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अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा और आतिशी की ताजपोशी: एक रणनीतिक दांव और दिल्ली तथा हरियाणा की राजनीति

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अरविंद केजरीवाल ने तिहाड़ जेल से रिहा होने के कुछ दिनों बाद ही इस्तीफा देने की घोषणा की, जिसे राजनीतिक रूप से अप्रत्याशित कदम माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद, केजरीवाल ने कहा कि वे जनता के आदेश के बिना मुख्यमंत्री पद पर नहीं बैठेंगे। यह फैसला भाजपा द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों से खुद को अलग करने और जनता से नए समर्थन प्राप्त करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

इस कदम का उद्देश्य फरवरी 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों को नवंबर 2024 में कराने की मांग करना है, ताकि समय से पहले सत्ता में वापसी की जा सके। साथ ही, भाजपा पर “राजनीतिक बदले” का आरोप लगाकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास हो सकता है। इस्तीफा देकर, केजरीवाल भ्रष्टाचार के आरोपों से दूरी बनाकर जनता की अदालत में खुद को एक ईमानदार और साहसी नेता के रूप में पेश कर रहे हैं।

केजरीवाल ने इस्तीफा देने के बाद आतिशी को दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के रूप में चुना है। आतिशी, जो केजरीवाल की विश्वसनीय सहयोगी मानी जाती हैं, अब दिल्ली सरकार का नेतृत्व करेंगी। हालांकि, माना जा रहा है कि आतिशी के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वास्तविक सत्ता का संचालन केजरीवाल के मार्गदर्शन में ही होगा, और उनका प्रभाव सरकार में कायम रहेगा।

इसके साथ ही, दिल्ली विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाए जाने की संभावना है, जिसमें आप पार्टी अपनी एकजुटता दिखाने के लिए विश्वास प्रस्ताव पारित कर सकती है। इस सत्र के माध्यम से केजरीवाल भाजपा पर हमलावर रुख अपनाकर अपने भविष्य के राजनीतिक रोडमैप को जनता के सामने रख सकते हैं। इस दौरान, पार्टी कुछ नई योजनाओं की भी घोषणा कर सकती है, जिससे जनता का समर्थन प्राप्त किया जा सके।

केजरीवाल का यह कदम दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की संभावना को टालने के लिए भी देखा जा सकता है, क्योंकि उनके जमानत की शर्तों के कारण उनकी प्रशासनिक क्षमता सीमित हो गई थी। इस प्रकार, इस्तीफा एक रणनीतिक चाल है, जिससे आप पार्टी को आगामी चुनावों में फायदा हो सकता है।

केजरीवाल को अपने चुने हुए मुख्यमंत्री पर भरोसा है, लेकिन दिल्ली में उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के साथ सहयोग जरूरी है। नए सीएम के साथ बेहतर तालमेल की संभावना है, जिससे विपक्ष यह कह सकता है कि पहले केजरीवाल के नेतृत्व के कारण संघर्ष होता था। इससे उनकी छवि और आप पार्टी की स्थिति कमजोर हो सकती है।

अरविंद केजरीवाल के दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का कदम न केवल दिल्ली बल्कि हरियाणा की राजनीति को भी प्रभावित करेगा। इस्तीफे के जरिए केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के आरोपों से खुद को अलग करते हुए जनता से नया जनादेश मांगने की रणनीति अपनाई है। इसके साथ ही हरियाणा विधानसभा चुनावों में आप पार्टी की संभावनाओं को मजबूत करने का प्रयास हो सकता है, जहां पार्टी संगठनात्मक रूप से कमजोर है। केजरीवाल का यह साहसिक कदम उन्हें एक सशक्त और स्वच्छ राजनीतिक विकल्प के रूप में पेश कर सकता है, जिससे हरियाणा में आप पार्टी को फायदा हो सकता है।

दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच शह मात का खेल पिछले दशक से चल रहा है, लेकिन दिल्ली विधानसभा के चुनावों में हर बार आम आदमी पार्टी क्लीन स्वीप करती दिखती है। ऐसा लगता है कि एक बार फिर केजरीवाल की रणनीति को समझने में बीजेपी कामयाब नहीं हुई है। अंततः, केजरीवाल का इस्तीफा एवं आतिशी की ताजपोशी न सिर्फ़ आप पार्टी की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, बल्कि दिल्ली की राजनीति में एक नया मोड़ लाने का भी संकेत देता है।

( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)

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