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बढ़ती रेल दुर्घटनाएँ: कारण, चुनौतियाँ और समाधान”

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भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया का चौथा सबसे बड़ा और सबसे व्यस्त नेटवर्क है, जो प्रतिदिन लाखों यात्रियों और टन माल की ढुलाई करता है। इसकी प्रमुख खूबियाँ हैं विशाल पहुँच, कम लागत में यात्रा, और देश के कोने-कोने को जोड़ना। यह ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच संपर्क का मुख्य साधन है।

भारत में रेलवे का एक महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन समय-समय पर होने वाली रेल दुर्घटनाएं चिंता का विषय बनी हुई हैं। पिछले कुछ महीनों में भारतीय रेलवे में दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। इन घटनाओं में कई लोगों की दुखद मृत्यु हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हुए। रेलवे की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएँ बनी हुई हैं। ये दुर्घटनाएं मुख्य रूप से तकनीकी खामियों, मानव त्रुटियों और पुराने बुनियादी ढांचे के कारण होती हैं। कभी-कभी दुर्घटनाओं के पीछे तोड़फोड़ या साजिश के संकेत भी मिलते हैं।

रेल दुर्घटनाओं के पीछे कई कारण हो सकते हैं। प्रमुख कारणों में शामिल हैं:

तकनीकी खामियाँ**: कई बार पुरानी ट्रेनों और पटरियों की वजह से तकनीकी दिक्कतें आती हैं, जिससे दुर्घटनाएँ होती हैं। रेलवे का बुनियादी ढांचा पुराना है हालाँकि इसके सुधार और बदलाव के लिये लगातार काम जारी है पर पुराना ढाँचा कई बार नई ट्रेनों की तेज गति का दबाव सहन नहीं कर पाता।

सिग्नलिंग सिस्टम की कमी**: सिग्नलिंग में गलतियों के कारण ट्रेनें एक ही ट्रैक पर आ जाती हैं, जिससे टक्कर की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। कई दुर्घटनाओं का मुख्य कारण यही होता है।

मानव त्रुटि**: कभी-कभी ट्रेन चालकों, स्टेशन मास्टरों और अन्य कर्मचारियों की लापरवाही या थकावट से भी दुर्घटनाएँ होती हैं। यह दुर्घटनाओं के प्रमुख कारकों में से एक है।

अनियंत्रित रेलवे क्रॉसिंग**: कई क्षेत्रों में बिना सुरक्षा बैरियर वाली रेलवे क्रॉसिंग होती हैं, जो दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बनती हैं। यहां पर उचित संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता है।

मौसम संबंधी समस्याएँ**: भारी बारिश, कोहरा या अन्य प्राकृतिक आपदाएँ भी ट्रेनों की सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। इससे दृश्यता में कमी आती है और ट्रेन चालकों के लिए सुरक्षित संचालन मुश्किल हो जाता है।

रेलवे में नई भर्तियों की कमी, आउटसोर्सिंग के जरिए टेक्नीशियन रखना, और ट्रेनों के बीच ट्रैक की पर्याप्त जांच व रखरखाव का न होना दुर्घटनाओं का बड़ा कारण हैं।

नई भर्ती की कमी**: नियमित रूप से नई भर्तियाँ न होने से कुशल कर्मचारियों की कमी होती है। अनुभवी और प्रशिक्षित कर्मचारियों के बिना सुरक्षा मानकों को बनाए रखना कठिन हो जाता है।

आउटसोर्सिंग**: जब तकनीशियन आउटसोर्सिंग के माध्यम से रखे जाते हैं, तो उनका प्रशिक्षण और अनुभव कई बार अपर्याप्त होता है। इससे काम की गुणवत्ता और सुरक्षा में गिरावट आती है, जो दुर्घटनाओं का कारण बन सकता है।

ट्रैक की जांच और रखरखाव**: ट्रेनों के बीच ट्रैक की जांच के लिए पर्याप्त समय न मिलने से संरचनात्मक खामियों की अनदेखी हो जाती है। इस वजह से भी दुर्घटनाएँ हो सकती हैं, खासकर तेज गति वाली ट्रेनों के मामले में।

साजिश या तकनीकी खामियाँ?
कुछ दुर्घटनाओं के बाद साजिश का एंगल सामने आता है, जैसे ट्रेनों को पटरी से उतारने की कोशिशें या रेलवे ट्रैक पर जानबूझकर अवरोधक रखना। हालाँकि, अधिकतर दुर्घटनाओं का कारण प्रशासनिक विफलता, तकनीकी खामियाँ और मानव त्रुटियाँ होती हैं। साजिश के मामलों की उच्चस्तरीय जांच होती है, लेकिन बिना पुख्ता सबूत के किसी दुर्घटना को साजिश को साबित करना बहुत कठिन हो जाता है ।
इन दुर्घटनाओं के निदान के लिये निम्नानुसार कार्य किये जाने प्रस्तावित हैं :

उन्नत तकनीकी उपकरणों का उपयोग- रेलवे को स्वचालित सिग्नलिंग और जीपीएस आधारित ट्रैकिंग सिस्टम जैसे अत्याधुनिक उपकरणों का उपयोग करना चाहिए। इससे ट्रेनें अधिक सुरक्षित ढंग से संचालित हो सकेंगी।

नई भर्तियाँ और प्रशिक्षण – नियमित भर्तियाँ और कर्मचारियों को बेहतर प्रशिक्षण देना जरूरी है। इससे मानवीय त्रुटियों को कम किया जा सकता है और दुर्घटनाएँ रोकी जा सकती हैं।

सुरक्षित रेलवे क्रॉसिंग – अनियंत्रित क्रॉसिंग पर बैरियर लगाना या फ्लाईओवर बनाना अनिवार्य है। इससे ट्रेनों और सड़क यातायात के बीच दुर्घटनाओं की संभावना कम होगी।

ट्रैक की नियमित निगरानी – पुराने पटरियों को समय पर बदलने और नियमित रखरखाव से दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। ट्रेनों के बीच पर्याप्त समय देकर ट्रैक की जाँच और मरम्मत सुनिश्चित करनी चाहिए।

भारतीय रेलवे को सुरक्षित बनाने के लिए तकनीकी सुधार, मानव संसाधन प्रबंधन, और संरचनात्मक सुधार की जरूरत है। नई भर्तियों, उचित प्रशिक्षण, और उन्नत तकनीक के उपयोग से रेल दुर्घटनाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके साथ ही, सरकार को साजिशों की जांच करने और सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। केवल तेज गति नहीं, बल्कि सुरक्षित यात्रा का ध्यान रखना ज्यादा महत्वपूर्ण है।

( राजीव खरे- राष्ट्रीय उप संपादक)

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