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इंडियन कौंसिल आफ प्रेस ने की निष्पक्ष चुनाव पर संगोष्ठी

छत्तीसगढ़

रायपुर
वोटरों का मौक़ा पाँच साल में सिर्फ़ एक बार ही आता है जब चुनाव आते हैं। वो नेता जिनके पीछे पीछे वोटर पाँच साल तक भटकता रहता है अचानक वोटरों के लिये पलक पाँवड़े बिछा देते हैं।
इस विधानसभा के चुनावी मौसम में एक बार वोटरों को रिझाने के लिये तरह तरह के जंतु हो रहे हैं, इसलिए वोटरों को जागरूक करने के लिये इंडियन कौंसिल आफ प्रेस की छत्तीसगढ़ शाखा ने दिनांक 5 नवंबर को रायपुर में एक कैंप आयोजित किया। इसमें मुख्य वक्ता कौंसिल के संयुक्त सचिव छत्तीसगढ़ विजय उप्पल थे। उनके उद्बोधन का सभी उपस्थित लोगों ने बहुत आनंद लिया । उन्होंने इस अवसर पर कहा कि -आखिर चुनाव का मौसम आ ही गया, नेताओं के लिए मुसीबत और जनता के लिए (झूठे?) वादों  की बहार । चुनाव के कुछ महीने पहले परिस्थितियों का सिक्का पलट जाता है और हालात बिलकुल उलट जाते हैं । पांच सालों तक नेताजी की चमचागिरी जनता द्वारा की जाती है , और चुनावकाल में जनता की चमचागिरी नेताओं द्वारा ।
वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर नज़र डालें तो स्पष्ट हो जाता है की देश हित और जन हित का लक्ष्य लेकर राजनीती करने वाले नेताओं की संख्या बहुत कम रह गयी है और वे उन्गलियो पर  गिने जा सकते हैं. पर आपने देखा होगा कि झूठे बेईमान और गुंडे किस्म के लोगों की चुनावों में सफलता दर, स्वच्छ छवि वाले इमानदार लोगों से बहुत ज्यादा रही है!!!
इन गलत लोगों द्वारा किस विधि से चुनावी सफलता हासिल की जाती होगी ?
जैसा कि आप जानते ही होंगे कि लोकतान्त्रिक शाशन में सत्ताधारी और विपक्षी दलों का होना अनिवार्य है. और इस व्यवस्था में विपक्षी दलों की भूमिका सरकार को निरंकुश होने से रोकना होती है । किन्तु विगत कुछ वर्षों से लोकतान्त्रिक परम्पराओं का सर्वथा विलोप हो चला है, सभी राजनैतिक दल जब विपक्ष की भूमिका में होते हैं तो वे जनहित,राज्यहित जैसे मूल काम से पूर्णतः दूर हो जाते हैं. और उनका एक सूत्री कार्यक्रम सरकार के हर अच्छे बुरे काम की आलोचना ही रह जाता है .उधर सत्तासीन दल बेहद निरंकुशता से मन मानी फैसले करता रहता है ।
बहरहाल चुनाव जीतने के लिए अपनाए जाने वाले कुछ नुस्खे इस प्रकार होते हैं –
राज्य सरकारों में सत्ता पक्ष का भ्रष्टाचार रुक नहीं रहा है, और विपक्षी दल इस पर चिल्लाते तो बहुत हैं पर इसे रोकने हेतु किसी ठोस उपाय का सुझाव वे जनता को कभी नहीं दे पाए. भ्रष्टाचार हटाने का वादा कई दशकों से मुख्य  चुनावी मुद्दा बना हुआ है ।
विपक्ष के लिए भ्रष्टाचार हमेशा से प्राथमिक चुनावी मुद्दा रहा है . इतिहास गवाह है कि यही विपक्षी  नेता सत्ता में आने के बाद स्वयं भी भ्रष्ठाचार में आकंठ  तक डूब जाते हैं।
दूसरा मुख्य विषय मंहगाई का रहा का करता है।
सभी विपक्षी दल एक सुर में वर्तमान मंहगाई के लिये सत्तापक्ष को जिम्मेदार बताते रहे हैं, पर उन्होंने कभी भी मंहगाई कम करने का ठोस और प्रभावी योजना जनता के सामने नहीं रखी , उस पर तुर्रा यह की जब यही दल स्वयं सत्ता में आते हैं तो वे मंहगाई का ठीकरा  या तो परिस्थितियों पर या फिर पूर्ववर्ती सरकार पर फोड़ कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं ।
1960 के दशक के बाद से, विपक्षियों का चुनावों में, तीसरा प्रिय विषय बेरोजगारी रहा है।  खासकर युवा मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए इसे उपयोग किया जाता रहा है. इसके अलावा जात पात, सड़क बिजली पानी जैसे कई स्थानीय, किन्तु न समाप्त होंने वाले मुद्दे भी अनादि काल से चले आ रहे हैं. पर ये सारी समस्यायें यथावत हैं ।
किसानों की कर्ज माफ़ी भी, चुनावी सफलता में बेहद कारगर हथियार साबित हो चुकी है.  

इधर पिछले कुछ अरसे से, चुनावों में जीत पक्की करने के लिए , मुफ्त में बिजली पानी या लैपटॉप इत्यादि का वितरण , नए फैशन के रूप में उभरा है. और कई नेता इनकी वजह से ही सत्तासीन होकर अरबों रुपये कमा चुके हैं.
स्वतंत्रता के बाद से ही कुछ जातियों के लोग किसी एक दल को  जातिगत आधार पर अपना कीमती वोट देते आयें हैं, किन्तु आज भी उनका उत्थान नहीं हो पाया है । विजय उप्पल ने उपस्थित सभी वोटरों से अपील की कि –
जातिगत आधार पर मतदान न करें । जो प्रत्याशी,किसानों की कर्ज माफ़ी की बजाये, किसानों को कर्ज वापसी में सक्षम बनाने की बात करे उसे ही वोट दें ।
मुफ्त बिजली पानी या कोई भी अन्य सुविधा वास्तव में मुफ्त नहीं होती, इसकी कीमत राज्य का विकास और आपका उत्थान देकर चुकानी होती है ।
उन्होंने किसी प्रलोभन में पड़कर मतदान ना करने की भी अपील कर मतदाताओं से आग्रह किया कि, इन मुद्दों को लेकर कोई भी चुनावी प्रत्याशी, वोट मांगता है तो आप उससे इन समस्यायों के निराकरण की विधि पूछिये, उसके बाद ,संतुष्ट होने पर ही उसे वोट देने का मन बनाएं ।
मतदान के लिए सर्वप्रथम प्रत्याशी का इतिहास जानने का प्रयास करें, किसी दल द्वारा पिछले चुनावों में किये गए वादों में से कितने वादे पूरे हुए इसका  विश्लेषण करें, उसके बाद ही अपना बहुमूल्य मत किसे देना है इसका फैसला करें।
पर मतदान अवश्य करें

इसके पश्चात उन्होंने सभी लोगों जो कि चुनाव में वोट देंगे से किसी भी प्रलोभन, दबाव, या धर्म के नाम को छोड़ प्रत्याशी की छवि और राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रख कर मतदान करने की शपथ भी दिलाई ।
( रायपुर ब्यूरो)

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