इंदौर मध्य प्रदेश
भारतीय इतिहास के अमर अध्यायों में जिस संगठन ने राष्ट्र-बोध को नया आयाम दिया और स्वदेशी चिंतन की धारा को संगठित स्वरूप प्रदान किया, उसका नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। शताब्दी वर्ष पर खड़े होकर जब हम इस यात्रा को पीछे मुड़कर देखते हैं तो स्पष्ट होता है कि संघ ने राष्ट्र जीवन में केवल संगठन नहीं, बल्कि संस्कार, अनुशासन और समर्पित नागरिकता का बोध भी करवाया है!
मैं स्वयं अपने बाल्यकाल में जब पहली बार संघ की शाखा में गया, तभी यह अनुभव हुआ कि यहां केवल खेल या व्यायाम नहीं होते, बल्कि मनुष्य जीवन में अनुशासन का महत्व, समाज के साथ जुड़ने का भाव और त्याग की शिक्षा भी दी जाती है। यही शिक्षा अभी तक मेरा मार्गदर्शन करती है! मैं बहुत गर्व से कहना चाहता हूं कि संघ के ये संस्कार अनंतकाल तक मेरे पथ प्रदर्शक बने रहेंगे, क्योंकि, सच यही है कि संघ अपने स्वयंसेवकों को केवल विचार ही नहीं देता, बल्कि उनके मन, वचन और कर्म को राष्ट्रहित की ओर उन्मुख करता है!
संघ का सांस्कृतिक योगदान
वस्तुत: संघ ने भारत की सांस्कृतिक आत्मा को जगाने का कार्य किया है। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज तक, संघ द्वारा दिए गए संस्कारों ने हर क्षेत्र में समर्पित नेतृत्व का निर्माण किया है! छोटे-छोटे गांव-कस्बों से लेकर बड़े शहरों तक, शिक्षा से लेकर समाज-सेवा तक, संघ का कार्य अनवरत चलता रहा है। संघ की बहुत स्पष्ट मान्यता है कि भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक राष्ट्र है जिसका आधार सनातन मूल्य और परंपराएं हैं!
सामाजिक जीवन में संघ की भूमिका
मुझे जैसे असंख्य स्वयंसेवकों के लिए यह भी गर्व का विषय रहा है कि संघ ने कभी अपने लिए सत्ता या यश की आकांक्षा नहीं की। उसका उद्देश्य हमेशा यही रहा कि प्रत्येक समाज बंधु अपने आचरण और कर्म से समाज को मजबूत करे। आपदा हो या सेवा का अवसर, हर जगह स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से उपस्थित होते रहे। कोरोना महामारी हो या बाढ़-सहायता, संघ ने सेवा को ही अपना मूल माना है।
वैचारिक विरासत और राष्ट्रीय चेतना
संघ की वैचारिक विरासत यह कहती है कि राष्ट्र की शक्ति उसके संगठित समाज में है। जब व्यक्ति स्वयं को परिवार तक सीमित न रखकर पूरे राष्ट्र को अपना परिवार मानने लगता है, तभी राष्ट्रीय उत्थान होता है। यही कारण है कि संघ ने शिक्षा और सेवा के माध्यम से नई पीढ़ी को प्रेरित किया। आज यदि पूरे देश में उच्च पदों पर आसीन अनेक व्यक्तित्व राष्ट्र सेवा में जुटे हुए हैं, तो इसका श्रेय केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों और संस्कारों को ही है।
शताब्दी वर्ष का संदेश
संघ की शताब्दी केवल बीते सौ वर्षों का उत्सव नहीं, बल्कि आने वाले सौ वर्षों का संकल्प है। यह संकल्प है, भारत को विश्व में सांस्कृतिक, सामाजिक और वैचारिक मार्गदर्शक के रूप में प्रतिष्ठित करने का। यह स्पष्ट लक्ष्य सामूहिक रूप से संपूर्ण समाज को प्रेरित और प्रभावित करता है कि संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक एक जीवंत ज्योति बन और समाज को प्रकाशवान बनाए रखे।
आज जब हम इस ऐतिहासिक क्षण का स्वागत कर रहे हैं, तो मेरा भी निजी प्रण है कि संघ की यह विचारधारा और सेवा भावना समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाने के लिए मैं भी प्राण-प्रण से सार्थक और परिणाम दायक प्रयास करता रहूंगा। मेरी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन सभी महापुरुषों को जिन्होंने स्वयं को संघ कार्य के लिए समर्पित कर दिया।
दीपक जैन (टीनू)
(भाजपा प्रदेश सह मीडिया प्रभारी )। रिपोर्ट अनिल भंडारी