नही मानते सूचना अधिकार अधिनियम को पाठशाला इंग्लिश मीडियम हाई स्कूल के प्रभारी प्राचार्य और संचालक, होनी चाहिए अनियमितताओं की जांच तो खुलेगी पोल, जनपद शिक्षा केंद्र बहोरीबंद का मामला

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नही मानते सूचना अधिकार अधिनियम को पाठशाला इंग्लिश मीडियम हाई स्कूल के प्रभारी प्राचार्य और संचालक, होनी चाहिए अनियमितताओं की जांच तो खुलेगी पोल, जनपद शिक्षा केंद्र बहोरीबंद का मामला
कटनी/बहोरीबंद
कटनी | शिक्षा किसी भी समाज और राष्ट्र की प्रगति की नींव होती है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा प्राप्त है और इसे सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध कराना शासन की जिम्मेदारी है। किंतु खेद का विषय है कि कई निजी शैक्षणिक संस्थान शिक्षा को सेवा न मानकर व्यवसाय बना चुके हैं। जनपद शिक्षा केंद्र बहोरीबंद मुख्यालय के अंतर्गत स्थित पाठशाला इंग्लिश मीडियम हाई स्कूल इसका एक प्रमुख उदाहरण प्रतीत होता है। अभिभावकों एवं स्थानीय लोगों द्वारा उठाए गए प्रश्नों से यह स्पष्ट है कि विद्यालय में न केवल अवैध रूप से शुल्क वसूला जा रहा है, बल्कि शिक्षकों की पात्रता और सूचना के अधिकार अधिनियम की अवहेलना जैसे गंभीर मामले भी सामने आ रहे हैं।
मनमाना शुल्क और अभिभावकों का शोषण
विद्यालयों की प्राथमिक जिम्मेदारी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है। किंतु जानकारी के अनुसार इस विद्यालय में कक्षा आठवीं से नौवीं में प्रवेश के लिए बच्चों से री-एडमिशन शुल्क ₹5000 वसूला जा रहा है। यह राशि पूरी तरह से अनुचित और गैरकानूनी प्रतीत होती है, क्योंकि किसी भी मान्यता प्राप्त विद्यालय में कक्षा उन्नति के लिए पुनः प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता। इसके अतिरिक्त “कक्षा उन्नति शुल्क” के नाम पर भी मनमाने तरीके से रकम ली जा रही है। इससे स्पष्ट होता है कि विद्यालय प्रबंधन शिक्षा के नाम पर आर्थिक लाभ उठाने का माध्यम बना हुआ है। अभिभावक मजबूरी में अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए यह रकम अदा करते हैं, किंतु उनके मन में आक्रोश और असंतोष बना रहता है। यह स्थिति शिक्षा के व्यवसायीकरण और शैक्षणिक भ्रष्टाचार की ओर संकेत करती है।
अपात्र शिक्षकों की नियुक्ति
शिक्षा की गुणवत्ता सीधे-सीधे शिक्षक की योग्यता पर निर्भर करती है। विद्यालय में लगभग 25 शिक्षक कार्यरत बताए गए हैं, किंतु उनमें से केवल 7–8 शिक्षक ही D.Ed या B.Ed प्रशिक्षित हैं। शेष शिक्षक बिना किसी आवश्यक शैक्षणिक योग्यता के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। यह गंभीर अनियमितता है, क्योंकि शैक्षणिक संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) द्वारा निर्धारित न्यूनतम शैक्षिक एवं प्रशिक्षण योग्यता होना अनिवार्य है। बिना योग्यताओं वाले शिक्षकों की नियुक्ति न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी है।
सूचना का अधिकार अधिनियम की अवहेलना
भारत में 2005 से सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act) लागू है। इस अधिनियम का उद्देश्य है कि प्रत्येक नागरिक को सरकारी संस्थानों, सहायता प्राप्त निजी संस्थानों और सार्वजनिक हित से जुड़े संगठनों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार हो । जब अभिभावकों ने विद्यालय से संबंधित जानकारी मांगी, तो प्राचार्य और संचालक ने यह कहकर जानकारी देने से मना कर दिया कि “हमारे संस्थान पर सूचना का अधिकार अधिनियम लागू नहीं होता।” यह कथन सरासर गलत और भ्रामक है। यदि विद्यालय को सरकार अथवा किसी शैक्षणिक निकाय से मान्यता प्राप्त है, या अप्रत्यक्ष रूप से किसी सरकारी नीति/अनुदान का लाभ मिलता है, तो उस पर RTI अधिनियम लागू होता है। जानकारी न देना न केवल अधिनियम का उल्लंघन है बल्कि यह पारदर्शिता और जवाबदेही से बचने की मानसिकता भी दर्शाता है।
शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी
ऐसी स्थिति में जिम्मेदारी संबंधित जनपद शिक्षा केंद्र, जिला शिक्षा अधिकारी तथा मान्यता प्रदान करने वाले बोर्ड/संस्थान की बनती है कि वे तत्काल जांच करें । शुल्क वसूली की जांच यह पता लगाया जाए कि विद्यालय द्वारा निर्धारित शुल्क संरचना किस आधार पर तय की गई है। शिक्षकों की पात्रता की जांच सभी शिक्षकों के शैक्षिक एवं प्रशिक्षण संबंधी प्रमाणपत्र सत्यापित किए जाऐ। सूचना का अधिकार उल्लंघन विद्यालय प्रशासन के विरुद्ध RTI अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाए। अभिभावकों की सुरक्षा यह सुनिश्चित किया जाए कि बच्चों की शिक्षा को प्रभावित किए बिना अभिभावकों पर आर्थिक बोझ न डाला जाए।
संभावित कार्यवाही की मांग
मान्यता रद्द करना यदि विद्यालय में गंभीर अनियमितताएँ सिद्ध होती हैं तो उसकी मान्यता निलंबित अथवा रद्द की जा सकती है। आर्थिक दंड मनमाने शुल्क की वसूली पर दंडात्मक कार्रवाई कर अभिभावकों को राशि वापस दिलाई जा सकती है।शिक्षकों की नियमितीकरण प्रक्रिया अपात्र शिक्षकों को तत्काल हटाकर केवल योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। RTI उल्लंघन पर दंड सूचना आयुक्त द्वारा विद्यालय प्रशासन पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
शिक्षा का व्यवसायीकरण एक व्यापक समस्या
यह प्रकरण केवल एक विद्यालय तक सीमित नहीं है। देशभर में अनेक निजी शैक्षणिक संस्थान शिक्षा को सेवा न मानकर मुनाफा कमाने का साधन बना चुके हैं। मनमाने शुल्क, महंगे किताब-कॉपी-कपड़े, और अपात्र शिक्षकों की नियुक्ति आम बात हो चुकी है। इसका खामियाजा सीधे-सीधे छात्रों और अभिभावकों को भुगतना पड़ता है। शिक्षा मंत्रालय और राज्य शिक्षा विभागों को इस दिशा में कठोर कदम उठाने होंगे। निजी विद्यालयों की नियमित निगरानी, शुल्क निर्धारण की पारदर्शी प्रक्रिया और शिकायत निवारण की मजबूत व्यवस्था ही इस समस्या का समाधान है। पाठशाला इंग्लिश मीडियम हाई स्कूल में सामने आई अनियमितताएँ अत्यंत चिंताजनक हैं। यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं है, बल्कि बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ भी है। विद्यालय प्रबंधन को यह समझना चाहिए कि शिक्षा समाजसेवा का क्षेत्र है, न कि व्यापार। सरकार और शिक्षा विभाग को चाहिए कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच कराए, दोषियों पर कठोर कार्रवाई करे और यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में किसी भी अभिभावक या छात्र के साथ ऐसा अन्याय न हो। साथ ही, अभिभावकों को भी एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए, ताकि शिक्षा का पवित्र क्षेत्र भ्रष्टाचार और शोषण से मुक्त हो सके।
🖋️ पुलिसवाला न्यूज़ कटनी से पारस गुप्ता की रिपोर्ट

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