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बांग्लादेश के राजनीतिक संकट और बदलाव से भारत पर संभावित असर

जब भी किसी देश की सत्ता राजनीतिक व सामाजिक अस्थिरता के कारण परिवर्तित होती है, तो न सिर्फ़ वह देश बल्कि उसके पड़ोसियों पर भी असर पड़ता है। बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन ने भारत के लिए एक गंभीर कूटनीतिक चुनौती पेश की है, विशेषकर तब, जब श्रीलंका और मालदीव जैसे पड़ोसी देश पहले ही चीन के प्रभाव में आ चुके थे। भारत ने बांग्लादेश की आर्थिक सफलता में तो उसकी सहायता की पर उसकी राजनीतिक अस्थिरता को नहीं रोक सका।

बांग्लादेश भारत की मदद से बना था, और तब से दोनों के रिश्ते मजबूत रहे हैं। शेख हसीना के सत्ता में न होने से भारत के लिए चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं, क्योंकि वे भारत की करीबी रही हैं और उनका सत्ता में रहना भारत के लिए फायदेमंद रहा है। भारत के लिए बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता का बने रहना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत को किसी भी संभावित संकट से निपटने के लिए तैयार रहना होगा और बांग्लादेश के साथ सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम करना होगा।
क्योंकि बांग्लादेश में जिस ढंग से यह सत्ता बदली है, उसका भारत पर कई तरह का प्रभाव पड़ सकता है-

*सीमावर्ती अस्थिरता * – बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता से भारत-बांग्लादेश सीमा पर अवैध घुसपैठ और तस्करी बढ़ सकती है, जिससे भारत की सुरक्षा पर असर पड़ेगा। बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों का खतरा बढ़ सकता है, जो पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा में बस सकते हैं। इससे इन राज्यों की डेमोग्राफी बदलने का खतरा है। साथ ही, घुसपैठियों के साथ आतंकवादी और ISI के एजेंट्स भी भारत में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे सुरक्षा पर खतरे बढ़ सकते हैं। 1971 में और उसके बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुसलमानों ने भी भारत में शरण ली है, यही कारण है कि पश्चिम बंगाल के बॉर्डर वाले कई जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं।

शरणार्थी संकट – बड़े पैमाने पर राजनीतिक अस्थिरता के कारण बांग्लादेश से शरणार्थियों की संख्या बढ़ सकती है, जिससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सामाजिक और आर्थिक दबाव बढ़ेगा। अवैध शरणार्थियों को देश में पनाह देना भारत के लिए आर्थिक संकट पैदा कर सकता है। पश्चिम बंगाल, असम और नॉर्थ ईस्ट राज्यों में अवैध शरणार्थियों के जाने से स्लम एरिया में बढ़ोत्तरी होगी। इसके साथ ये घुसपैठिये राज्य के संसाधनों पर भी कब्जा करेंगे, जिससे पूर्वी राज्यों में गरीबी कम होने की बजाए बढ़ सकती है।

बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा- बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़ते हमले शेख हसीना की आवामी लीग के समर्थन से जुड़े हैं। 1971 में 30% हिंदू आबादी अब केवल 8% रह गई है। अस्थिरता के दौरान हिंदुओं पर जुल्म बढ़ता है, जिससे वे भारत पलायन करते हैं। वर्तमान में भारतीय सीमा पर हजारों हिंदू शरण लेने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि भारत सरकार और बीएसएफ उन्हें रोकने में जुटे हैं।

कूटनीतिक संबंध – अस्थिरता के कारण भारत-बांग्लादेश कूटनीतिक संबंधों में खटास आ सकती है, जिससे क्षेत्रीय सहयोग प्रभावित होगा।

*शेख हसीना को भारत में रखने की चुनौती – *
शेख हसीना को सुरक्षित निकालना मोदी सरकार की बड़ी सफलता रही है, लेकिन अब भारत के लिए चुनौती बढ़ गई है। बांग्लादेश में हसीना की बढ़ती अलोकप्रियता के बीच भारत पर उनके समर्थन का दबाव है। विरोधियों की मांग है कि भारत उन्हें सौंप दे, जिससे भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर पड़ सकता है।

आर्थिक संबंध– राजनीतिक संकट से भारत-बांग्लादेश के व्यापार और आर्थिक सहयोग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे निवेश और व्यापार में अनिश्चितता बढ़ेगी। बांग्लादेश में निवेश करके बैठी भारत की कई कंपनियों का भविष्य भी संकट में पड़ सकता है। इनमें से कई स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड दिग्गज कंपनियां भी हैं । बांग्लादेश संकट के चलते इन कंपनियों के स्टॉक में भी भारी उलटफेर देखा जा रहा है।

पड़ोसियों के साथ खराब होते संबंध- बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता से बेदखलीबाद भारत के पड़ोसियों के साथ संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। नेपाल, मालदीव, और अफगानिस्तान में भी भारत के सहयोगी कमजोर हुए हैं। अगर खालिदा जिया की सरकार बनी तो बांग्लादेश चीन और पाकिस्तान की ओर झुक सकता है, जिससे भारत की क्षेत्रीय स्थिति और कमजोर हो सकती है।

चरमपंथ – जिन हालात में और जिस तरह से खूनखराबे के साथ बांग्लादेश में यह सत्ता कट्टरपंथियों के हाथ में गई है उससे वहाँ धार्मिक हिंसा और चरमपंथ बढ़ गया है। जब जब बांग्लादेश में अस्थिरता बढ़ती है, वहां हिंदुओं पर जुल्म होता है। अब मामला सीधे-सीधे अवामी लीग के बहाने हिंदुओं पर हमले और हर भारतीय चीज के बहिष्कार पर पहुंच गई है. पहले मालदीव में भारत विरोधी माहौल क्रिएट करना फिर बांग्लादेश में भारत विरोधी माहौल। अस्थिरता का फायदा चरमपंथी संगठनों द्वारा उठाया जा सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ेंगी।

बाहरी दखल – चीन और अमेरिका, बांग्लादेश में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं। चीन ने बांग्लादेश में निवेश किया है, जबकि अमेरिका क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।

हालाँकि बांग्लादेश में आए इस संकट का भारत पर सकारात्मक असर भी हो सकता है। बांग्लादेश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री दुनिया की टॉप इंडस्ट्री में से एक है, और मौजूदा संकट के कारण इस इंडस्ट्री से जुड़े लोग भारत की ओर रुख कर सकते हैं। इसके अलावा, बांग्लादेश से भारत कई फार्मास्यूटिकल फॉर्मूलेशन, कच्चा माल और उच्च गुणवत्ता वाला चमड़ा भी आयात करता है। इन वस्तुओं पर संकट का प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन भारत के लिए नए अवसर भी पैदा हो सकते हैं।

पर कुल मिला कर मालदीव और बांग्लादेश में भारत विरोधी माहौल बनाने की घटनाएँ सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगती हैं। इससे भारत के लिए दक्षिण एशिया में चुनौतियाँ बढ़ गई हैं, क्योंकि पड़ोसी देश चीन के करीब जा रहे हैं। बांग्लादेश में अस्थिरता से भारत के साथ उसके संबंध कमजोर हो सकते हैं, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है।
( राजीव खरे-अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो)

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