ग्राम पंचायतों में मकान नम्बर प्लेट अनिवार्य बताकर वसूली पर विवाद
इनायत अहमद उमरिया- 6265554656
जिले की जनपद पंचायत पाली अंतर्गत ग्राम पंचायतों में मकान नम्बर प्लेट लगाने के नाम पर विवाद खड़ा हो गया है। पंचायत कर्मियों द्वारा ग्रामीणों को यह कहकर प्लेट लगाने के लिए बाध्य किया जा रहा है कि शासन का आदेश है और इसके लिए 50 रुपये का शुल्क भी अनिवार्य है। जबकि जनपद सीईओ ने साफ कर दिया है कि यह पूरी तरह स्वैच्छिक है और किसी भी ग्रामीण को बाध्य नहीं किया जा सकता।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, जनपद पंचायत पाली के सरपंच और सचिवों को एक आदेश जारी किया गया था, जिसमें कहा गया कि पंचायतों के सभी भवनों पर स्थायी नम्बर प्लेट लगाई जाए। इन नम्बर प्लेटों पर शासन की विभिन्न योजनाओं और सामाजिक जागरूकता से जुड़े नारे जैसे स्वच्छ गांव स्वस्थ गांव,वृक्ष लगाओ, जल बचाओ,नशा मुक्त भारत, और बाल विवाह एक सामाजिक जुर्म अंकित रहेंगे। आदेश में यह भी उल्लेख है कि नम्बर प्लेट लगवाना पूरी तरह स्वैच्छिक है और इसके लिए किसी प्रकार की बाध्यता नहीं होगी।
इसके बावजूद ग्रामीणों से शिकायतें सामने आई हैं कि पंचायत कर्मियों ने घर-घर जाकर ग्रामीणों से कहा कि नम्बर प्लेट लगवाना अनिवार्य है और इसके लिए 50 रुपये का भुगतान करना ही होगा। ग्रामीण पुरुषोत्तम सिंह ने बताया कि पंचायत के कर्मचारी आए और उन्होंने सख्ती से कहा कि यह शासन का आदेश है, शुल्क न देने पर कार्रवाई होगी। ग्रामीणों ने इसे जबरन वसूली करार दिया है।
आदेश में स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक नम्बर प्लेट की लागत 50 रुपये निर्धारित है और इसका भुगतान मकान मालिक को स्वयं करना होगा। भुगतान की रसीद भी दी जाएगी। साथ ही इस कार्य के लिए बिहार के कैमूर जिले के अखिलेश प्रसाद केसरी को अधिकृत किया गया है, जिन्हें नम्बर प्लेट लगाने का जिम्मा सौंपा गया है। सरपंच, सचिव, आशा कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को सहयोग करने के निर्देश भी जारी किए गए हैं।
जब इस संबंध में जनपद पंचायत पाली के सीईओ कुंवर कन्हाई से बात की गई तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी भी ग्रामीण को बाध्य नहीं किया जा सकता। यह पूरी तरह से स्वैच्छिक पहल है। यदि कोई ग्रामीण अपने घर पर नम्बर प्लेट लगवाना चाहता है तो लगा सकता है, लेकिन किसी भी व्यक्ति पर दबाव डालना या अनिवार्य शुल्क वसूलना गलत है।
ग्रामीणों का कहना है कि आदेश में स्वैच्छिक होने का उल्लेख होने के बावजूद ठेकेदार और कर्मचारियों की दबंगई से इस योजना की मंशा पर सवाल खड़े हो गए हैं। लोग मानते हैं कि सामाजिक जागरूकता और स्वच्छता के संदेश अच्छे हैं, लेकिन उन्हें थोपने या जबरन वसूली के जरिए लागू करना उचित नहीं है।