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लंदन

ग्लोबल वार्मिंग संकट ने पृथ्वी पर आजादी की भूमि को परिपूर्ण रूप से अभिव्यक्त किया है। सरकारों की अदालतों और विश्व समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर नई उम्मीदों की किरण है। यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने जलवायु संकट के प्रति सरकारों की जिम्मेदारी को स्वीकार किया है और आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाने को कहा है। यह निर्णय समूचे विश्व के लिए मार्गदर्शक है, जो पर्यावरणीय संकटों को सामाजिक और आर्थिक समानता की दृष्टि से देखता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संविधानिक मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखा है, इससे जीवन की रक्षा को आवश्यकता के रूप में माना गया है। यह निर्णय उत्पादन, सामाजिक समानता, और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन का माध्यम बन सकता है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचाव में नवीनतम ऊर्जा प्रणालियों का प्रोत्साहन भी आवश्यक है, जो सामाजिक समानता को बढ़ावा देते हैं। इस तरह के निर्णय सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से विकास को समायोजित कर सकते हैं।
( राजीव खरे- अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो)

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