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अपेक्षाओं का अंत नहीं है इसका अंत ही उत्तम है:- आचार्य श्री वीररत्न सुरीश्वर जी म.सा.

इंदौर मध्य प्रदेश श्री तिलकेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ धार्मिक पारमार्थिक सार्वजनिक न्यास एवं श्री संघ ट्रस्ट इंदौर
आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 का
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक – 16/08/2023
अपेक्षाओं का अंत नहीं है, इनका अंत ही उत्तम है
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने बताया जिन शासन की स्थापना बैशाख सुदी एकादश को हुई थी और यथार्थ में वही हमको स्वतंत्रता (मुक्ति) दिला सकता है। कर्मों के बंधनों से जकड़ी हुई आत्मा को मुक्त करने के लिये प्रभु के बताये मार्ग पर चलना ही पड़ेगा। जीवन में दुःख अपेक्षा के कारण आता है। मानव की मौलिक अपेक्षायेँ क्या होती हैं एवं कैसे रखनी चाहिये को चार प्रकार से समझ सकते है।
1. सत्य की अपेक्षा – व्यक्ति सभी से सत्य की अपेक्षा रखता है एवं उसको खोजता रहता है। हमारी अपेक्षाएं तभी पूरी होंगी जब हम भी वैसा ही आचरण करें। झूट-फरेब करने वाले की भी मौलिक इच्छा होती है की सत्य मिले। परंतु इसको प्राप्त करने के लिये खुद को सत्य पर खरा उतरना ज़रूरी है।
2. ज्ञान की अपेक्षा – अज्ञान के अंधेरे को दूर करने के लिये उजाले की अपेक्षा रहती है। सभी को अपने-अपने क्षेत्र के ज्ञान की भूख है। परंतु आध्यात्मिक भूख की भी अपेक्षा रखना आवश्यक है तभी मुक्ति संभव है। सरस्वती माँ से भी यही अपेक्षा रखते है कि अज्ञान रूपी अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश दे। आत्मा के हित के लिये ज्ञान की अपेक्षा होती है।
3. सुख की अपेक्षा – सभी सुख की अपेक्षा रखते है और दुःख होने पर परमात्मा को याद करते है। सुख में भगवान का नाम लिया हो तो दुःख नहीं आने की संभावना रहती है। मन की इच्छा ही हमारा सुख है। महाभारत में कुंती भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती है कि हमारे जीवन में हमेशा दुःख आयें जिससे हम आपको हमेशा याद करते रहें। मनुष्य भगवान का ध्यान तब तक नहीं करता है जब तक उस पर विपत्ति न आये।
4. शक्ति की अपेक्षा – हर व्यक्ति चाहता है कि उसके पास शक्ति हो और कोई भी उस पर उंगली न उठा पाए। कर्मों को दबाने की शक्ति हम में नहीं है। भगवान महावीर को सभी इसलिये याद करते हैं क्योंकि उन्होंने अनार्य देश में भी जाकर उपसर्ग सहे और क्षमा किया यही उनकी शक्ति थी। पुण्य के उदय से शक्ति काम आती अन्यथा वह समाप्त हो जाएगी। संपत्ति और शक्ति को प्राप्त करने के लिये शक्ति अनुरूप अपेक्षा उचित है। प्रभु भक्ति से शक्ति की प्राप्ति होती है। राजेश जैन युवा ने बताया की मुनिवर ने अपेक्षाओं का बहुत ही सुंदर चित्रण किया कि अपेक्षाएं क्या कर सकती है एवं हमको किस प्रकार से इच्छा एवं अपेक्षा रखना चाहिये। यदि अपेक्षाएं पूरी करने गये तो सारा जीवन लग जायेगा परंतु अपेक्षाएं पूरी नहीं होंगी। इसलिये अपनी अपेक्षाओं को सीमा में बांधकर रखना ही उचित है। अपेक्षाओं के अश्वों को तप की लगाम से नियंत्रित करना मुक्ति का मार्ग है। प्रवचनकार मुनिवर के सुंदर, सटीक व सरल प्रवचन अवश्य ग्रहण करें।
मुनिवर का नीति वाक्य-
“शक्ति काल में सहन शक्ति, आत्म शक्ति को असीमित करती है “
इस मौके पर तिलकेश्वर पार्श्वनाथ जैन युवा संघ एवं तिलकेश्वर जैन युवा संघ के पदाधिकारी व समाज के गणमान्य श्रावक के अलावा पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं। दिलीप भाई शाह ने संघ के आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी। रिपोर्ट अनिल भंडारी

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