जबलपुर
संत रामपाल जी ने बताई पितरों की मुक्ति की शास्त्रानुकूल सर्वोत्तम विधि –
जबलपुर – बीते रविवार 28 जनवरी को मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के ध्रुवतारा रिजॉर्ट में संत रामपाल जी महाराज का एक दिवसीय विशाल सत्संग सम्पन्न हुआ। जहां जबलपुर, नरसिंहपुर, कटनी आदि जिलों के दूर-दूर इलाकों से श्रद्धालु सत्संग सुनने पहुंचे। वहीं सत्संग में संत रामपाल जी ने बताया कि हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद कई तरह के कर्मकांड जैसे श्राद्ध, पिंडदान किये जाते हैं। जिन्हें आवश्यक रूप से करने के लिए हिन्दू धर्म के कथावाचकों, संतों, शंकराचार्यों द्वारा वकालत की जाती है। साथ ही, श्राद्ध करने से पितरों की मुक्ति भी बताई जाती है।
जबकि दर्शकों…..पवित्र गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा गया है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, भूत, पितृ पूजने वाले अर्थात श्राद्ध, पिण्डदान करने वाले भूत, पितृ बनते हैं। जिससे सिद्ध होता है कि श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण तथा मृत्यु के उपरांत किये जाने वाले सभी कर्मकांड शास्त्रविरुद्ध मनमाना आचरण है। जिसके विषय में श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा गया है “शास्त्रविधि को त्यागकर जो व्यक्ति मनमाना आचरण करता है उसे न सुख प्राप्त होता है, न ही उनकी कोई गति अर्थात मोक्ष होता है। जिससे सिद्ध है कि श्राद्ध, पिंडदान करने से पितरों की मुक्ति संभव नहीं है।
वहीं संत रामपाल जी ने बताया कि श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश, अध्याय 15 श्लोक 55-56 पृष्ठ 153 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानि शास्त्रानुकूल भक्ति करने वाले साधक को भोजन करवाया जाए, तो वह श्राद्ध भोज में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित उनके सर्व पितरों का उद्धार कर देता है। यही प्रमाण परमेश्वर कबीर जी ने भी दिया है, “कबीर, भक्ति बीज जो होये हंसा,
तारूं तास के एक्कोतर बंशा।” जोकि पितृ तर्पण, श्राद्ध की सर्वोत्तम विधि है।
रिपोर्ट – निधि सिंह,
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