इंदौर मध्य प्रदेश
इंदौर मध्य प्रदेश जीवन में सत्कार्य का समय कौन सा है एवं कैसे है – मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी
आज प्रवचन में बताया अच्छे कार्य करने का कोई समय निश्चित नहीं किया जाता है। यह तो जितनी जल्दी हो तुरंत कर देना चाहिये। कहावत है ‘नेक काम में देरी क्यों’। नदी पार करने के लिये पाल पर बैठकर नदी के समाप्त होने का इंतजार न करके तुरंत तैरकर जाना पड़ता है। इसलिये धर्म आराधना में आगे बड़ने के लिये चार स्टेप्स का तुरंत अनुसरण करना है।
1. विषय का वैराग्य – पाँच इंद्रियों के विषयों के लिये हमको वैराग्य भाव प्रकट करना है। स्पर्श, रस, द्रश्य, श्रव्य एवं गंध की आसक्ति विष से भी अधिक भयंकर है। जीव-जन्तु तो एक ही इंद्रिय की आसक्ति के कारण प्राण गँवा देते है जैसे हाथी हथनी के स्पर्श पाने के लिये खड्ड में गिर जाता है, चूहा चखने के कारण, भँवरा पुष्प गंध के कारण, तितली दीपक की लौ देखने में और हिरण बाँसुरी की धुन श्रवण में प्राण गँवाता है। किन्तु मनुष्य की तो पाँच-पाँच इंद्रियों में आसक्ति है तो क्या स्थिति होगी ? विषयों के राग के पीछे पागल बने हुए अनंत योनियों में भटक रहे है। 84 लाख योनियों से छुटकारा पाना है तो विषय के राग से विरक्ति बरतना पड़ेगी। विषय भोग का समय बहुत अल्प है परंतु उसके बुरे परिणाम जन्म-जन्म तक भोगना है इसके उलट विषय का वैराग्य जन्मों तक लाभ देगा। सब कुछ अच्छा मिलने पर भी हम पीछे का लालच नहीं छोड़ते है। सामायिक, पोषध, संयम, में सुख है परंतु सांसारिक सुखों को छोड़ना पड़ेगा। ‘अच्छे योग तैयार हैं, बस हमको संयोग बनाना है।‘
2. कषायों का त्याग – क्रोध, मान, माया एवं लोभ इन चार कषायों का त्याग धर्म की राह आसान करता है। ये सभी आत्मा और भाव का कत्ल कर देते है। ‘क्रोध’ से प्रीति का नाश, ‘मान’ से विनय का नाश, ‘माया’ से मित्रों का नाश होता है और ‘लोभ’ से सर्वनाश निश्चित है।
(1) ‘क्रोध’ – यह जहाँ होता है उसी को जला देता क्योंकि यह स्वयं ज्वाला है। यह विष भी बन जाता है इसलिये कहते हैं क्रोध में भोजन नहीं किया जाता है क्योंकि वह जहर बन सकता है । क्रोध साधना व संयम का फल भी समाप्त कर देता है। यदि हमारे पास बोध है तो क्रोध चला जायेगा और क्रोध है तो बोध चला जायेगा। कोशिक नामक तापस को क्रोध के कारण ही दृष्टि विष धारी सर्प योनि ‘चंडकोशी’ के रूप में मिली थी। “क्रोध काबू में, आप आबू में”।
कल मुनिवर मान, माया एवं लोभ की विवेचना करेंगे। राजेश जैन युवा ने बताया की
मुनिवर का नीति वाक्य – “सुख का समय सीमित, दुःख का समय असीमित”
प.पू.आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय वीररत्नसूरीश्वरजी महाराजा के पहली मासिक पुण्य तिथि के अवसर त्रिदिवसीय रत्नत्रयी महोत्सव आज से प्रारंभ हो रहा है। जिसके सम्पूर्ण लाभार्थी श्री निशांतजी पारसजी कोठारी (भानपुरा वाले) हैं। उनकी बहुत बहुत अनुमोदना है। महोत्सव आज श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा है, कल श्री वेदनीयकर्म निवारण पूजा एवं परसों श्री मणिभद्रवीर पूजन व हवन का कार्यक्रम होगा। इस अवसर पर श्री प्रवीणजी मुरडिया, श्री विकासजी जैन, श्री सुमितजी रांका, सुश्री लीना सकलेचा एवं संघ के कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं ।
भवदीय
राजेश जैन युवा (9425065959) रिपोर्ट अनिल भंडारी
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