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मनुष्य के लिये सबसे उत्तम दिशा धर्म की है ;- मुनिराज श्री ऋषभ रत्नविजय जी

इंदौर मध्य प्रदेश

इंदौर मध्य प्रदेश मुनिराज श्री ऋषभ रत्नविजयजी ने मनुष्य जीवन की दिशा क्या हो, इस संबंध में प्रवचन दिया। जैन शासन के अनुसार 10 दिशायें होती हैं। मनुष्य को दिशा तय करना होती है कि, उसको कहाँ जाना है। वर्तमान में हम सभी जंबूदीप के भरत क्षेत्र में निवास करते हैं। तीन खंड उत्तर दिशा में एवं तीन खंड दक्षिण दिशा में होते है और चक्रवर्ती राजा इन छः खंडों का अधिपति होता है। अभी भगवान महावीर का शासनकाल है एवं हम भगवान पार्श्वनाथ की संतानिया है। जीवन की उचित दिशा तय करके सही यात्रा करना है। उचित दिशा के मार्गदर्शक परमात्मा हैं जो धर्म के लक्ष्य को प्राप्त करवाते हैं।

 


1. वीतराग भाव – परमात्मा के दर्शन करना उचित दिशा है जिसके कारण वीतराग भाव प्रकट हो सकता है। वीतरागी को देखकर हम राग – द्वैष से परे रह सकते हैं एवं आश्चर्यजनक सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। आत्मा ही परमात्मा है जो स्वयं में प्रभु के दर्शन करवाती है।
2. त्याग भाव – महात्मा के चरण स्पर्श से त्याग भाव की सही दिशा मिल जाती है। ‘प्रभु के चरण की शरण में मरण हो ऐसा हमारा प्रण हो’। चरण में ही पूर्ण ऊर्जा होती है इसिलिये चरण स्पर्श का विधान है।
3. भक्ति भाव – साधर्मिक है तो समाजमनुष्य के लिये सबसे उत्तम दिशा धर्म की है ;- मुनिराज श्री ऋषभ रत्नविजय जी
इंदौर मध्य प्रदेश मुनिराज श्री ऋषभ रत्नविजयजी ने मनुष्य जीवन की दिशा क्या हो, इस संबंध में प्रवचन दिया। जैन शासन के अनुसार 10 दिशायें होती हैं। मनुष्य को दिशा तय करना होती है कि, उसको कहाँ जाना है। वर्तमान में हम सभी जंबूदीप के भरत क्षेत्र में निवास करते हैं। तीन खंड उत्तर दिशा में एवं तीन खंड दक्षिण दिशा में होते है और चक्रवर्ती राजा इन छः खंडों का अधिपति होता है। अभी भगवान महावीर का शासनकाल है एवं हम भगवान पार्श्वनाथ की संतानिया है। जीवन की उचित दिशा तय करके सही यात्रा करना है। उचित दिशा के मार्गदर्शक परमात्मा हैं जो धर्म के लक्ष्य को प्राप्त करवाते हैं।
1. वीतराग भाव – परमात्मा के दर्शन करना उचित दिशा है जिसके कारण वीतराग भाव प्रकट हो सकता है। वीतरागी को देखकर हम राग – द्वैष से परे रह सकते हैं एवं आश्चर्यजनक सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। आत्मा ही परमात्मा है जो स्वयं में प्रभु के दर्शन करवाती है।
2. त्याग भाव – महात्मा के चरण स्पर्श से त्याग भाव की सही दिशा मिल जाती है। ‘प्रभु के चरण की शरण में मरण हो ऐसा हमारा प्रण हो’। चरण में ही पूर्ण ऊर्जा होती है इसिलिये चरण स्पर्श का विधान है।
3. भक्ति भाव – साधर्मिक है तो समाज है अन्यथा हमारा अस्तित्व नहीं है। साधर्मिक की सहायता ही उचित दिशा है जिस ओर जाना सही मार्ग है। यह भक्ति बाँस के पेड़ के समान होना चाहिये जो एक दूसरे को सहारा देते हैं।
4. प्रीति भाव – अपने परिवार स्वजन के लिये प्रेम/प्रीति भाव प्रकट करना धर्म के लिये सच्चा मार्ग है।
5. मैत्री भाव – जीवों के प्रति मैत्री भाव रखना ही उचित दिशा में अग्रसर होना है। जीवात्मा को देखने से मैत्री का झरना बहे ऐसी भावना होना अपेक्षित है।
6. दया भाव – दुःखी प्राणी को देखकर दया भाव जाग्रत करना सही दिशा में कदम उठाने के समान है।
सही दिशा का चयन करके सही यात्रा की ओर अग्रसर होने से जीवन का कल्याण संभव है।
राजेश जैन युवा ने बताया की मुनिवर का नीति वाक्य
“‘दिशा बदलों, दशा बदल जाएगी” रिपोर्ट अनिल भंडारी है अन्यथा हमारा अस्तित्व नहीं है। साधर्मिक की सहायता ही उचित दिशा है जिस ओर जाना सही मार्ग है। यह भक्ति बाँस के पेड़ के समान होना चाहिये जो एक दूसरे को सहारा देते हैं।
4. प्रीति भाव – अपने परिवार स्वजन के लिये प्रेम/प्रीति भाव प्रकट करना धर्म के लिये सच्चा मार्ग है।
5. मैत्री भाव – जीवों के प्रति मैत्री भाव रखना ही उचित दिशा में अग्रसर होना है। जीवात्मा को देखने से मैत्री का झरना बहे ऐसी भावना होना अपेक्षित है।
6. दया भाव – दुःखी प्राणी को देखकर दया भाव जाग्रत करना सही दिशा में कदम उठाने के समान है।
सही दिशा का चयन करके सही यात्रा की ओर अग्रसर होने से जीवन का कल्याण संभव है।
राजेश जैन युवा ने बताया की मुनिवर का नीति वाक्य
“‘दिशा बदलों, दशा बदल जाएगी”

 

रिपोर्ट अनिल भंडारी

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