डिंडौरी मध्यप्रदेश
रिपोर्ट अखिलेश झारिया
नगर परिषद शहपुरा में फर्जी मस्टर नियुक्तियों का एक बड़ा और सुनियोजित घोटाला सामने आया है। इस भ्रष्टाचार का खुलासा पूर्व पार्षद राजेश चौधरी ने किया है, जिन्होंने सूचना के अधिकार (RTI) से प्राप्त दस्तावेजों सहित विस्तृत शिकायत कलेक्टर को सौंपते हुए CBI या EOW जांच की मांग की है।
प्रमुख आरोप और खुलासे:
फर्जी प्रस्ताव और गुपचुप नियुक्तियां:
09 अप्रैल 2025 को हुई परिषद की पीआईसी बैठक में प्रस्ताव क्र. 16 को दिखाकर मस्टर कर्मचारियों की नियुक्ति दर्शाई गई, जबकि उस बैठक के एजेंडे में ऐसा कोई विषय नहीं था। बिना पार्षदों की सहमति के गुप्त रूप से प्रस्ताव तैयार किया गया।
RTI दस्तावेजों से खुली पोल:
RTI के 58 प्रश्नों में सामने आया कि जिन पदों के लिए सीमित नियुक्ति स्वीकृत थी, वहां संख्या से अधिक या कम कर्मचारी भर्ती किए गए। जल प्रदाय में 6 की जगह 8 और फायर ब्रिगेड में 4 की जगह सिर्फ 2 कर्मचारियों को रखा गया।
बिना योग्यता और प्रशिक्षण के भर्ती:
मस्टर पर नियुक्त कई कर्मचारी शैक्षणिक योग्यता व तकनीकी प्रशिक्षण से वंचित हैं। फायर ब्रिगेड और वाहन चालक जैसे संवेदनशील पदों पर अयोग्य लोगों की नियुक्ति की गई, जिससे जन-सुरक्षा खतरे में पड़ गई।
पुराने कर्मचारियों को हटाया, पैसे लेकर नई भर्ती:
पुराने मस्टर कर्मियों को आर्थिक तंगी का बहाना बनाकर बाहर कर दिया गया, जबकि नए चेहरों को रुपयों के बदले अंदर किया गया। वेतन नहीं मिलने पर कर्मचारियों से 2 लाख रुपये की रिश्वत मांगे जाने का भी गंभीर आरोप।
अपने पुत्र को नियुक्त कर निकाली सैलरी:
शाखा प्रभारी शिवकुमार यादव ने अपने ही पुत्र को जल प्रदाय विभाग में मस्टर पर रखा और स्वयं हस्ताक्षर कर उसका वेतन जारी किया। यह नैतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का जीवंत उदाहरण है।
तारीखों में गड़बड़ी – दस्तावेजों से छेड़छाड़:
प्रभारी सीएमओ ने 1 मई को स्वीकृति दी, जबकि शाखा प्रभारी ने उसी फाइल में 30 अप्रैल को पहले ही कार्यदिशा दी। यह दर्शाता है कि दस्तावेजों के साथ हेरफेर कर प्रक्रिया को उल्टा-पुल्टा किया गया।
ठेकेदारों को लाभ, जनता का नुकसान:
नियुक्त कर्मचारी ठेकेदारों के निजी काम में लगाए गए हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि यह घोटाला सिर्फ रोजगार नहीं, ठेकेदारी में हिस्सेदारी के लिए भी किया गया।
आरक्षण रोस्टर व सूचना प्रणाली की अवहेलना:
शासन के निर्देशों के बावजूद न तो रोस्टर का पालन किया गया, न ही नियुक्तियों की कोई सार्वजनिक सूचना जारी की गई। यह पूरा मामला पूर्व नियोजित भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।
पुराने कर्मचारी भटक रहे, नए बिना प्रमाणपत्र पाते वेतन
पुराने मस्टरकर्मी महीनों से वेतन के लिए कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन न सुनवाई है, न समाधान। वहीं बिना योग्यता के भर्ती नए कर्मचारी समय पर भुगतान ले रहे हैं।
पूर्व पार्षद राजेश चौधरी ने मांग की है कि इस घोटाले की CBI या EOW से निष्पक्ष जांच करवाई जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो वे उच्च न्यायालय या लोकायुक्त का दरवाजा खटखटाएंगे।
नगर परिषद शहपुरा में सामने आया यह घोटाला सिर्फ आर्थिक भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि प्रशासनिक अमानत में खयानत का मामला है। यदि दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो इससे जन विश्वास और लोकतांत्रिक मूल्यों को गहरी क्षति पहुंचेगी।
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