सामाजिक चुनौतियों से निपटने के लिए संवैधानिक सुधारों की आवश्यकता
भारत में हाल के वर्षों में धार्मिक असहिष्णुता, मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हिंसा), और यौन अपराधों में वृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। भारतीय संविधान, अपने मौलिक अधिकारों और निर्देशात्मक सिद्धांतों के तहत, सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, और जीवन का अधिकार देता है। भारत के संविधान में धार्मिक असहिष्णुता, मॉब लिंचिंग, यौन अपराध, और कानून व्यवस्था से जुड़े अन्य मुद्दों से निपटने के लिए कई मौलिक प्रावधान पहले से मौजूद हैं, परंतु हाल के वर्षों में इन घटनाओं में वृद्धि के चलते इन चुनौतियों से निपटने के लिए कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन एवं संविधान में कुछ संशोधनों की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
धार्मिक असहिष्णुता
संविधान के अनुच्छेद 25-28 के तहत सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, लेकिन धार्मिक असहिष्णुता के मामलों में बढ़ोतरी एक गंभीर चिंता का विषय है। इसे रोकने के लिए सख्त कानूनों का निर्माण और धार्मिक घृणा फैलाने वालों के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। साथ ही, शिक्षा प्रणाली में धार्मिक सहिष्णुता और समावेशिता को सिखाने पर जोर दिया जाना चाहिए ताकि नागरिकों में सहिष्णुता और बहुलवाद की भावना विकसित हो सके।
मॉब लिंचिंग
मॉब लिंचिंग के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए संविधान में स्पष्ट प्रावधान की कमी महसूस होती है। अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसे मॉब लिंचिंग द्वारा सीधे तौर पर उल्लंघन किया जा रहा है। इस प्रकार, मॉब लिंचिंग के खिलाफ एक विशेष कानून बनाकर त्वरित जांच और कठोर सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। पुलिस को इस प्रकार के मामलों में समय पर कार्रवाई करने और न्यायपालिका को त्वरित फैसले देने के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए।
महिलाओं और बच्चों पर यौन अपराध
संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और गरिमा का अधिकार देता है, लेकिन यौन अपराधों के मामलों में न्याय की धीमी प्रक्रिया और अपराधियों के प्रति कठोर कार्रवाई की कमी एक बड़ी चुनौती है। ऐसे मामलों के लिए त्वरित अदालतों का गठन और दोषियों के लिए अनिवार्य कठोर सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। इसके अलावा, स्कूलों और कॉलेजों में यौन शिक्षा और महिला सुरक्षा के प्रति जागरूकता कार्यक्रमों को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
पुलिस सुधार
पुलिस तंत्र में सुधार की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है। कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए पुलिस बल को अधिक संसाधन, प्रशिक्षण और जवाबदेही दी जानी चाहिए। इसके अलावा, स्वतंत्र निगरानी समितियों का गठन कर पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है।
समान नागरिक संहिता
संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता लागू करने की बात करता है, परंतु इसे अब तक लागू नहीं किया गया है। इसे लागू करना सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जिससे सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू होंगे, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
चुनाव सुधार
चुनाव सुधार भी आवश्यक हैं ताकि भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे। इसके लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग और उम्मीदवारों की जवाबदेही के लिए सख्त नियम लागू किए जा सकते हैं। एक देश एक चुनाव की अवधारणा पर विचार कर चुनावी प्रक्रिया ऐसी बनाई जा सकती है ताकि बार बार चुनाव होने में लगने वाली आदर्श आचार संहिता के चलते कार्य बाधित ना हों। इतना ही नहीं क्योंकि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर चुनावों में सरकार के बहुत से मंत्रियों को चुनाव प्रचार व प्रबंधन की ज़िम्मेदारी पार्टी द्वारा दी जाती है, और वे अपने विभागीय काम छोड़ पार्टी की प्राथमिकता पर पार्टी के चुनाव प्रबंधन में परोक्ष और अपरोक्ष रूप से लग जाते हैं।
धार्मिक असहिष्णुता, मॉब लिंचिंग, यौन अपराध और कानून व्यवस्था से जुड़े अन्य मुद्दों से निपटने के लिए संविधान में संशोधन और कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है। समान नागरिक संहिता और चुनाव सुधार जैसे कदम देश में समता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। इस प्रकार, संविधान में बदलाव और सुधार आवश्यक हैं, लेकिन इसके साथ ही प्रभावी क्रियान्वयन और न्यायिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने की जरूरत है ताकि भारत के नागरिकों को उनके मौलिक अधिकार मिल सकें और समाज में शांति और सहिष्णुता बनी रहे।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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