बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ उग्र प्रदर्शन ने राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी, जिसके कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा और देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी। हिंसा में अब तक 450 के करीब लोगों की जान जा चुकी है, और हालात अब भी तनावपूर्ण हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद आरक्षण के मुद्दे पर शुरू हुए प्रदर्शनों ने राजनीतिक रंग ले लिया और विपक्षी दलों ने इसे सरकार को गिराने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया।
आरक्षण प्रणाली के विरोध में छात्रों ने उच्च सरकारी पदों में तीस प्रतिशत आरक्षण का विरोध किया, जिसे स्वतंत्रता सेनानियों की तीसरी पीढ़ी के रिश्तेदारों को दिया गया था। सरकार की सख्ती और आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी ने प्रदर्शनों को और उग्र बना दिया। इस बीच, अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने के लिए शेख हसीना ने भारत और चीन की यात्रा भी की, लेकिन देश की बिगड़ती स्थिति पर नियंत्रण नहीं कर पाईं।
ब्रिटेन में शरण पाने की हसीना की कोशिशें जटिल आव्रजन नियमों के कारण अटक गई हैं। ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी ने बांग्लादेश में हिंसा की स्वतंत्र जांच की अपील की है और संयुक्त राष्ट्र से इसका नेतृत्व करने का आग्रह किया है।
फिलहाल बांग्लादेश में सेना ने नियंत्रण संभाल लिया है और जल्द ही अंतरिम सरकार के गठन की योजना बनाई जा रही है। स्थिति धीरे-धीरे नियंत्रण में आ रही है, लेकिन बांग्लादेश की नई सरकार को उच्च बेरोजगारी, आर्थिक अस्थिरता, और मुद्रास्फीति जैसे गंभीर मुद्दों से निपटना होगा। भारत को भी अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा, क्योंकि पाक-समर्थित दलों की वापसी से क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ सकती है।
( राजीव खरे- अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो)
Leave a comment