इंदौर मध्य प्रदेश
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने बताया कि, जिनशासन में जीव कल्याण के लिये सभी कुछ दिया गया है। जीवन में तीन परिस्थिति होंगी तो हम आत्मनिर्भर होकर कल्याण कर पायेंगे। प्रथम – आराधना में लग जाओ। मनुष्य प्रतिदिन की आवश्यक धर्म क्रियाएं (पूजा, जिनवाणी श्रवण, सामायिक एवं प्रतिक्रमण आदि) नहीं करके सांसारिक कार्यों में लीन हैं। मंदिर एवं उपाश्रय से बाहर जाते समय तीन बार आवस्सही बोला जाता है । अर्थात् अब मुझे यहाँ से जाना नहीं एवं मेरा मन तो यहीं लगा है परंतु जीवन चर्या के आवश्यक कार्य हैं जिनके बिना निर्वाह नहीं हो सकता इसलिये जाना पड़ेगा, दूसरा – पाप से भागों या दूर रहो। जहाँ तक संभव हो पाप क्रिया से दूरी बनाए रखना एवं पाप में सम्मिलित नहीं होना है, एवं (3) अब जाग्रत हो जाओ धर्म कार्य करने के लिये।
आत्मा के लिये तीन प्रकार की औषधि जिनशासन में उपलब्ध है। पश्चाताप, प्रायश्चित एवं प्रतिज्ञा यह तीनों औषधियाँ आत्मा पर लगे रोगों को भगाने के लिये अकसीर इलाज है। जिस प्रकार शरीर की बीमारियों की जड़ वात, पित्त एवं कफ को दूर करने के लिये त्रिफला औषधि ली जाती है ठीक वैसे ही जिनशासन में सभी रोगों का यह उपचार बताया गया है।
(1) पश्चाताप – पापों का प्रायश्चित करने से पाप पुनः जीवन में प्रवेश नहीं करेंगे।
(2) प्रायश्चित – गुरु भगवंत के पास जाकर अपने पापों का इकरार करना चाहिए।
(3) प्रतिज्ञा – नये पापों का आगमन न हो इसकी प्रतिज्ञा करना चाहिये। प्रतिज्ञा लेना इसलिये भी आवश्यक है क्योंकि मन प्रलोभनों की ओर जाता है तब प्रतिज्ञा हमको नियम में बांधकर पाप से दूर रखती है। शुभ भाव की उम्र अल्प एवं अशुभ भाव की उम्र अधिक होती है अतः प्रतिज्ञा लेना आवश्यक है।
जीवन में जब भी दुःख दर्द आये तो समभाव रखना चाहिये इसलिये चार बातों का ध्यान रखना है (1) दुःख के कारण से ड़रो दुःख से नहीं, (2) दुश्मन को मैत्री भाव से जीतो, (3) सोम्य भाव से दोष को जीतो एवं (3) कर्ज को कृतज्ञ भाव से दूर करो।
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘पश्चाताप, प्रायश्चित व प्रतिज्ञा का मिश्रण, दुःखों की दवा का चूरण”
राजेश जैन युवा ने बताया कि, मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी का कल दिनांक 11 अक्तूबर को प्रातः 9 से 11 तक सरस्वती शिशु मंदिर, साईनाथ कालोनी, इंदौर में छात्रों एवं छात्राओं के लिये विशेष प्रवचन “लक्षण बदल दे शिक्षण” देंगे।
राजेश जैन युवा 94250-65959
रिपोर्ट- अनिल भंडारी
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