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क्या केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार भंग न कर मौक़ा गँवा दिया ।

क्या केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार को भंग न करके एक सुनहरा मौक़ा गँवा दिया? यह सवाल वाजिब है और इसके जवाब में कई पहलू शामिल हैं। संविधान के दायरे में रहते हुए केंद्र सरकार का कोई भी फैसला बेहद पेचीदा और संवेदनशील माना जाएगा । एक तरफ़, अगर पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति काबू से बाहर होना साबित होता है तो सरकार को भंग करना एक सही कदम माना जाएगा पर मौजूदा हालात में यह कदम ना उठाना केंद्र की सूझ-बूझ और संविधान के प्रति सम्मान भी दर्शाता है।

इस फैसले में सही या ग़लत का फ़ैसला करना मुश्किल है, क्योंकि इसमें न सिर्फ़ संवैधानिक बल्कि राजनीतिक और सामाजिक पहलू भी शामिल हैं। ऐसे मामलों में सिर्फ़ सियासी लाभ उठाने के बजाय पूरे मसले को बारीकी से देखना और समझना ज़रूरी होता है। इस नाज़ुक मौके पर केंद्र ने एक सधा हुआ फैसला लिया है या कोई मौका चूक गया, यह वक्त ही बताएगा।

कोलकाता रेप कांड ने देशभर में गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है, और पश्चिम बंगाल सरकार की बर्खास्तगी की मांग हो रही है। ममता सरकार पर कानून-व्यवस्था की अनदेखी, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण की नीति अपनाने के आरोप लगे हैं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार ममता सरकार की आलोचना की है, लेकिन इसके बावजूद सरकार पर कोई असर नहीं हुआ है। ममता सरकार का रवैया ऐसा प्रतीत होता है मानो वह भारत के संवैधानिक दायरे से बाहर हो।

अदालतों ने ममता सरकार द्वारा सत्ता का दुरुपयोग रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय निकाय भर्ती घोटाले और शिक्षक भर्ती घोटाले को बड़ी साजिश का हिस्सा माना है। इसके अलावा, कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की बिना यूपीएससी की अनुमति के पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति की याचिका भी खारिज कर दी। रामनवमी शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसा की घटनाओं की एनआईए से जांच कराने के आदेश के खिलाफ सरकार की याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में ‘द केरल स्टोरी’ पर लगे बैन को भी हटा दिया और ममता सरकार की आलोचना करते हुए पूछा कि जब फिल्म पूरे देश में चल सकती है, तो बंगाल में क्या समस्या है? कोर्ट ने कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है।

कोलकाता के रेप और मर्डर केस ने पूरे देश को झकझोर दिया है, जिसमें पुलिस और आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। आरोप है कि इस जघन्य अपराध को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की गई और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई। सुप्रीम कोर्ट ने ममता बनर्जी की सरकार और कोलकाता पुलिस की कड़ी आलोचना की, खासकर तब जब आरोपी संजय रॉय की बाइक पुलिस कमिश्नर के नाम पर रजिस्टर पाई गई। अदालत ने सवाल उठाया कि पुलिस की गाड़ी आरोपी के पास कैसे पहुंची और इतनी बड़ी चूक कैसे हुई? लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि इस कांड में सत्तारूढ़ टीएमसी के दो विधायकों के परिजन व कालेज का स्टाफ़ भी शामिल हैं, जिन्हें बचाने में ही पुलिस लगी है। पुलिस के शीर्ष अधिकारियों तक की भूमिका इस केस में संदेह के घेरे में है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण में फटकार लगाते हुए कहा कि पुलिस और अस्पताल प्रशासन ने इस मामले को दबाने की कोशिश की। देरी से एफआईआर दर्ज करना और क्राइम सीन की ठीक से घेराबंदी न करना पुलिस की नाकामी को दर्शाता है। इस घटना के बाद कोलकाता में हुए विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया, जिसमें कई निहत्थे प्रदर्शनकारी घायल हुए। यह मामला सिर्फ एक अपराध तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न उठाता है। ममता सरकार की निष्क्रियता और पुलिस की भूमिका ने राज्य में सुरक्षा और न्याय प्रणाली पर जनता का विश्वास कमजोर कर दिया है।

राज्य सरकार को भंग करने के लिए जो आवश्यक परिस्थितियों प्रमुख होती हैं, उनमें राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता, नागरिक अधिकारों का उल्लंघन, तत्संबंधी राज्यपाल की रिपोर्ट, और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी। पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखने या संवैधानिक संस्थानों को संचालित करने में पूरी तरह असफल दिख रही है । इसे संवैधानिक तंत्र की विफलता मानकर राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेज सकते हैं, और राष्ट्रपति शासन का निर्णय सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक समीक्षा के तहत संवैधानिक मानदंडों के अनुरूप लागू किया जा सकता है।

ममता सरकार भूल रही है कि बहुमत का मतलब संवैधानिक व्यवस्था से खिलवाड़ नहीं होता। कानून को अपनी सुविधा के लिए नहीं बदला जा सकता। विपक्षी दल ममता सरकार के भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था पर अदालतों की आलोचना के बावजूद चुप हैं। जब तक वे तुष्टिकरण की नीति छोड़कर सार्वजनिक रूप से विरोध नहीं करेंगे, मतदाताओं का विश्वास पाना मुश्किल होगा।

पश्चिम बंगाल सरकार को भंग न करने का निर्णय जटिल और संवेदनशील है, जिसमें कई संवैधानिक, राजनीतिक, और सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है। राज्य सरकार को भंग करना एक गंभीर कदम होता है, जिसे केवल विशेष परिस्थितियों में उठाया जाना चाहिए, जैसे कानून और व्यवस्था की विफलता या सांप्रदायिक हिंसा। हालांकि, इस निर्णय के पक्ष में तर्क दिए गए हैं कि संविधान का सम्मान बनाए रखना और राज्य में राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। इस निर्णय को राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देखा जा सकता है, जिससे केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव बढ़ सकता है। लोग यह कह सकते हैं कि इसके बजाय, केंद्र सरकार ने कानून और व्यवस्था के अन्य सुधारात्मक उपायों पर ध्यान देना चाहिए था।

पश्चिम बंगाल सरकार भंग करने से एक और तो भाजपा सरकार को राजनीतिक लाभ तो होगा ही पर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगने से न सिर्फ़ देश में यह मैसेज जाएगा कि हर राज्य को अपने यहाँ क़ानून व्यवस्था प्रभावी रखनी होगी। अपराधियों और उनको प्रश्रय दे रहे नेताओं को भी उन पर कड़ी कार्यवाही का डर रहेगा। वहाँ क़ानून व संवैधानिक व्यवस्था ठीक की जा सकेगी और धार्मिक उन्माद पर बेहतर नियंत्रण रख आम जनता को बेहतर सुरक्षा दिलाई जा सकेगी। साथ ही पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश देश से आ रहे घुसपैठियों और आतंकियों को रोकने में मदद मिलेगी , और सीमा पर निगरानी में स्थानीय असहयोग पर बेहतर लगाम लगाई जा सकेगी।और वहाँ की तमाम परिस्थितियों को देख बंगाल में राज्य सरकार भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाना देश हित में अपेक्षाकृत बेहतर लगता है।

कोलकाता रेप की इस घटना पर देशव्यापी आक्रोश का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस घटना की निंदा करते हुए कहा “स्तब्ध और व्यथित’ राष्ट्रपति ने कहा कि ‘कोई भी सभ्य समाज बेटियों और बहनों पर इस तरह के अत्याचार की अनुमति नहीं दे सकता। इस घटना ने राष्ट्र की अंतरात्मा को झकझोर दिया है राष्ट्र का आक्रोशित होना निश्चित है, और मैं भी आक्रोशित हूँ और भयभीत भी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर ग़ुस्सा व दुख जाहिर करने के साथ ही इस पर अंकुश लगाने का आह्वान करते हुए बुधवार को कहा कि बस! बहुत हो चुका।उनके इस कथन को पश्चिम बंगाल सरकार को चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।
पश्चिम बंगाल की ममता सरकार का क्या होगा फौरी तौर पर यह अभी कहना मुनासिब नहीं होगा, क्योंकि यह निर्णय अभी भविष्य के गर्भ में है। पर यदि बंगाल सरकार और पुलिस इस प्रकरण में दोषपूर्ण कार्यवाही करती है तो केंद्र सरकार को ऐसा कड़ा कदम उठाना चाहिए कि दोष पाए जाने पर दोषी भले ही बड़ा से बड़ा नेता, पुलिस का अधिकारी या रसूखदार ही क्यों न हो, उनको कठोरतम सजा मिले ताकि देश में क़ानून का इक़बाल बुलंद हो और यह दूसरों के लिये नज़ीर बन सके।

राजीव खरे- राष्ट्रीय ब्यूरो

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