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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल: बदलती राजनीतिक चुनौतियों का सामना

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल पूरे होने के साथ, संगठन अब नई राजनीतिक वास्तविकताओं और नये भारत की आवश्यकताओं के साथ सामंजस्य बैठाना सीख रहा है। बीते सौ वर्षों में संघ ने धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को किनारे करते हुए हिंदू एकता को मजबूती दी है, पर आज वह जातिगत भेदभाव और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आरोपों का सामना कर रहा है। अतीत में संघ ऐसे आरोपों की अनदेखी करता था, लेकिन अब उसने अपने विरोधियों से सीधा सामना करने का निर्णय लिया है। इसका प्रमुख उदाहरण जाति और आरक्षण पर संघ के बदलते रुख में देखा जा सकता है।

हाल ही में केरल में संघ के शीर्ष नेताओं की बैठक के बाद, संगठन ने स्पष्ट किया कि वह जाति सर्वेक्षण और आरक्षण के खिलाफ नहीं है। संघ का मानना है कि सरकार को जनसंख्या आंकड़ों की जरूरत होती है, लेकिन इनका उपयोग केवल वंचित समुदायों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए, न कि राजनीतिक हथियार के रूप में। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी आरक्षण के राजनीतिकरण की आलोचना की थी, लेकिन संघ ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक समाज में जातिगत भेदभाव है, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए।

संघ के इन बदलते विचारों के बावजूद, संगठन पर विपक्षी दलों का दबाव बढ़ता जा रहा है। राहुल गांधी ने संघ को मुख्य निशाने पर लिया है, ताकि वे गैर-भाजपा दलों को एकजुट कर सकें और मुस्लिम मतदाताओं को बिना हिंदू-विरोधी दिखे आकर्षित कर सकें। संघ इस हमले से बचने के लिए नये तरीकों को अपना रहा है। उसने अब अपनी पुरानी शाखा प्रणाली से आगे बढ़कर विभिन्न सामाजिक संगठनों और विचार संस्थाओं का गठन किया है।

संघ की बदलती रणनीति में उसके शीर्ष पदाधिकारियों की सार्वजनिक उपस्थिति में वृद्धि और मीडिया से सीधा संपर्क न करने की नीति भी शामिल है। यह संगठन सत्ता पर निर्भर रहने के बजाय अपनी लड़ाई स्वयं लड़ने का निर्णय ले चुका है। हालांकि संघ की जड़ें अभी भी मजबूत हैं, लेकिन जातिगत संघर्ष और राजनीतिक चुनौतियां उसे निरंतर नई राहें खोजने के लिए मजबूर कर रही हैं।

आज भी संघ की 70,000 शाखाओं में 10 लाख से अधिक स्वयंसेवक शामिल हैं, और हिंदुत्व तथा धर्मांतरण रोकने का उसका एजेंडा प्रमुख बना हुआ है। लेकिन, राम मंदिर आंदोलन से मिली राजनीतिक और सामाजिक सफलता अब उतनी प्रभावी नहीं रही। संघ को अब यह जिम्मेदारी उठानी होगी कि वह सभी जातियों और वर्गों के बीच एकजुटता को बनाए रखते हुए लोगों को समान अवसर दिलाते हुए देश में साम्प्रदायिक सौहार्द व सबका साथ सबका विकास सुनिश्चित करे।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)

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