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कुछ हट के इंदौर देखता स्वच्छता का आसमान।

वैसे यह वर्तमान का इंदौर नगर निगम का स्वच्छता जागृति अभियान का गीत है।
गीत अपने आप में सम्पूर्ण है। अब देखिए गीत में स्वच्छता शब्द को दो बार प्रयोग किया गया है।” इंदौर देखता स्वच्छता का स्वच्छता का आसमान।”
पहले तो मुझे लगा गीतकार या संगीतकार ने संगीत की दृष्टि से दो बार स्वच्छता शब्द का उपयोग किया हो परंतु विश्वस्त सूत्रों से मालूम पडा कि ऐसा नही था। यह तो इंदौर का स्वच्छता से जन्म-जन्मांतर का नही तो कम से कम सात साल का संबंध तो रहा ही है, इंदौर चूंकि विगत सात वर्षों से प्रदेश ही नही देश में पहला आया है।
मतलब लोगों को यह याद दिलाने के लिए कि,” कौनसा आसमान”, तो हमारा डंपी बोलेगा,
” स्वच्छता का आसमान”।
वैसे मेरे घर में कोई”डंपी ” नही है, यह तो बतौर उदाहरण के मैंने लिख दिया,
मतलब किसी भी इंदौरी के घर का छोटा बच्चा।
बचपन में जब गिर पडता था तो मेरी मां पूंछती थी,” काय आकाशाकडे बघूंन चालला होता का?” मतलब कि क्या आसमान की तरफ देखकर चल रहे थे क्या?”
आज नगर निगम कह रहा है कि पूरा इंदौर स्वच्छता का आसमान देख रहा है।
जब चलना फिरना ही आसमान को देखकर है तो जमीन पर चलते हुए आदमी गिरेगा जरूर।
नगर निगम ने जानबूझकर ऐसा गाना फिट कर दिया कि जनता भी सड़कों की तरफ देखेगी नहीं, ऊपर से इंद्र देव भी नगर निगम वालों पर खूब मेहरबान हैं जिससे सड़कों पर जहां तहां पानी का जमाव है।
अब आप जब पानी में से अपनी एक्टिवा निकालते हैं तो यह थोड़े ही आपके दिमाग में आता है कि ” भैया इंदौर है, शायद गढ्ढा हो।”
आज कल्लू का एक्सीडेंट होकर पंद्रह दिन हो चुके। ऐसे ही पानी के भराव में से गाडी निकालते समय एक्सिडेंट कर बैठा अब आप कह नहीं सकते कि जवानी की मस्ती में चूर थे क्योंकि कोई दूसरा था ही नही।
जब दूसरे दिन उसका फ़ोन आया,”गुरु , एक्सीडेंट हो गया कल!” मैंने भी चुटकी लेते हुए पूंछ लिया,” क्या नशे में थे क्या?”
तो कहने लगा,” गुरु, आप तो जानते हैं कि श्रावण चल रहा है और मैं महांकाल भक्त हूं।”
मैंने कहा,” मैं जवानी के नशे की बात कर रहा हूं।”
आज पंद्रह दिन से बिस्तर पर पडा है परंतु नगर निगम वालों को क्या, वह तो कहेंगे,” हम आसमान देखने के लिए थोड़े ही कह रहे हैं।” हम तो कह रहे हैं,” इंदौर देखता है। आपको जमीन से नजर हटाने के लिए थोड़े ही कहा।”
मैंने एक मेरे मित्र से कहा,” भैया, थोडा ध्यान सड़कों की तरफ भी दीजिए।” तो कहने लगा,” बस, बारिश रुक जाएं, इसके बाद सड़कों का काम ही लेना है।”
” परंतु सड़कें बने तो एक साल भी नही हुआ।” मैंने कहा।
” हम लोगों का डिजाइन सिर्फ एक साल के लिए होता है। बारिश हुई सड़कें गायब।” मेरे मित्र ने कहा। मेरा मित्र नगर निगम में ही है।
“हमें हर साल के लिए एक नया बजट मिलता और सड़क एक साल से ज्यादा चल जाएं, ऐसे निगमद्रोही हम नही।” मेरे मित्र ने कहा।
फिर इंदौर को स्वच्छता में पहला नंबर कैसे मिला तो सूत्रों का यह कहना है कि स्वच्छता के लिए मिला और स्वच्छता में कूडा करकट शामिल हैं, टूटी सडक की रेती गिट्टी शामिल नही, गड्ढे का पानी, शहर का यातायात भी शामिल नही।
तो दोस्तों नगर निगम यदि कह रहा है कि ” स्वच्छता का आसमान” देखना है तो आसमान ही देखिए और नगर निगम पर विश्वास कर के चलिए कि सड़कें और ट्रैफिक ठीक ही होगा और बात यदि कल्लू की टांग टूटने की है तो इसे भगवान श्रीकृष्ण के कर्मयोग पर डालिए,” कर्मों की सजा तो मिलती ही हैं, चाहे आज मिले या कल।”
( लेखक- पुरुषोत्तम पांडे )
हिंदुत्व और सनातन का ज्ञान रखने वाले पुरुषोत्तम पांडे, पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर , सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक विशेषज्ञ हैं और एक समाज सेवी भी ।

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