Policewala
Home Policewala बस्तर: नक्सलवाद के दंश और अराजकता का दलदल
Policewala

बस्तर: नक्सलवाद के दंश और अराजकता का दलदल

बस्तर

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सलवाद दशकों से एक ऐसा जटिल मुद्दा बना हुआ है, जो न केवल सुरक्षा बलों और प्रशासन के लिए चुनौती है, बल्कि वहां के आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के लिए भी संकट बन गया है। हाल ही में नारायणपुर में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़, जिसमें एक जवान शहीद हुआ, इस संघर्ष की क्रूर वास्तविकता को फिर उजागर करती है। इस मुठभेड़ में नक्सलियों के डंप से रसोई गैस सिलेंडर, वेल्डिंग उपकरण, हथियार बनाने की मशीन और अन्य सामग्रियों का मिलना यह दिखाता है कि नक्सली अपनी रणनीतियों को लगातार आधुनिक और व्यवस्थित बना रहे हैं।

बस्तर: नक्सलवाद का गढ़

बस्तर क्षेत्र, जो छत्तीसगढ़ के सबसे घने जंगलों और दुर्गम इलाकों में से एक है, नक्सल गतिविधियों का मुख्य केंद्र है। 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ यह आंदोलन 1980 के दशक तक बस्तर के घने जंगलों में पहुंच गया। आदिवासी समुदायों के शोषण, जमीन छीनने और वन संसाधनों पर कब्जे के विरोध में शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे हिंसक रूप लेता गया।

बस्तर में नक्सलियों की मौजूदगी सिर्फ हिंसा तक सीमित नहीं है। उन्होंने स्थानीय समुदायों पर अपनी गहरी पकड़ बना ली है। नक्सली, सरकार और कॉरपोरेट हस्तक्षेप के खिलाफ आदिवासियों के गुस्से को हथियार बनाकर उन्हें अपने संगठन में शामिल करते हैं।

बड़ी मुठभेड़ें और जवानों की शहादत

बस्तर में नक्सलवाद से निपटना सुरक्षाबलों के लिए हमेशा जोखिम भरा रहा है। कश्मीर में आतंकवाद की तुलना में बस्तर में नक्सलवाद ने सीआरपीएफ और अन्य सुरक्षाबलों के अधिक जवानों की जान ली है। 2010 में दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में 76 जवानों की मौत हुई थी। यह भारत में अब तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला था।

इसके बाद 2013 में सुकमा जिले के झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला हुआ, जिसमें 27 लोग मारे गए। इनमें वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल और महेंद्र कर्मा भी शामिल थे। ये घटनाएं न केवल नक्सलियों की क्रूरता को दिखाती हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट करती हैं कि क्षेत्र में सुरक्षा बलों की रणनीतियां अक्सर असफल हो जाती हैं।

सलवा जुडूम: समाधान या समस्या?

2005 में शुरू हुआ सलवा जुडूम अभियान सरकार द्वारा आदिवासियों को नक्सलियों के खिलाफ संगठित करने का एक प्रयास था। इस अभियान का नेतृत्व महेंद्र कर्मा ने किया। हालांकि, यह अभियान शुरू से ही विवादों में घिरा रहा। जहां एक ओर इसे नक्सलवाद के खिलाफ एक साहसी कदम माना गया, वहीं दूसरी ओर इसने हजारों आदिवासियों को बेघर कर दिया।

सलवा जुडूम के दौरान गांवों को खाली करवाना, जबरन आदिवासियों को राहत शिविरों में भेजना और निर्दोष लोगों को नक्सल समर्थक बताकर उनके खिलाफ कार्रवाई करना आम हो गया। यह अभियान न केवल असफल रहा, बल्कि इससे क्षेत्र में आदिवासियों का सरकार और सुरक्षाबलों के प्रति भरोसा और कमजोर हो गया।

निर्दोष आदिवासी: पिसते हुए लोग

बस्तर का आदिवासी समुदाय, जो प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है, नक्सलवाद और सरकारी हिंसा के बीच बुरी तरह पिस रहा है। नक्सली जहां उन्हें अपने संगठन में शामिल होने के लिए मजबूर करते हैं, वहीं सुरक्षाबल अक्सर उन्हें नक्सली समर्थक मानकर प्रताड़ित करते हैं।

सरकार के पुनर्वास कार्यक्रमों की धीमी गति और प्रशासनिक लापरवाही के कारण हजारों आदिवासी आज भी अपने गांवों में लौटने का इंतजार कर रहे हैं। उनकी जमीनों पर कब्जा हो चुका है, और वे राहत शिविरों में नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

विभागीय भ्रष्टाचार और वित्तीय शोषण

बस्तर में नक्सलवाद की जड़ें इतनी मजबूत इसलिए हैं क्योंकि कई विभागों में व्यापक भ्रष्टाचार है। इन विभागों के स्थानीय अधिकारी अक्सर आदिवासियों का शोषण करते हैं। नक्सलियों और भ्रष्ट अधिकारियों के बीच अनौपचारिक समझौतों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है।

इस पूरी व्यवस्था में कुछ व्यापारियों और कॉरपोरेट संस्थानों ने भी फायदा उठाया है। जंगलों के खनिज और अन्य संसाधनों का शोषण करते हुए ये लोग करोड़पति बन गए हैं। दूसरी ओर, आदिवासी अपने अधिकारों और संसाधनों से वंचित हैं।

अर्बन नक्सल और उनका प्रभाव

बस्तर में नक्सलवाद को शहरी क्षेत्रों से समर्थन मिलता रहा है। इन्हें अक्सर “अर्बन नक्सल” कहा जाता है। ये लोग बस्तर के जंगलों में नक्सलियों के लिए विचारधारा, रणनीति और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य सरकारी नीतियों और विकास योजनाओं को बाधित करना है।

सुरक्षा निर्देशों का पालन न करना

सुरक्षा बलों की असफलता का एक बड़ा कारण उनके द्वारा सुरक्षा निर्देशों का पालन न करना है। हाल की घटनाओं में यह देखा गया है कि सुरक्षाबल अक्सर बिना पूरी तैयारी के गश्त या ऑपरेशन पर निकलते हैं। आधुनिक उपकरणों और बेहतर रणनीतियों की कमी भी इन असफलताओं को बढ़ाती है।
बस्तर में नक्सलवाद से निपटने के लिए केवल सैन्य कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। इसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है: जिसमें आदिवासियों का विश्वास जीतना, आदिवासी समुदायों के विकास, शिक्षा और रोजगार पर ध्यान देना होगा।भ्रष्टाचार पर रोक लगाना होगा । सलवा जुडूम के कारण विस्थापित आदिवासियों को उनके गांवों में बसाने के लिए और उनके पुनर्वास के लिये प्रभावी कदम उठाने होंगे।एवं सुरक्षा बलों की क्षमता बढ़ाने के लिये आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराते हुए प्रभावी रणनीतियों का उपयोग सुनिश्चित करना होगा। ग़ौरतलब है कि भाजपा की वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और गृहमंत्री विजय शर्मा के नेतृत्व में सुरक्षा बल लगातार आक्रामक रणनीति बनाकर नक्सलियों की मांद में घुसकर हमले कर रहे हैं जिससे राज्य में नक्सली बैकफ़ुट पर आते जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की नियद नेल्लानार योजना नक्सल प्रभावित क्षेत्रों और विशेष पिछड़ी जनजातियों के जीवन में बड़ा बदलाव ला रही है। इस योजना के तहत सुरक्षा कैंपों की स्थापना के साथ सरकार 5 किमी परिधि में बुनियादी सुविधाएँ जैसे आवास, बिजली, पानी, सड़क, स्कूल, सस्ता राशन, और उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर उपलब्ध करा रही है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की पहल से बंद स्कूल फिर से खोले गए हैं और स्वच्छ जल के लिए सोलर पंप लगाए गए हैं। यह योजना न केवल ग्रामीणों का जीवन सुधार रही है, बल्कि नक्सल आतंक के खिलाफ उनका भरोसा और सहयोग भी बढ़ा रही है।

बस्तर में नक्सलवाद का समाधान आसान नहीं है, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। सरकार को एक ओर जहां आदिवासियों के अधिकारों और विकास पर ध्यान देना होगा, वहीं दूसरी ओर नक्सलियों के समर्थन आधार को खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। नारायणपुर जैसी घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि यह लड़ाई न केवल बंदूकों की है, बल्कि दिलों और दिमागों को जीतने की भी है।आदिवासियों के अधिकारों और विकास पर ध्यान देना होगा, वहीं दूसरी ओर नक्सलियों के समर्थन

आधार को खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। नारायणपुर जैसी घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि यह लड़ाई न केवल बंदूकों की है, बल्कि दिलों और दिमागों को जीतने की भी है।

(राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक )

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Categories

Related Articles

डिजिटल अरेस्ट है साइबर क्रिमिनल्स का एक जाल, यदि हम सतर्क व जागरूक रहेंगे तो समझ जाएंगे उनकी चाल।

इंदौर मध्य प्रदेश इंदौर पुलिस की साइबर पाठशाला में Jain Engineer society...

मैहर शक्ति वाहिनी सेवा संघ एनजीओ शीतकालीन कंबल वितरण कार्यक्रम*

मैहर मध्य प्रदेश नर सेवा नारायण सेवा इस सत्य को पूर्ण करते...

विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर तनावमुक्ति हेतु पुलिस द्वारा अयोजित की गई कार्यशाला

मैहर मध्य प्रदेश दिनांक 21.12.24 को विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर...