इंदौर मध्य प्रदेश
इंदौर मध्य प्रदेश मुनिराज श्री ऋषभ रत्नविजयजी ने कर्म की मलिनता को साफ करने के चार अनुष्ठान बताए।
1. प्रीति अनुष्ठान : अर्थात परमात्मा को चाहना। परमात्मा से प्रीति होने पर परम शक्ति की प्राप्ति होती है। जड़ पदार्थों की प्रीति नाशवान है क्योंकि इनका सुख क्षण भर का और आसक्ति/राग का कर्म बंधन भवों तक है। उत्पत्ति-प्रीति-नाश हर पुद्गल में है। परमात्मा को चाहने से हमारे कर्म टूट जाते हैं। परमात्मा से प्रीति दूध में पानी मिलने के समान अनुष्ठान है। दोनों के मिलने बाद स्वरूप एक ही रहता है।
2. भक्ति अनुष्ठान : यह कर्म के मल को साफ करने का अद्भुत अनुष्ठान है। परमात्मा को समर्पित होना ही उनकी सच्ची भक्ति है। प्रभु ने जो कहा वही हमको करना है व जिन आज्ञा का पालन मेरे लिये बेस्ट एवं श्रेष्ठ है। यह प्रभु की भक्ति में दही समान जमने का अनुष्ठान है।
3. वचन पालन अनुष्ठान : इस अनुष्ठान में परमात्मा के वचनों का अक्षरशः पालन करना है एवं आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना है। प्रभु के वचनों से पक्षपात एवं संदेह बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। यदि वचन पालन नहीं हो पा रहा है तो न होने का मन में मलाल होना चाहिए। यह परमात्मा से मक्खन जैसा अनुष्ठान है।
4. अखंड अनुष्ठान : परमात्मा में एक मेव होना कर्म के मेल को साफ करने का अनुष्ठान है जो घी समान है।
परमात्मा के मंदिर की प्रीति अनुष्ठान आधारशिला है, भक्ति अनुष्ठान इमारत स्तम्भ है, वचन पालन अनुष्ठान गेटप है और अखंड अनुष्ठान ऊपर का कलश है। इन अनुष्ठानों को संपन्न करके परमात्मा से जुड़ना है। राजेश जैन युवा ने बताया की –
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘ज्ञान का आगमन, अज्ञानता का निर्गमन है”
राजेश जैन युवा
रिपोर्ट – अनिल भंडारी
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