लंबे समय से भारत का साथी रहा बांग्लादेश अब चीन के प्रभाव में आ गया है। लंबे समय से इस्लामिक कट्टरपंथ से बची शेख हसीना की सत्ता अंततः कमजोर पड़ कर चीन की आर्थिक ताकत के सामने हार गई। चीन ने बांग्लादेश की अस्थिरता का फायदा उठाते हुए अपने “वन बेल्ट, वन रोड” पहल को आगे बढ़ाने के लिए पहले चतुराई से सत्ता परिवर्तन का समर्थन किया। अब, बांग्लादेश की सत्ता सेना के हाथों में है, और चीन को अपने हितों के लिए नई सरकार को नियंत्रित करने का अच्छा अवसर मिल गया ।
इस बदलाव ने भारत के लिए एक कठिन चुनौती पेश की है, क्योंकि उसकी विदेश नीति पाकिस्तान तक ही कमियाँ सामने आ गई । बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन ने भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती खड़ी कर दी है, खासकर जब श्रीलंका और मालदीव जैसे पड़ोसी देश पहले ही चीन के प्रभाव में आ चुके हैं। भारत, जो बांग्लादेश की आर्थिक सफलता के बावजूद, उसके राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता को रोकने में असमर्थ रहा, अब अपने पड़ोसियों को चीन के प्रभाव से बचाने में पूरी तरह से विफल हो रहा है।
जिन हालात में और जिस तरह से खूनखराबे के साथ बांग्लादेश में यह सत्ता कट्टरपंथियों के हाथ में गई है उससे भारत के लिये बड़ी समस्या पैदा हो गई है। बांग्लादेश में अराजकता की स्थिति है, अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार आरंभ हो गए हैं और लाखों हिंदू शरणार्थी भारत आने की कोशिश में हैं। वहाँ की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना पहले ही भारत में शरण ले चुकी हैं और बांग्लादेश सरकार भारत से उन्हें वापस सौंपने की माँग कर रही है।
भारत पहले से ही बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों से त्रस्त है। बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठिये आमतौर पर बॉर्डर के रास्ते पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा जैसे राज्यों में बस जाते हैं। बांग्लादेश बॉर्डर पर कई छोटी-बड़ी नदियों और पहाड़ी इलाकों के कारण घुसपैठियों को रोकना भी मुश्किल हो जाता है। बांग्लादेश में मुस्लिम आबादी अधिक है। ऐसे में भारी संख्या में आने वाले घुसपैठियों की वजह से इन राज्यों में डेमोग्राफी बदलने का भी खतरा रहता है।
बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों के साथ आतंकवादी भी भारत की सरहद में प्रवेश कर सकते हैं। बांग्लादेश में तख्तापलट होने से पहले पीएम शेख हसीना ने भी भारत को आगाह किया था। शेख हसीना ने दो टूक शब्दों में कहा कि घुसपैठियों में छिप कर कई आतंकवादी भी बांग्लादेश के रास्ते भारत में जा सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में भी दावा किया गया है कि बांग्लादेश में तख्तापलट के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का हाथ है। ऐसे में मुमकिन है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ ISI के खुफिया एजेंट्स भी भारत में अवैध तरीके से एंट्री कर सकते हैं। जाहिर है अगर ऐसा हुआ तो ये देश के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।ऊपर से चीन के प्रभाव में फँसी बांग्लादेश की कमजोर सरकार का रुख़ भारत विरोधी होने की पूरी संभावना है जो भारत के लिये नित नई परेशानी पैदा करती रहेगी ।
अब लाखों शरणार्थियों को देश में पनाह देना भारत के लिए आर्थिक संकट पैदा कर सकता है। पश्चिम बंगाल, असम और नॉर्थ ईस्ट राज्यों में अवैध शरणार्थियों के जाने से स्लम एरिया में बढ़ोत्तरी होगी। इसके साथ ये घुसपैठिये राज्य के संसाधनों पर भी कब्जा करेंगे, जिससे पूर्वी राज्यों में गरीबी कम होने की बजाए बढ़ सकती है।
हालाँकि बांग्लादेश में आए संकट का एक सकारात्मक असर भारत पर दिखाई दे सकता है। इस समय बांग्लादेश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री दुनिया की टॉप इंडस्ट्री में एक है। यहां बने कपड़े दुनियाभर में एक्सपोर्ट किए जाते हैं। बांग्लादेश के मौजूदा संकट के कारण इंडस्ट्री से जुड़े लोग भारत की तरफ रुख कर सकते हैं।बांग्लादेश से भारत कई फार्मास्यूटिकल फॉर्मूलेशन के साथ ही कच्चा माल भी आयात करता है, क्योंकि बांग्लादेश फार्मास्यूटिकल और जेनेरिक दवाओं का भी एक प्रमुख निर्यातक बन गया है।
ऐसे ही उच्च गुणवत्ता वाले चमड़े का आयात भी बांग्लादेश से किया जाता है, जिससे पर्स, बैग, जूते बनाए भी जाते हैं और ये सामान भी बांग्लादेश से मंगाए जाते हैं ।
पर इस पूरे हालात में ये लाभ संभावित ख़तरों की तुलना में बहुत कम हैं क्योंकि एक कंगाल और अराजक पड़ोसी हमेशा हमारे लिये सरदर्द ही बना रहेगा। राजनीतिक रूप से भी वर्तमान भाजपा सरकार के लिये भी एक नई चिंता पैदा हो गई है कि वह हिंदुत्व के संरक्षक की छवि बंग्लादेशी हिंदुओं के प्रति निरपेक्ष रह कर कैसे बचाएगी । उसके लिये साँप छछून्दर की स्थिति है यदि हमारी सरकार लगभग एक करोड़ शरणार्थियों को देश में आने देती है तो अनेकों आर्थिक व सामाजिक समस्याएँ पैदा होंगी । और यदि वह उन्हें नहीं आने देती है तो वे निश्चित ही बांग्लादेश में अत्याचारों के तले कुचले जाऐंगे, जिससे सरकार की हिंदुत्व की रक्षा मसीहा वाली छवि बुरी तरह से प्रभावित होगी , जिसका असर उसके हिंदू वोट बैंक पर पड़ेगा ।
भारत सरकार के लिये यह एक अग्निपरीक्षा का समय है और देखना यह है कि वह इसका सामना कैसे करेगी।
( राजीव खरे- अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो)
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