इंदौर
श्री नवपाद ओलीजी के पाँचवे दिन मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने पाँचवे साधुपद के विषय में प्रवचन दिया। साधुपद सिद्धचक्र के केंद्र में है। साधु का वर्ण काला है। युद्ध में शत्रु से स्वयं को बचाने के लिये बख्तरबंद पहना जाता है जो काले वर्ण का होता है। इसी तरह साधु भी कर्म की सेना के सामने युद्ध करने निकला है। साधु के शरीर पर रहा हुआ मैल बख्तर का काम कर रहा है। साधु भी राग,द्वेष एवं चारों कषायोँ से युद्ध करने निकलता है इसलिए साधु भगवंत का काला वर्ण है। साधु 27 गुणों से युक्त होते हैं (22 परिशय एवं पाँच महावृत) ऐसे गुरु भगवंत की हमको उपासना करना चाहिए। साधु बनने की लालसा सभी श्रावक में होना चाहिए। पंचपरमेष्ठि रूपी महल में प्रवेश पाने के लिये साधु बनना पड़ता है तभी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। श्रावक की व्याख्या है कि, उसमें संयम भाव होना चाहिए, परमात्मा की भक्ति की लालसा हो एवं उनकी आज्ञा का पालन करे।
साधु के गुण : –
(1) सहन करे वह साधु – कोई भी परिस्थिति हो आचार-विचार नहीं त्यागना है। सहनशीलता साधु का विशेष गुण है। रात्रि में कितनी भी भूख लगे तो भी भोजन नहीं करना। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ भी सहन करना है।
(2) सहाय करे वह साधु – साधु भगवंत हर संभव सहायता के लिये तत्पर रहते हैं। अपराधी-निरपराधी हो सभी की सहाय करना साधु का कार्य है। जीवों की जयना भी सहाय के समान है।
(3) सरल हो वह साधु – साधु में सरलता होना आवश्यक है। उग्रवादी एवं कठोर न हो वह साधु। आक्षेप और कटाक्ष नहीं करते हों।
(4) समर्पण करे वह साधु – गुरु के प्रति समर्पण भाव हो एवं परमात्मा के वचनों के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए।
(5) समभाव रखे वह साधु – मध्यस्थ भाव रखे वह साधु।
राजेश जैन युवा ने बताया की ओलीजी की आराधना में 46 सादे और 20 वर्ण उड़द के आयम्बिल हुए
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘रखते हो मोक्ष की कामना, साधु बनकर करो कर्मों की सेना का सामना”
राजेश जैन युवा 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी
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