रायपुर
रायपुर के प्रसिद्ध आरटीआई कार्यकर्ता और समाजसेवी कुणाल शुक्ला ने धमतरी निवासी 55 वर्षीय नीलेश रायचूरा के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई है। शिकायत के मुताबिक, रायचूरा बीते कई महीनों से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर (X) पर शुक्ला के परिवार, उनकी छोटी बेटी और पत्नी को लेकर अश्लील, अभद्र और फूहड़ टिप्पणियां कर रहा था।
कुणाल शुक्ला ने पहले इन पोस्टों को नजरअंदाज किया, लेकिन जब यह सिलसिला खतरनाक हद तक बढ़ने लगा और परिवार की शांति भंग होने लगी, तब उन्होंने क़ानूनी कार्रवाई का फैसला किया। उन्होंने 19 सितंबर 2024 को रायपुर के पुलिस अधीक्षक को शिकायत सौंपी, जिसकी पुष्टि के बाद 19 फरवरी 2025 को कोतवाली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 296 (अश्लील कृत्य) के तहत मामला दर्ज कर लिया।
कुणाल शुक्ला बताते हैं कि “हमारा रूटीन पूरी तरह से बिगड़ गया है। मेरा परिवार अब पहले की तरह सहज महसूस नहीं कर पा रहा। छोटी बच्ची को लेकर की गई अपमानजनक टिप्पणियों से हम बुरी तरह आहत हैं। अब मन में अजीब-सा डर बैठ गया है।”
यह घटना केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर तेजी से फैल रहे नैतिक पतन की एक मिसाल है। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स आक्रामक, असभ्य और व्यक्तिगत आक्षेपों से भरते जा रहे हैं। ट्रोलिंग, गाली-गलौज और मानहानि जैसी घटनाएं आम हो गई हैं, जिनमें विशेष रूप से परिवारों और महिलाओं को निशाना बनाया जाता है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर किस मानसिकता के लोग इस तरह की हरकतें करते हैं? विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तरह के लोग आमतौर पर निजी कुंठा, मानसिक असंतुलन, या दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति से ग्रस्त होते हैं। इंटरनेट की गुमनामी (Anonymity) उन्हें इस तरह के आपराधिक कृत्य करने के लिए और अधिक बढ़ावा देती है।
भारत में सोशल मीडिया पर अपमानजनक और अश्लील टिप्पणियों से निपटने के लिए कई कानूनी प्रावधान मौजूद हैं:
1. आईपीसी की धारा 354D – महिलाओं का ऑनलाइन पीछा करने (Cyber Stalking) पर तीन साल तक की सजा।
2. आईटी एक्ट की धारा 67 – अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने पर सजा और जुर्माना।
3. आईपीसी की धारा 499 और 500 – मानहानि के मामलों में दो साल तक की सजा।
4. आईपीसी की धारा 506 – धमकी देने पर सात साल तक की सजा।
इसके समाधान के लिये –
• सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कड़े नियम लागू करने चाहिए ताकि अभद्र भाषा और व्यक्तिगत हमलों को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई की जा सके।
• साइबर पुलिस को ज्यादा सक्रिय होना चाहिए ताकि शिकायतों का निपटारा तेज़ी से हो।
• लोगों को कानूनी जागरूकता होनी चाहिए ताकि वे डरकर चुप न बैठें, बल्कि उचित कार्रवाई करें।
• परिवारों की सुरक्षा के लिए सरकार को कड़े कानून लागू करने चाहिए, जिससे कि डिजिटल मंचों पर किसी की निजी ज़िंदगी प्रभावित न हो।
यह घटना इस बात का प्रतीक है कि सोशल मीडिया अब केवल अभिव्यक्ति का मंच नहीं रह गया, बल्कि कई लोगों के लिए कुंठा निकालने और दूसरों को अपमानित करने का जरिया बनता जा रहा है। आज इंटरनेट पर कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत कुंठाओं और मानसिक विकारों को गालियों और अभद्र टिप्पणियों के ज़रिए बाहर निकाल रहे हैं।
कुणाल शुक्ला की यह लड़ाई सिर्फ उनके परिवार की नहीं, बल्कि सभी परिवारों की सुरक्षा और सम्मान की लड़ाई है। ऐसे मामलों में पीड़ितों को चुप नहीं रहना चाहिए बल्कि कानूनी कार्रवाई करके समाज में एक मिसाल कायम करनी चाहिए।
(राजीव खरे ब्यूरो चीफ़ छत्तीसगढ़ )
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