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भारत के दस बड़े शहरों में, प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों का प्रतिशत 7% से अधिक है, जबकि दिल्ली जैसे सबसे प्रदूषित शहर में यह आंकड़ा 11.5% तक पहुंच गया है। यह खुलासा प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लैंसेट के एक अध्ययन में हुआ है। चिंता की बात यह है कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा आवंटित धन का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल नहीं हो पाता है।
केंद्र सरकार ने 2019 में राष्ट्रीय वायु स्वच्छता कार्यक्रम की शुरुआत की थी, जिसका लक्ष्य था 2024 तक 130 शहरों में घातक धूल कणों की उपस्थिति को 20-30% तक कम करना। बाद में यह लक्ष्य बढ़ाकर 40% कर दिया गया। इस कार्यक्रम के तहत सार्वजनिक यातायात को प्रोत्साहित करना, पौधरोपण, कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन, इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को बढ़ावा देना और चार्जिंग स्टेशन बनाना जैसे कदम उठाए गए। इसके बावजूद, राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन की उदासीनता के कारण इस दिशा में अपेक्षित सक्रियता नजर नहीं आई।
केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा इस अभियान की निगरानी की जाती है, लेकिन स्थानीय निकायों की गंभीरता की कमी और अपर्याप्त सक्रियता के कारण लक्ष्य हासिल करना मुश्किल हो रहा है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए करीब 10,500 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, लेकिन केवल 60% राशि ही खर्च की गई। कुछ शहरों ने आवंटित धन का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों में आपराधिक लापरवाही बरती जा रही है।
जीवाश्म ईंधन का उपयोग, बढ़ते पेट्रोल-डीजल वाहनों की संख्या, सार्वजनिक यातायात की बदहाली और कचरे के अनुचित निस्तारण के कारण वायु प्रदूषण नियंत्रण के लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल हो गया है। केंद्र सरकार अब इस दिशा में गंभीरता से पहल कर रही है और नए सिरे से योजना का मूल्यांकन कर रही है ताकि प्रदूषित शहरों को दी जाने वाली राशि का यथासमय अधिकतम उपयोग हो सके।
राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण नागरिकों के जीवन पर संकट बना हुआ है। इस संकट से निपटने के लिए नागरिकों की जागरूकता और उनकी भागीदारी भी आवश्यक है। सरकारों के पास पर्याप्त संसाधन और विशिष्ट कार्यबल नहीं है, इसलिए नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से ही वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह एक गंभीर संकट है और इसके लिए गंभीर समाधान की आवश्यकता है।
( राजीव खरे- राष्ट्रीय ब्यूरो)
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