नई दिल्ली
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतदान की चर्चा हो रही थी, लेकिन हालिया आतंकी हमलों ने आंतरिक सुरक्षा के लिए नई चुनौतियां पैदा कर दी हैं। जम्मू में रियासी, कठुआ और डोडा में चार दिनों में चार आतंकी हमले हुए हैं, जिनमें नौ श्रद्धालुओं की मौत हुई और पचास लोग घायल हुए। प्रधानमंत्री ने गृहमंत्री और सुरक्षा एजेंसियों के साथ बैठक कर इस नई चुनौती से निपटने की रणनीति पर विचार किया है।
इन हमलों में पाकिस्तानी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि मारे गए आतंकवादियों के पास से पाकिस्तानी हथियार बरामद हुए हैं। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान सत्ता प्रतिष्ठानों की मदद से यह आतंक का खेल फिर शुरू कर रहा है, जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र को मजबूत होते देख आतंकवादी हमले बढ़ गए हैं। हाल के दिनों में रिकॉर्ड संख्या में पर्यटकों का घाटी में आना और लोकसभा चुनाव में बंपर मतदान ने सीमा पार आतंकियों को बौखला दिया है।
चिंताजनक पहलू यह है कि आतंकी हमलों का केंद्र अब जम्मू क्षेत्र बन गया है। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली है। इन हमलों से निपटने में भारतीय सेना और सुरक्षा बल सक्रिय हैं, लेकिन आने वाली अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती होगी।
केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन को आत्ममंथन करना चाहिए कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद क्या घाटी में स्थिति सामान्य हो पाई है। हाल के आतंकी हमले यह सवाल उठाते हैं कि क्या कश्मीर का जनमानस राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ पाया है या नहीं। कश्मीरी लोगों में नई व्यवस्था के प्रति विश्वास बढ़ाने के लिए नीतियों और लोकतंत्र की बहाली पर ध्यान देना जरूरी है।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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