व का एक लिखा हो, तो उन सभी की गजब की ताकत है। अरे! दस-दस गुना बढ़ती जाती है। लेकिन यदि सम्यक्त्व नहीं, तो सभी इकट्ठे होकर भी ज़ीरो हैं।
प्रभु के वचन पर श्रद्धा और उसके अनुसार ही आराधना करने की तत्परता इंजिन है। बाकी की सभी आराधना रूपी डिब्बे चाहे अनेक पुण्य- संवर-निर्जरा से भरे हुए हों, तो भी उस इंजन के पीछे जुड़े हुए हों, तो ही मोक्ष नाम के दिल्ली स्टेशन को ले जाए… अन्यथा ?
इसीलिए ही अपेक्षा से कहा जा सकता है कि, पूर्व करोड़ बरस चारित्र पालना उतना कठिन नहीं, नौ पूर्व तक पढ़ने का पुरुषार्थ इतना कठिन नहीं, विशुद्ध ब्रम्हचर्य इतना कठिन नहीं, मासक्षमण के पारणे मासक्षमण करना इतना कठिन नहीं, अरे! दुश्मन को दरियादिली से क्षमा देनी या जिनालय निर्माण से लगाकर बड़े-बड़े सुकृतों में लाखों रुपए खर्च करने… इतना कठिन नहीं जितना कठिन है अपनी बुद्धि-अपने अहंकार को हटाकर भगवान के वचन अनुसार ही सब कुछ करने की तैयारी – तत्परता… इससे ही वास्तविक हित होगा ऐसी श्रद्धा… क्योंकि, सम्यक्त्व की गैर हाजिरी में यह सब कुछ अनंती बार कर चुके हैं। फिर भी कोई लाभ हुआ नहीं… सम्यक्त्व की गैर- हाजिरी में अनंती बार चारित्र लेकर विशुद्ध संयम पालने के बावजूद कुछ कल्याण हुआ नहीं और सम्यक्त्व से युक्त चारित्र से अधिक से अधिक आठ भव में मोक्ष हो जाता है। राजेश जैन युवा ने बताया की
इसीलिए ही कहा जा सकता है, धार्मिक बनना सरल है, लेकिन समकिती बनना खूब कठिन है। सम्यक्त्व सिवाय किसी भी आराधना से, संसार में अधिक से अधिक अर्ध पुद्गलपरावर्त जितना ही बाकी है, ऐसा कहा जा सकता नहीं। और सम्यक्त्व आने के बाद संसार इतने से अधिक कदापि रहता नहीं। प्रभु के वचन को काना- मात्रा के भी फर्क बिना स्वीकार लेने से रोकता है ‘मेरी बुद्धि में बैठे उतना ही मानूँ’ इत्यादि रूप से दुर्बुद्धि पैदा कराता उसे भी पैदा करता मिथ्यात्व है।
सम्यग्दर्शन के पाँच लाभ हैं। (1) पाप से मुक्ति, (2) फाँसी अर्थात् जन्म-मरण से मुक्ति, (3) आठों कर्मों के बंधन से मुक्ति, (4) सातों भयों से मुक्ति एवं (5) मृत्यु की भी मृत्यु।

मुनिवर का नीति वाक्य
“सम्यग्दर्शन जिसके पास उसका नहीं होगा सर्वनाश”

रिपोर्ट- अनिल भंडारी

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