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केंद्रीय बजट की वास्तविकता: निराशाएं और चुनौतियां

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केंद्रीय बजट की पूर्व संध्या पर हम सब अपने विचार व्यक्त करते हैं, लेकिन बजट के बाद आमतौर पर निराश होते हैं क्योंकि बजट की घोषणाएं जल्द ही अप्रभावी हो जाती हैं। भले हम कुछ भी कहें पर बजट बनाने वाले जमीनी हकीकत से दूर रहते हैं, जिससे बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याएं गंभीर बनी रहती हैं।

यदि हम बेरोजगारी की समस्या पर बात करें तो सत्य यह है कि युवाओं को स्थायी और सुरक्षित नौकरियों की जरूरत है, लेकिन सरकारी पद खाली पड़े हैं। विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में नौकरियों के सृजन के लिए आर्थिक नीतियों में बड़े बदलाव की आवश्यकता है।

महंगाई भी एक बड़ी समस्या है, जिससे आम लोग प्रभावित हो रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों में कीमतों में असमानता है, जो महंगाई की समस्या को और बढ़ाती है।

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा भी चर्चा का विषय है। शिक्षा की गुणवत्ता खराब है और स्वास्थ्य सेवाएं पर्याप्त नहीं हैं। सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।

अन्य चुनौतियों में स्थिर मजदूरी, बढ़ता घरेलू कर्ज और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की आवश्यकता शामिल है।

इन मुद्दों की अनदेखी के कारण भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनावों में बहुमत नहीं मिला और उपचुनावों में भी हार का सामना करना पड़ रहा है । यक्ष प्रश्न यह है कि क्या आगामी बजट में इन चेतावनियों का समाधान मिलेगा।

( राजीव खरे राष्ट्रीय ब्यूरो)

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