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अरविंद केजरीवाल, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेता, को लंबे समय तक जेल में रहने के बाद आखिरकार जमानत मिल गई। यह जमानत उन्हें शराब घोटाले में ईडी द्वारा दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मिली है। उनकी रिहाई से आप पार्टी में राहत की लहर है, लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ हरियाणा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
हरियाणा चुनाव से ठीक पहले केजरीवाल की रिहाई ने राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी दलों को नई चुनौतियों में डाल दिया है। जहां आप पार्टी के उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं में नया उत्साह देखा जा रहा है, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए यह चिंता का विषय बन गया है। हरियाणा केजरीवाल का गृह राज्य है, और उनकी सक्रियता से राज्य में आप का जनाधार बढ़ने की संभावनाएं हैं। इसके चलते भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा होने की भी संभावना है, जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।
ग़ौरतलब है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में अचानक आप पार्टी और कांग्रेस दोनों दलों के मिलकर लड़ने के बजाय अलग- अलग चुनाव लड़ने और इसी बीच केजरीवाल की रिहाई को बहुत से लोग में आप पार्टी और भाजपा के बीच एक डील के रूप में देखा जा रहा है । कई लोगों के ये बेतुका लग सकता है पर लोगों का यह भी मानना है कि राजनीति में सब कुछ जायज़ है।
इस पूरी घटना में सीबीआई और ईडी की कार्यशैली पर भी सवाल उठे हैं। अदालत ने जमानत देने के फैसले में साफ़ कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना नहीं है, जिससे सीबीआई की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठे हैं। सीबीआई के पास अगर ठोस सबूत होते, तो जमानत का विरोध इतना तीव्र नहीं होता। इस वजह से विपक्ष ने सरकार पर राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप लगाए हैं।
केजरीवाल की रिहाई के बाद उनके प्रचार अभियान में तेजी आने की उम्मीद है, जिससे हरियाणा में आप पार्टी की स्थिति मजबूत हो सकती है। हालांकि, जमानत के बाद उन पर कुछ कानूनी प्रतिबंध हैं, जैसे कि वे मामले के बारे में सार्वजनिक रूप से बात नहीं कर सकते। बावजूद इसके, उनकी रिहाई से पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है।
कुल मिलाकर, केजरीवाल की रिहाई और हरियाणा चुनावों में उनकी सक्रियता कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर असर डाल सकती है।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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