छिंदवाड़ा जिले के चांदामेटा से ग़ायब हुई दो नाबालिग बेटियाँ—का 73 दिन बाद भी कोई सुराग नहीं। सवाल यह है कि जिन बेटियों को स्कूल जाते वक्त सुरक्षा की गारंटी मिलनी चाहिए थी, वे कहाँ ग़ायब हो गईं और प्रशासन क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठा है ?
यह सिर्फ़ एक परिवार का दुःख नहीं, बल्कि पूरे समाज की अस्मिता और सुरक्षा पर सीधा हमला है। अगर यह मामला किसी प्रभावशाली वर्ग का होता, तो प्रशासन दिन-रात एक कर देता। लेकिन यहाँ ? 73 दिन बीत गए और न जांच तेज़ हुई, न जिम्मेदारों पर कार्रवाई।
कुंभकरण की नींद में प्रशासन– यह वही तंत्र है, जो जनता के टैक्स पर पलता है, जनता की सुरक्षा का दावा करता है, और ज़रा-सा विरोध होते ही डंडा चलाने में माहिर है। लेकिन जब बात समाज की बेटियों की आती है, तो यही तंत्र कुंभकरण की नींद में सो जाता है। कागज़ों में “जाँच” और “प्रक्रिया” चलते रहते हैं, पर ज़मीन पर नतीजा शून्य।
बेटियों के लिए न्याय आज भी ‘मृगतृष्णा’ बना हुआ है।
एनसीआरबी की भयावह तस्वीर..
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि मध्यप्रदेश आदिवासी व दलित बहुल जिलों में हर साल हज़ारों नाबालिग लड़कियाँ ग़ायब हो रही हैं। इनमें से बड़ी संख्या आज भी बरामद नहीं हो पाती। यह आँकड़े कोई कागज़ी खेल नहीं, बल्कि उस भयावह सच्चाई का आईना हैं जहाँ व्यवस्था बेटियों की सुरक्षा देने में नाकाम है। ब्यूरो छिंदवाड़ा _अमित मिश्रा
👉 यह मामला प्रशासन की “नाकामी” से आगे बढ़कर अब “जनता के विश्वास पर हमला” बन चुका है।