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विश्व में सेमीकंडक्टर युद्ध: अमेरिका, जापान का चीन पर कड़ा रुख़ और भारत की संभावनाएं

सेमीकंडक्टर आधुनिक तकनीक का दिल है। स्मार्टफोन, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिक वाहन, 5G नेटवर्क और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों के लिए यह अपरिहार्य है। इसलिए, सेमीकंडक्टर तकनीक पर प्रभुत्व रखना किसी भी राष्ट्र के लिए तकनीकी और आर्थिक शक्ति का प्रतीक है।

अमेरिका ने सेमीकंडक्टर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए $52 बिलियन का निवेश किया है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर आयातक है, लेकिन एडवांस चिप्स और तकनीक में वह अभी आत्मनिर्भर नहीं है, पर वह मेड इन चाइना 2025 योजना के तहत सेमीकंडक्टर उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लक्ष्य पर ज़ोरों से काम कर रहा है।
चीन के खिलाफ अमेरिका और जापान एक जुट होकर रणनीति बनाकर काम कर रहे हैं। अमेरिका ने सख्त नीति अपनाते हुए अपने चिप्स एंड साइंस एक्ट 2022 के तहत चीन को एडवांस चिप्स और मैन्युफैक्चरिंग उपकरणों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाया है, जिससे चीन की प्रौद्योगिकीय क्षमता सीमित हो रही है।इसके अलावा अमेरिका ने जापान, नीदरलैंड और ताइवान जैसे देशों के साथ तकनीकी साझेदारी भी मजबूत की है।इधर जापान, जो कभी सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में अग्रणी था, अब अमेरिका के साथ सहयोग कर चीन को उच्च-स्तरीय चिप्स की आपूर्ति रोकने में मदद कर रहा है।जापान की कंपनियां, जैसे टोक्यो इलेक्ट्रॉन, चीन को चिप निर्माण उपकरणों की आपूर्ति सीमित कर रही हैं।
चीन जो अभी तक दुनिया का सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर आयातक है, और आत्मनिर्भर होने की योजना पर जुटा हुआ था उसकी योजना को अमेरिकी और जापानी प्रतिबंधों ने धीमा कर दिया है।चीन अब ताइवान पर दबाव बना रहा है, क्योंकि ताइवान की TSMC दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर निर्माता है।
भारत इस “सेमीकंडक्टर युद्ध” में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन सकता है।मोदी सरकार ने विशेष पहल करते हुए सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग और डिज़ाइन को बढ़ावा देने के लिए ₹76,000 करोड़ का सेमीकंडक्टर मिशन लॉन्च किया है।साथ ही इसमें प्रमुख वैश्विक कंपनियों को भारत में निवेश के लिए आकर्षित किया जा रहा है। इसके तहत ताइवान और अमेरिका जैसे सेमीकंडक्टर दिग्गजों के साथ साझेदारी की संभावना है।साथ ही भारत के पास आईटी और इंजीनियरिंग में प्रशिक्षित मानव संसाधन है, जो डिज़ाइन और रिसर्च में मददगार हो सकता है।सेमीकंडक्टर डिज़ाइन कंपनियों जैसे इंटेल, AMD और Qualcomm के लिए भारत पहले से ही एक हब है। ग़ौरतलब है कि भारत का भौगोलिक स्थान चीन और पश्चिमी देशों के बीच इसे एक रणनीतिक केंद्र बनाता है।
हालाँकि अभी कई चुनौतियाँ भी भारत के सामने हैं जिनमें मैन्युफैक्चरिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर अभी विकसित होना बाकी है। साथ ही ऊर्जा और पानी की उच्च मांग जैसी तकनीकी जरूरतों को पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

अमेरिका और जापान द्वारा चीन पर लगाए गए प्रतिबंधों ने सेमीकंडक्टर उद्योग में भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को तेज कर दिया है। इस बीच, भारत के पास इस क्षेत्र में उभरने का सुनहरा अवसर है। यदि भारत बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाता है और वैश्विक साझेदारियों का लाभ उठाता है, तो यह सेमीकंडक्टर उत्पादन और डिज़ाइन में एक प्रमुख शक्ति बन सकता है।

( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक )

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