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गुरु भगवंत की निकटता, परमात्मा की प्राप्ति के समान है:– मुनिराज श्री ऋषभ रत्नविजय जी

इंदौर मध्य प्रदेश

इंदौर मध्य प्रदेश मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने कर्म की मलिनता को साफ करने के लिये सद्गुरु से जुड़कर जीवन को स्वर्णिम बनाने के संबंध में 5 स्टेप्स बताए।
1. निकटता (Near) : गुरु भगवंत के निकट (मर्यादा में) रहकर ज्ञान एवं गुणों की प्राप्ति की जा सकती है एवं दोष दूर होते हैं। महात्मा की निकटता से कल्याण संभव है। साधु की निकटता धर्म का प्रारंभ है।


2. श्रवण (Hear) : साधु भगवंत की वाणी श्रवण करना आवश्यक कार्य है। प्रभु की अनुपस्थिति में उनके वचनों को हम तक पहुँचाने का कार्य गुरु भगवंत ही करते हैं। परमात्मा से प्रवाहित होकर ज्ञान गुरु के माध्यम से हम तक आता है। जिनेश्वर की वाणी श्रवण करने वाले को श्रावक कहते हैं। जिनवाणी श्रवण से जीवन में टरनिंग पॉइंट आ सकता है।
3. भय (Fear) : साधु-भगवंत के पास जाने से पापों के प्रति भय उत्पन्न होता है और नये पाप करना नहीं हैं और जो हो गए उनकी क्षमायाचना करना और भव आलोचना लेना है। पापों के प्रायश्चित से धर्म के प्रति भावना प्रगाढ़ होती है। मिथ्यात्व का परिहरण और सम्यक्त्व का परिवरण करो। पापों का प्रायश्चित केवलज्ञान प्राप्ति का कारण बन जाता है।
4. आँसू (Tear) : पाप के भयंकर फल जानकार पश्चाताप में आँसू आना भी कर्म की मलिनता को साफ करने का कार्य है। यह आँसू हमको आगे पाप नहीं करने कारण बन सकते हैं। अश्रु आने से आत्मा का भारीपन हल्का हो जाता है। संगम का कल्याण नहीं हो पाने के कारण भगवान महावीर को भी अश्रु आ गये थे। जब भगवान महावीर का निर्वाण हुआ तब गौतम स्वामी के अश्रु भगवान से विरह के कारण निकले थे।


5. प्रीतम (Dear) : परमात्मा से प्रीति है इसलिये केवल उनके सन्मुख ही मस्तक झुके। वीतराग परमात्मा के सामने सिर झुकाना चाहिए। परमात्मा के समक्ष सिर नमन अर्थात् “खास के लिये खलास होना पड़े तो गम नहीं” राजेश जैन युवा ने बताया की
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘शौक की अधिकता शोक में बदल जाती है”
राजेश जैन युवा 94250-65959

रिपोर्ट अनिल भंडारी

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