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श्री तिलकेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ धार्मिक पारमार्थिक सार्वजनिक न्यास एवं श्री संघ ट्रस्ट इंदौर

इंदौर मध्य प्रदेश आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 का
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक – 05/09/2023

सभी समय पुण्य अर्जन ही धर्म का सृजन है
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने आज पुण्य और पाप के भेद की व्याख्या की। जो अभिलाषा करें और वह पूर्ण हो यह हमारा पुण्योंदय है। पुण्य और पाप मिलकर चार भेद बनते हैं।
1. पुण्यानुबंधी पुण्य – पूर्व भव में धर्म की साधना की और उसके प्रभाव से इस जन्म में उत्तम सामग्री मिली एवं जिन शासन का योग मिला व आगे भी पुण्यअर्जन होगा अर्थात पुण्यकाल में पुण्य-अर्जन। हमारे पास साधन व सामग्री है और उसको भोग सकते हैं एवं जब चाहे उसको छोड़ने की इच्छा रखते है। (है एवं है) पूर्व भव के पुण्य से इस भव में प्राप्त है और भविष्य के लिये पुण्य कर रहा है,
2. पापानुबंधी पुण्य – पूर्व भव में धर्म की साधना की और उसके प्रभाव से इस जन्म में उत्तम सामग्री मिली एवं जिन शासन का योग मिला परंतु इस भव में पाप चालू हैं, छूट नहीं रहे हैं और पाप का बंध हो रहा है। हमारे पास साधन व सामग्री है किन्तु उनकी आसक्ति के कारण उसको छोड़ नहीं सकते जो दुर्गति का कारण बनता है । (है एवं नहीं है) पूर्व भाव के पुण्य से इस भव में प्राप्त है और भविष्य के लिये पुण्य नहीं कर रहा है
3. पुण्यानुबंधी पाप – पूर्व भव के पाप के उदय से गरीबी है फिर भी वर्तमान में आप धर्म साधना कर रहे हो और भविष्य के लिये साधना चल रही हो। हमारे पास साधन व सामग्री नहीं है और न ही उसको भोग सकते हैं परंतु वह आसक्ति में नहीं है और जब चाहे उसको छोड़ने की इच्छा रखते है। (नहीं है एवं है) पूर्व भव के पाप से इस भव में प्राप्त नहीं है और भविष्य के लिये पुण्य कर रहा है
4. पापानुबंधी पाप – पूर्व भव में पाप किया और कुछ अच्छा किया नहीं और वर्तमान में भी कुछ भी धर्म साधना नहीं कर रहे हो और न ही भविष्य के साधना कर रहे हैं। पापों के कारण हमारे पास साधन व सामग्री नहीं है और न ही उसको भोग सकते हैं किन्तु उनकी आसक्ति के कारण उसको छोड़ नहीं सकते जो दुर्गति का कारण बनता है। (नहीं है एवं नहीं है) पूर्व भव के पाप से इस भव में प्राप्त नहीं है और भविष्य के लिये पुण्य नहीं कर रहा है।

 


मुनिवर का नीति वाक्य
“हर अवसर पर पुण्य अर्जन और पाप विसर्जन हो”
श्री राजेश जैन युवा ने जानकारी दी कि, सीमित द्रव्य के विशेष एकासने की तपस्या का आयोजन है जिसमें लगभग 100 श्रद्धालु सम्मिलित हुए जिसके लाभार्थी श्री शांतिलाल जी अशोक कुमार ललित कुमार संघवी परिवार बोलिया वाले है। इस अवसर पर मुकेश पोरवाल, सुरेन्द्र रांका, मनीष सकलेचा, कटारिया, व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं।

 

 

राजेश जैन युव 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी

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