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परम पूज्य आचार्य श्री वीररत्न सुरिश्वर जी म.सा का अंतिम संस्कार शिवपुर मातमोर तीर्थ में


इंदौर मध्य प्रदेश पूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद विजय वीररत्न सुरीश्वरजी महाराज साहब का शुक्रवार को इंदौर में देवलोक गमन हो गया। तिलक नगर में दोपहर 2.35 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। और आज हुआ 2.33 बजे धास संस्कार उन्होंने अपने व्यकत्व्य में कल ही बता दिया था की उन्हें पूर्वाभास हो गया था की मुझे शिवपुर जाना है और पूछा की शिवपुर जाने पर कितने मोड़ आते है 2.5 मोड़ आते है और 2.30 बजे उनका स्वर्गवास होने वाला है बताया गया कि ठीक उसी समय चंद्रयान प्रक्षेपित हो रहा था।
युवा राजेश जैन ने बताया कि पूज्यश्री की पालकी यात्रा 15 जुलाई शनिवार को शिवपुर तीर्थ में निकाली गई। चढ़ावे और अग्नि संस्कार का कार्यक्रम में देश भर से हजारों गुरु भक्त नम्र आँखों से दी गुरुदेव को श्रद्धांजलि मातमोर में हुआ अंतिम संस्कार उसके पश्चात गुरुदेव की डोल यात्रा पुरे मंदिर में निकाली गयी और वहा पर एक चबूतरा बनाकर अंतिम विदाई दी गयी उनके परिजन के आलावा राजस्थान , गुजरात मध्य प्रदेश और मालवा के 200 से ज्यादा संघो की उपस्थिथि रही | करोडो के चढ़ावे में माध्यम से राशि एकत्रित हुई जिससे वहा पर वीर मणि धाम गुरु मंदिर का निर्माण होगा
आचार्य श्री बनवाएं कई मंदिर और गुरुकुल
देवास में टेकरी स्थित शत्रुंजयावतार आदेश्वर जैन मंदिर, शंखेश्वर मंदिर में देवगुरू मंदिर, भोजन शाला और चापड़ा के पास शिवपुर तीर्थ आचार्य जी की ही अनूठी देन है। संपूर्ण मालवा अंचल और भारत वर्ष में उन्होंने करीब 300 जैन मंदिर, उपाश्रय, धर्मशाला, आराधना भवन और गुरुकुलों निर्माण किया था।
देश-प्रदेश में आचार्य श्री के हजारों गुरु भक्त
मध्यप्रदेश के साथ ही गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मारवाड़ में आचार्य के हजारों गुरु भक्त हैं। उन्होंने देवास नगर में अपने जीवन के 4 चातुर्मास प्रदान किए। विशाल जनमानस को धर्म प्रवृत्ति की ओर आकृष्ट किया। देवास जैन समाज के साथ, अन्य सभी समाज के गुरु भक्त भी उनकी आस्था के केंद्र थे। उनके देवलोक गमन की सूचना सुनते ही गुरु भक्तों में शोक की लहर फैल गई। 14 महातीर्थ का निर्माण करवा चुके थे आचार्य वीररत्न
आचार्यश्री की प्रेरणा से मक्सी पार्श्वनाथ, कामित पूरण उन्हेल, 24 जिनालय धाम शाजापुर, शत्रुंजयावतार टेकरी मंदिर देवास, तिलक नगर इंदौर, शंखेश्वर धाम राऊ जैसे 14 महातीर्थों की स्थापना की गई। मालवांचल में उनकी सबसे बड़ी भेंट जैन तीर्थ शिवपुर मातमोर है। 127 मंदिर और 125 विहार धाम का निर्माण करवाकर आपने एक अमिट इतिहास का सर्जन किया है। मणिभद्रवीर के परम साधक रहे हैं।
ऐसे बनवाया एशिया का सबसे बड़ा रथाकार मंदिर
बताया जाता है कि शिवपुर मातमोर जैन तीर्थ बनने के पीछे की कहानी भी अलग है। 7 नवंबर 1987 में मातमोर के प्रेमचंद लुणावत के आमंत्रण पर बागली से सीधे मातमोर आ रहे अनुयोगाचार्य वीररत्न विजयजी महाराज जब शिवपुर पहुंचे और एक पेड़ के नीचे गोचरी के लिए बैठे थे, तभी सामने से एक गाय आकर महाराजश्री के आहार पात्र को अपने सींग में पिरोकर आधा किमी दूर लेजाकर एक पेड़ के नीचे छोड़ दिया।
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर अलग प्रकार की अनुभूति हुई। इसके बाद पेड़ के आसपास की खुदाई में मणिभद्रवीर की मूर्ति निकली। इस पर महाराजश्री ने मंदिर निर्माण की बात लुणावत को बताई। लुणावत ने उसी समय महाराजश्री को अपनी निजी जमीन दान कर मंदिर निर्माण की हामी भर दी। महाराजश्री के मार्गदर्शन में देखते ही देखते एक विशाल मंदिर का निर्माण हो गया। इसमें घोड़े के रथ वाला (रथाकार) मंदिर आकर्षण का केंद्र है। यह मंदिर एशिया का सबसे बड़ा रथाकार मंदिर है। इसी के साथ नागेश्वर पार्श्वनाथ, शंखेश्वर पार्श्वनाथ, गुरु मंदिर के साथ ही पंछियों को दाना चुगने के लिए पक्षी घर भी आकर्षण का केंद्र है। यहीं तीर्थ पर ही 5 फरवरी 2023 में अनुयोगाचार्य का आचार्य पद समारोह हुआ था। इसके बाद अनुयोगाचार्य वीररत्न विजयजी महाराज को आचार्य पदवी मिली थी। वे आचार्य देवश्री वीररत्न सूरीश्वरजी महाराज कहलाए थे।
11 साल 6 माह की उम्र में गृहस्थ जीवन त्यागा, 45 साल मालवा में रहे
आचार्य श्री का जन्म 28 फरवरी 1952 को उत्तम कुमार के रूप में पिंडवाड़ा जिला सिरोही राजस्थान के छोगालाल और लक्ष्मीबाई मरड़िया के घर हुआ था। उन्होंने सिर्फ 11 वर्ष 6 माह की आयु में ही गृहस्थ जीवन का परित्याग कर दिया था। संयम का मार्ग स्वीकार कर मुनिश्री वीररत्न विजयजी बने थे। उन्होंने प्रथम दीक्षा आचार्य प्रेम सूरीश्वरजी महाराज ने दिलाई थी। गुरु चरण व शरण में सदा समर्पित मुनिश्री ने संस्कृत, प्राकृत, आगम ज्योतिष, व्याकरण व काव्य जैसे ग्रंथों का अध्ययन करके प्रखर विद्वता प्राप्त की। आप तेजस्वी साहित्यकार के साथ ही ओजस्वी प्रवचनकार भी थे। 71 वर्ष के संयम-साधना काल में 45 वर्षों से आप लगातार मालव भूमि में विचरण कर रहे थे। कल्पक गाँधी , देवाशीष कोठारी, पूर्व मंत्री पारस जैन ,अजयजी अनामिका ,पारस कोठारी ,मुखाग्नि नरपद भाई सेठ एवं मेहता परिवार सचोर वालो ने दी
भवदीय राजेश जैन युवा रिपोर्ट अनिल भंडारी

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