सोना प्राचीन सभ्यताओं के समय से ही समृद्धि और शक्ति का प्रतीक रहा है। 5,000 से अधिक वर्षों से, सोने को न केवल एक मूल्यवान धातु के रूप में देखा गया, बल्कि इसका इस्तेमाल धार्मिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए भी किया गया। मिस्र, मेसोपोटामिया और दक्षिण एशिया की पुरानी सभ्यताओं ने सोने को आभूषणों और मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया। मिस्र के फ़राओओं ने इसे देवताओं की धातु माना और इसके सांचे से बने आभूषणों को मृत्यु के बाद अपने साथ ले जाने के लिए रखा।
प्राचीन काल से ही राजाओं और साम्राज्यों ने सोने को संपत्ति और धन के प्रतीक के रूप में जमा किया। रोम के साम्राज्य में, सोने के सिक्के मुद्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए। इसके अलावा, व्यापारिक समुदायों ने भी सोने का उपयोग बड़े लेन-देन और संपत्ति संचय के लिए करना शुरू किया।
सोने का औपचारिक रूप से निवेश के रूप में इस्तेमाल 19वीं शताब्दी के दौरान शुरू हुआ जब कई देशों ने सोने के मानक (Gold Standard) को अपनाया। इस मानक के तहत, देशों ने अपनी मुद्रा का मूल्य सोने की निश्चित मात्रा के साथ जोड़ा। इससे सोना एक प्रमुख आर्थिक निवेश के रूप में उभरा। 20वीं शताब्दी के मध्य तक, विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक सोने का इस्तेमाल अपनी विदेशी मुद्राओं के भंडार के रूप में करने लगे।
आधुनिक युग में, सोना एक सुरक्षित निवेश के रूप में देखा जाता है, खासकर जब अर्थव्यवस्था अस्थिर होती है। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव और मुद्रास्फीति के समय, निवेशक सोने में पैसा लगाना अधिक सुरक्षित समझते हैं क्योंकि इसकी कीमत में गिरावट की संभावना कम होती है। इसीलिए सोना “सुरक्षित आश्रय” (Safe Haven) के रूप में जाना जाता है।
1970 के दशक में, सोने की कीमतें स्थिर थीं क्योंकि उस समय अमेरिकी डॉलर सोने से जुड़े हुए थे। 1971 में अमेरिका द्वारा सोने के मानक को छोड़ने के बाद, इसकी कीमतों में तेज़ी से वृद्धि होने लगी। 1980 में सोने की कीमत प्रति औंस $850 तक पहुंच गई थी। यह मुद्रास्फीति और वैश्विक राजनीतिक अस्थिरता की वजह से हुआ।
इसके बाद, 2000 के दशक में, वैश्विक आर्थिक संकट और मुद्रास्फीति की चिंताओं ने सोने की कीमतों को फिर से बढ़ावा दिया। 2011 में सोने की कीमत अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंची, जब यह प्रति औंस $1,900 से भी ऊपर चली गई। वर्तमान समय में भी, सोने की कीमतें वैश्विक बाजार के आधार पर उतार-चढ़ाव करती रहती हैं।
भारतीय समाज में ग्रहों और ज्योतिषीय घटनाओं का वित्तीय बाजारों पर गहरा प्रभाव माना जाता है। सोने को विशेष रूप से सूर्य और बृहस्पति ग्रहों से जोड़ा जाता है, जो धन और शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। आइए ज्योतिषीय कारणों से सोने की कीमतों पर पड़ने वाले प्रभावों को देखें:
सूर्य और बृहस्पति का प्रभाव:
बृहस्पति को समृद्धि और विस्तार का कारक माना जाता है। जब बृहस्पति की स्थिति अनुकूल होती है, जैसे उसकी अपनी राशियों में (मीन और धनु), तो सोने की कीमतों में वृद्धि देखी जाती है। इसी प्रकार, सूर्य भी सोने का कारक है और जब यह मजबूत स्थिति में होता है, तो यह सोने की मांग को बढ़ाता है।
उदाहरण: 2020 में, जब बृहस्पति और शनि मकर राशि में थे, सोने की कीमतों में भारी उछाल देखा गया। यह संयोग उस समय की वैश्विक महामारी से उत्पन्न आर्थिक अनिश्चितता के साथ मेल खाता है, जिसके कारण निवेशक सोने में अधिक धन निवेश करने लगे।
ग्रहण और चंद्रमा का प्रभाव:
भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा का प्रभाव मानसिक शांति और भावनाओं से जुड़ा हुआ है। जब चंद्रमा ग्रहण में आता है, तो यह अक्सर निवेशकों में अनिश्चितता और भय उत्पन्न करता है, जिससे सोने की कीमतें बढ़ती हैं। 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान, जब कई चंद्र ग्रहण हुए थे, सोने की कीमतों में तेज़ी से उछाल देखा गया था।
राहु और केतु का प्रभाव:
राहु और केतु को अनिश्चितता और भ्रम के प्रतीक माना जाता है। जब ये ग्रह मुख्य स्थानों पर होते हैं, तो यह आर्थिक बाजारों में अस्थिरता को बढ़ाते हैं। इस कारण से भी सोने में निवेश की प्रवृत्ति बढ़ती है। उदाहरण के लिए, 2011 में जब राहु वृषभ राशि में था, तो सोने की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गईं, क्योंकि वैश्विक निवेशक बाजार के अस्थिरता से बचने के लिए सोने की ओर मुड़े।
शनि का प्रभाव:
शनि को कड़ी मेहनत और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन यह संकटों का भी कारक है। जब शनि की स्थिति कठिन होती है, तो बाजार में मंदी आती है, जिससे लोग सोने की ओर रुख करते हैं। 2008-09 के वैश्विक आर्थिक संकट के समय शनि और बृहस्पति की युति ने सोने की कीमतों में वृद्धि में योगदान दिया।
ग्रहों के परिवर्तन से न केवल सोने की कीमतों में वृद्धि होती है, बल्कि सही ज्योतिषीय परिस्थितियों में ग्रहों के परिवर्तन से इनमें कमी भी आती है, विशेष रूप से शनि, बृहस्पति, राहु, और केतु के कारण सोने की कीमतों में कमी आती है । जब निवेशकों को स्थिरता और सुरक्षा अन्य क्षेत्रों में दिखाई देती है, तो वे सोने से दूरी बना लेते हैं, जिससे इसकी कीमतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुछ उदाहरण हैं, जब ग्रहों के बदलने से सोने के दाम कम हुए:
2016 में शनि और बृहस्पति की स्थिति:
2016 के दौरान, जब बृहस्पति सिंह राशि में था और शनि वृश्चिक राशि में, तब सोने की कीमतों में गिरावट देखी गई थी। इस समय, वैश्विक आर्थिक स्थिति में सुधार के संकेत मिले और निवेशकों ने सोने की बजाए शेयर बाजार में निवेश करना शुरू किया। ग्रहों की इन विशेष स्थितियों ने सोने की मांग में कमी की, जिससे कीमतें नीचे आईं।
राहु और केतु का प्रभाव 2022 में:
2022 में राहु और केतु की स्थानांतरण ने भी सोने की कीमतों को प्रभावित किया। राहु वृषभ राशि में आने पर, सोने की मांग में उतार-चढ़ाव आया, लेकिन जब यह ग्रह बदलकर मेष राशि में चला गया, तो सोने की कीमतों में गिरावट देखी गई। इस दौरान निवेशकों ने अन्य निवेश विकल्पों की ओर रुख किया, जिससे सोने की मांग में कमी आई।
2001-02 में शनि की स्थिति:
2001-02 के समय, जब शनि मकर राशि में था, सोने की कीमतों में गिरावट देखी गई। यह वह समय था जब वैश्विक स्तर पर आर्थिक स्थिरता धीरे-धीरे लौट रही थी और निवेशकों ने सोने से अन्य निवेशों की ओर ध्यान देना शुरू किया। इसके साथ ही, शनि के इस प्रभाव ने सोने के बाजार को मंद कर दिया।
राहु और केतु का 2014 में परिवर्तन:
2014 में, जब राहु तुला राशि से निकलकर कन्या राशि में और केतु मेष से मीन में स्थानांतरित हुआ, सोने की कीमतों में स्थिरता और थोड़ी कमी देखने को मिली। इस समय के दौरान आर्थिक सुधार के संकेत बढ़े, और वैश्विक बाजार में निवेश की विविधता के चलते सोने की मांग में कमी आई।
सोना सदियों से मानव सभ्यता का अभिन्न हिस्सा रहा है, और इसकी मांग समय के साथ बढ़ती ही गई है। आधुनिक युग में सोने की कीमतें वैश्विक आर्थिक घटनाओं और राजनीतिक अस्थिरता के आधार पर बदलती हैं। वहीं भारतीय ज्योतिष के अनुसार, ग्रहों की स्थिति और उनका प्रभाव भी सोने की कीमतों में बदलाव के कारक होते हैं। जब भी कोई आर्थिक संकट या ज्योतिषीय घटनाएं होती हैं, लोग सोने को निवेश के रूप में प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि यह उन्हें सुरक्षा और स्थिरता का अनुभव कराता है। अंततः, चाहे ज्योतिषीय कारण हों या आर्थिक, सोना एक ऐसा निवेश है जो हर परिस्थिति में सुरक्षित माना जाता है, और इसीलिए इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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