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तिरुपति लड्डू के घी में मिलावट के आरोप: धार्मिक आस्था पर उठे सवाल

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तिरुपति लड्डू के घी में मिलावट के आरोप: धार्मिक आस्था पर उठे सवाल

तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डू, जिन्हें तिरुपति लड्डू प्रसादम के नाम से जाना जाता है, श्रद्धालुओं के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। इन लड्डुओं को देवता को अर्पित करने के बाद प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। तिरुपति लड्डू का कांड और इनकी तकनीक, उत्पादन, और घी की गुणवत्ता को लेकर कई बार चर्चाएं होती रही हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के लड्डुओं में उपयोग किये जा रहे घी में मिलावट होने संबंधी वक्तव्य व आरोप के चलते आजकल यह विवाद मीडिया की सुर्खियों में है।विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी इस विवाद में अपने लाभ की संभावनाएँ तलाश कर तरह तरह के वक्तव्य दे रहे हैं। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार को लताड़ लगाई है और कहा है कि जाँच की रिपोर्ट आने तक मीडिया के पास जाने की क्या ज़रूरत थी।

तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डू को बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है और यह प्रसादम लाखों श्रद्धालुओं के बीच प्रसारित होता है। इसकी अनूठी बनावट और स्वाद इसे खास बनाते हैं। 2009 में इसे जीआई टैग मिला था, जिससे यह तिरुपति क्षेत्र से जुड़ा एक खास उत्पाद माना गया।इन लड्डुओं को बनाने के लिए एक विशेष तकनीक अपनाई जाती है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है। इसे बनाने में मुख्यतः चना का आटा, चीनी, घी, काजू, किशमिश और इलायची का उपयोग किया जाता है। लड्डू बनाने के लिए सभी सामग्री को मिलाकर एक विशेष प्रकार की कढ़ाई में पकाया जाता है और फिर छोटे-छोटे लड्डू बनाए जाते हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डू का मानक वजन लगभग 175 से 180 ग्राम होता है। इस वजन को बहुत सख्ती से नियंत्रित किया जाता है ताकि हर लड्डू का आकार और वजन समान हो।
एक किलो में लगभग 5-6 लड्डू आते हैं। तिरुपति लड्डू को बनाने के लिए घी, बेसन, चीनी, काजू, किशमिश, और इलायची का इस्तेमाल किया जाता है। एक किलो लड्डू बनाने के लिए लगभग 300-350 ग्राम घी का उपयोग होता है। याने एक लड्डू बनाने में लगभग 65 ग्राम घी लगता है। इस प्रकार तिरुपति प्रसादम के इन लगभग 3 करोड़ लड्डू बनाने में साल में लगभग 19.5 लाख किलो घी की ज़रूरत पड़ती है।

जब तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) को घी की आवश्यकता होती है, तो वे सार्वजनिक निविदा जारी करते हैं, जिसमें योग्य कंपनियां भाग लेती हैं। निविदा प्राप्त होने पर, मूल्यांकन में गुणवत्ता, आपूर्ति क्षमता, कंपनी की प्रतिष्ठा, और अन्य तकनीकी पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है। हालांकि सबसे कम कीमत वाली कंपनी को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन यह एकमात्र मानदंड नहीं होता। यदि सबसे कम कीमत वाली इकाई गुणवत्ता या शर्तों पर खरा नहीं उतरती, तो उसे ठेका नहीं दिया जाता।

तिरुपति लड्डू में इस्तेमाल होने वाले घी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) एक सख्त प्रक्रिया का पालन करता है। घी की खरीद से पहले उसकी शुद्धता, अम्लता, स्वाद और गंध की जांच की जाती है। विशेषज्ञों की एक टीम घी का रासायनिक और भौतिक परीक्षण करती है, और यदि घी गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतरता, तो उसे रिजेक्ट कर दिया जाता है। श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा होने के कारण, घी की गुणवत्ता पर कोई समझौता नहीं किया जाता।

एक किलो घी बनाने के लिये न्यूनतम 11 किलो दूध की ज़रूरत पड़ती है। दूध की बाज़ार क़ीमत लगभग 60 रुपये प्रति लीटर है , और इससे घी बनाने की प्रोसेसिंग को मिलाकर घी की औसत क़ीमत लगभग 750 रुपये प्रति किलो आती है। इससे कम कीमत पर शुद्ध घी मिलना मुश्किल है, क्योंकि इसमें मिलावट की संभावना होती है। तिरुपति मंदिर में जो घी ख़रीदा जा रहा है वो 320 रुपये प्रति किलो की दर से ख़रीदा जा रहा है। बाज़ार दरों से आधे से भी कम में घी की आपूर्ति अपने आप में ही घी की शुद्धता पर सवाल उठाती है।

मिलावटी घी का आरोप कुछ लोगों का दावा था कि तिरुपति लड्डू में इस्तेमाल किए जा रहे घी में मिलावटी या घटिया गुणवत्ता का घी इस्तेमाल हो रहा है। चूँकि शुद्ध घी की क़ीमत ज़्यादा है और इससे लगभग आधी क़ीमत पर मंदिर प्रशासन घी ख़रीद रहा है जिस कीमत में शुद्ध घी बनाना संभव ही नहीं है, तो उपलब्ध घी में मिलावट की संभावना बलवती होने के चलते घी की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि मंदिर प्रशासन सस्ते और निम्न गुणवत्ता वाले और मिलावट वाले घी का उपयोग कर रहा है।
आरोप तो यहाँ तक लगे हैं कि घी में जानवरों की चर्बी या वनस्पति तेल मिलाया जा रहा है। जिससे लड्डू की पवित्रता और गुणवत्ता पर सवाल खड़े हुए। यह विवाद धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि तिरुपति बालाजी मंदिर में दिए जाने वाले लड्डू को बहुत पवित्र माना जाता है, और श्रद्धालुओं के लिए इसकी शुद्धता बेहद महत्वपूर्ण होती है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के ये लड्डू केवल प्रसाद नहीं है, बल्कि यह श्रद्धालुओं के लिए एक धार्मिक प्रतीक है। इसलिए, निर्माण और वितरण पूरी श्रद्धा और जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए। इनमें किसी भी प्रकार की मिलावट या गुणवत्ता में कमी धार्मिक आस्था के खिलाफ मानी जा रही है। लड्डू बनाने की प्रक्रिया और घी की खरीद व जांच में उच्चतम स्तर की सावधानी बरती जानी आवश्यक है, ताकि श्रद्धालुओं को शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण प्रसादम मिले।

भारत में जानवरों की चर्बी से घी बनाना अवैध है, और इसलिए घी मुख्य रूप से गाय, भैंस और अन्य दुग्ध उत्पादक जानवरों के दूध से बनाया जाता है। तिरुपति लड्डू में घी की गुणवत्ता को लेकर उठे विवादों के मद्देनजर, TTD ने प्रक्रिया को सख्त कर दिया है और गुणवत्ता की नियमित जांच के लिए विशेषज्ञों की टीम बनाई है। पर तिरुपति में घी की बाज़ार क़ीमतों से आधी क़ीमतों पर इतनी बड़ी मात्रा में घी की ख़रीदी अपने आप में की घी की गुणवत्ता में ख़ामी के संदेह के साथ विवाद को जन्म तो दे ही चुकी है।

( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)

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