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छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या: एक नृशंस घटना जो पत्रकारिता की चुनौतियों को उजागर करती है

बीजापुर 04 जनवरी 2025

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या ने न केवल पत्रकारिता के क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों को उजागर किया है, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकारों की सुरक्षा पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। मुकेश चंद्राकर, जो ‘बस्तर जंक्शन’ यूट्यूब चैनल के संपादक और स्वतंत्र पत्रकार थे, 1 जनवरी की शाम से लापता थे। उनका शव ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के परिसर में बने सेप्टिक टैंक से बरामद हुआ।

मुकेश चंद्राकर ने हाल ही में 120 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग की थी। उन्होंने गंगालूर और हिरौली के बीच सड़क निर्माण की खामियों और गड्ढों को उजागर किया था। उनकी रिपोर्टिंग के बाद ठेकेदार सुरेश चंद्राकर पर प्रशासनिक दबाव बढ़ा, जिससे नाराज होकर ठेकेदार ने अपने भाइयों और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर उनकी हत्या की साजिश रची।

मृतक के भाई ने बताया कि मुकेश को 1 जनवरी की शाम आखिरी बार रितेश चंद्राकर के साथ देखा गया था। पुलिस ने मुकेश के फोन की आखिरी लोकेशन के आधार पर जांच शुरू की, जिससे सुरेश चंद्राकर के परिसर में संदेह हुआ। पत्रकारों और पुलिस ने जब सेप्टिक टैंक को तुड़वाया, तो उसमें मुकेश का शव मिला।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार, मुकेश का पहले गला घोंटा गया और फिर कुल्हाड़ी से वार किया गया। पुलिस ने इस मामले में सुरेश चंद्राकर के दो भाइयों और एक सहयोगी को गिरफ्तार किया है, लेकिन मुख्य आरोपी सुरेश चंद्राकर अभी भी फरार है।

पत्रकार मुकेश की हत्या के मामले में ठेकेदार सुरेश चंद्राकर को मुख्य आरोपी बनाया गया है। हत्या में शामिल रितेश चंद्राकर, दिनेश चंद्राकर और रामटेके को गिरफ्तार कर लिया गया है। सुरेश, जो पहले एसपीओ था, ठेकेदारी से करोड़पति बना और राजनीतिक दलों के साथ अपनी गहरी पकड़ बनाई। उसने समाज में छवि सुधारने के लिए बड़े विज्ञापन और सामाजिक कार्य किए, लेकिन हत्या के बाद फरार हो गया। उसकी बारात हेलिकॉप्टर से और विदाई बीएमडब्ल्यू कार में होने जैसे रुतबे के किस्से चर्चा में रहे। अब पुलिस उसकी तलाश में जुटी है और जल्द गिरफ्तारी की उम्मीद है।

मुकेश चंद्राकर बस्तर जैसे चुनौतीपूर्ण इलाके में काम करते थे, जिसे नक्सलवाद का गढ़ माना जाता है। उन्होंने अपनी पत्रकारिता के जरिए आदिवासी समुदाय की समस्याओं, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, और स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया। उनके भाई ने कहा, “मुकेश रियल हीरो थे, जिन्होंने सच्चाई के लिए अपनी जान दे दी।”
मुकेश का जीवन संघर्षों से भरा था। उन्होंने बचपन में गैरेज में काम करते हुए पढ़ाई की और अपने भाई के साथ मिलकर पत्रकारिता शुरू की। वे रायपुर से बीजापुर तक पत्रकारों के लिए एक ठिकाना और मददगार के रूप में जाने जाते थे।

मुकेश चंद्राकर की हत्या यह दर्शाती है कि पत्रकारिता केवल एक पेशा नहीं, बल्कि एक जोखिम भरा मिशन है। भ्रष्टाचार, अपराध और सत्ता की सच्चाई को उजागर करने वाले पत्रकारों को अक्सर धमकियों, हमलों और यहां तक कि हत्या का सामना करना पड़ता है। भारत में, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में, पत्रकारों को न केवल राजनीतिक और आर्थिक ताकतों से लड़ना पड़ता है, बल्कि सामाजिक दबाव और असुरक्षा का भी सामना करना पड़ता है। बीजापुर जैसे क्षेत्रों में नक्सलवाद और भ्रष्टाचार के बीच काम करना बेहद कठिन है।

मुकेश चंद्राकर की हत्या के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं और अपराधियों को जल्द गिरफ्तार करने का आश्वासन दिया है। लेकिन यह घटना पत्रकारों की सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक गंभीर बहस को जन्म देती है।
पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की देश के कई पत्रकार संगठनों ने निंदा की है। इंडियन कौंसिल आफ प्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष
एस एन विश्वकर्मा ने इस जघन्य हत्या पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे पत्रकार जगत पर हमला बताया है और इसके दोषियों को कड़ी से कड़ी बल्कि सजाए मौत देने की माँग की है। साथ ही उन्होंने पत्रकारों की सुरक्षा के लिये उचित व्यवस्था बनाने की केंद्र व राज्य सरकारों से माँग भी की है। उन्होंने यह भी कहा है कि संगठन इस संबंध में जल्द ही एक अभियान आरंभ करेगा।

आज जब लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने के लिए निष्पक्ष पत्रकारिता की सबसे अधिक आवश्यकता है, पत्रकारों पर बढ़ते हमले न केवल लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं, बल्कि सच्चाई को दबाने की कोशिश भी कर रहे हैं। मुकेश चंद्राकर की हत्या पत्रकारिता के उन उद्देश्यों को पुनः याद दिलाती है, जहां सच्चाई को सामने लाने के लिए अपनी जान की बाजी लगानी पड़ती है। उनकी मौत केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला है। समाज, प्रशासन और मीडिया संस्थानों को मिलकर पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, ताकि सच्चाई की आवाजें कभी थम न सकें।

(राजीव खरे ब्यूरो चीफ छत्तीसगढ़)

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