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नक्सल खौफ से “बस्तर ओलंपिक” तक बस्तर की प्रगति की एक कठिन पर प्रेरक यात्रा

छत्तीसगढ़

जगदलपुर 29 दिसंबर 2024
बस्तर, जो कभी नक्सल खौफ और हिंसा का पर्याय था, आज बदलाव, खेल और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन गया है। बस्तर ओलंपिक, अबूझमाड़ के ताइक्वांडो विजेता और कारी कश्यप जैसी प्रतिभाओं ने इस क्षेत्र को राष्ट्रीय पहचान दी है। पैरा-मिलिटरी बलों द्वारा खेलों को बढ़ावा देने और स्थानीय प्रतिभाओं को मंच देने की कोशिशों ने क्षेत्र में शांति और प्रगति की एक नई लहर पैदा की है।

बस्तर का इतिहास नक्सली हिंसा और विकास की कमी से जुड़ा रहा है। कभी गरीबी, अशिक्षा और प्रशासनिक उपेक्षा ने नक्सलियों को क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका दिया, और नक्सलियों ने दशकों तक स्थानीय आदिवासी समुदायों को हिंसा और शोषण का शिकार बनाया। स्कूल, सड़कों और अस्पतालों जैसे विकास कार्यों को बाधित किया। फिर सरकार ने सुरक्षा बलों और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर नक्सल प्रभाव को कमजोर किया, और विकास योजनाओं और शिक्षा के माध्यम से लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा गया।
अब बस्तर बदल रहा है कभी नक्सल हिंसा का पर्याय कहे जाने वाले बस्तर में “बस्तर ओलंपिक” का आयोजन इस क्षेत्र में शांति और सकारात्मक बदलाव का एक बड़ा उदाहरण है।बस्तर ओलंपिक का यह वार्षिक खेल उत्सव बस्तर के पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2024 में इसमें 1.5 लाख से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।खो-खो, कबड्डी, गिल्ली-डंडा, तीरंदाजी और दौड़ जैसे खेलों के जरिए आदिवासी संस्कृति और समुदाय को इसमें जोड़ा गया। छत्तीसगढ़ के छोटे से गांव की रहने वाली कारी कश्यप ने तीरंदाजी में रजत पदक जीतकर न केवल बस्तर बल्कि पूरे देश को गर्व महसूस कराया। कारी ने बस्तर ओलंपिक में भाग लेकर अपने कौशल को निखारा और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि कारी ने बस्तर ओलंपिक के माध्यम से जीवन में आगे बढ़ने का अवसर पाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं “मन की बात” में बस्तर ओलंपिक की तारीफ करते हुए इसे शांति और विकास की दिशा में एक बड़ी पहल बताया। उन्होंने कहा कि इस आयोजन ने बस्तर को नक्सल खौफ से निकालकर खेल और विकास का प्रतीक बना दिया है।


अबूझमाड़, जो कभी नक्सल गतिविधियों का केंद्र था, अब खेल के क्षेत्र में एक नई पहचान बना रहा है।नारायणपुर जिले के आदिवासी युवाओं ने मलखंब में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हैं। इन विजेताओं ने साबित किया कि सही मंच और मार्गदर्शन से किसी भी क्षेत्र में पहचान बनाई जा सकती है।
बस्तर में शांति के साथ खेलों के विकास में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और अन्य सुरक्षा बलों का भी योगदान है। जिन्होंने क्षेत्र में खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण शिविर और प्रतियोगिताएं आयोजित कीं।आदिवासी युवाओं को खेल उपकरण, कोचिंग और अन्य संसाधन प्रदान किए गए, जिससे उनका आत्मविश्वास और प्रदर्शन बेहतर हुआ।

खेल के ज़रिये बस्तर में शांति और विकास की इस यात्रा में एक तरफ़ न सिर्फ़ खेलों ने स्थानीय लोगों और प्रशासन के बीच विश्वास बहाल किया। युवाओं को हिंसा से दूर रखकर उन्हें विकास और शिक्षा की ओर प्रेरित किया, वहीं कारी कश्यप और ताइक्वांडो में महिला खिलाड़ियों की भागीदारी ने क्षेत्र में महिलाओं के लिए नई संभावनाएं खोलीं। पारंपरिक खेलों और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित किया और आदिवासी समुदायों में आत्मगौरव और उत्साह बढ़ा। कारी कश्यप और मलखंब विजेताओं ने बस्तर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, और साबित किया कि खेल और शिक्षा नक्सल प्रभावित इलाकों में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।

बस्तर ओलंपिक और अन्य खेल गतिविधियों ने क्षेत्र को नई पहचान दी, जिससे पर्यटन और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। बस्तर का सफर नक्सल खौफ से शांति और विकास तक प्रेरणादायक है। बस्तर ओलंपिक, कारी कश्यप की सफलता और अबूझमाड़ के मलखंब विजेताओं ने यह साबित कर दिया है कि जब युवाओं को सही अवसर और मंच दिया जाए, तो वे किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की सराहना तथा विष्णु देव सरकार के प्रयासों व सहयोग से बस्तर ने खेल और संस्कृति के माध्यम से न केवल खुद को बदला, बल्कि देशभर में एक मिसाल पेश की है। यह बदलाव दिखाता है कि हिंसा और शोषण के चक्र को तोड़कर, शांति और विकास की ओर बढ़ा जा सकता है। बस्तर अब सिर्फ संघर्ष की कहानी नहीं, बल्कि उम्मीद, खेल और सफलता की कहानी बन चुका है।

( राजीव खरे चीफ ब्यूरो छत्तीसगढ़)

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