नई दिल्ली
लगभग 13 महीने पहले हुए किसान आंदोलन की आँच एक बार फिर से सुलग रही है एक बार फिर से पंजाब हरियाणा की सीमा के पास ट्रैक्टरों की बहुत बड़ीं संख्या दिख रही है और हज़ारों आंदोलनकारी किसान फिर टेंट लगाकर इकट्ठे हो गए हैं । इस बार जो नेता किसान आंदोलन संभाल रहे हैं उनमें किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी के सरवन सिंह पंधेर, भारतीय किसान यूनियन के मनजीत सिंह राय और जगजीत सिंह दल्लेवाल तथा लोक भलाई इंसाफ़ वेलफ़ेयर सोसायटी के बलदेव सिंह सिरसा शामिल हैं। ये सभी महत्वपूर्ण किसान नेता हैं और यदि तो यह टकराव बना रहा तो किसानों का ग़ुस्सा पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी फैल सकता है। ग़ौरतलब है कि इन राज्यों के किसान संगठनों ने भी आंदोलन को नैतिक समर्थन दिया है।
13 महीने पहले हुए किसान आंदोलन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को पीछे हटने और यहाँ तक कि उनके कृषि सुधारों को वापस लेने पर मजबूर कर दिया था और इस पर दूसरे चरण के आंदोलन में बड़े विरोध की धमकी ने एक बार फिर सत्तारूढ़ भाजपा को फ़िक्रमंद कर दिया है।
अभी कुछ दिनों पहले की बात है प्रधानमंत्री और भाजपा यह सोच रहे थे कि उन्होंने उत्तर में किसानों का समर्थन पा लिया है । हाल ही में किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को सरकार ने भारत रत्न देने की घोषणा की थी। इससे प्रसन्न होकर पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के पोते और राष्ट्रीय लोकदल के दिग्गज किसान नेता जयंत चौधरी एनडीए में आ गए, पर किसानों का का विरोध यदि और बढ़ा तो यह इस गठजोड़ पर भी असर डाल सकता है। किसानों के इन विरोधों का राजनीतिक असर पहले से दिखाई दे रहा है क्योंकि पंजाब में भाजपा और अकाली दल की बातचीत क़ामयाब नहीं हो सकी और हरियाणा में भाजपा और जे जे पी के दुष्यंत चौटाला जी की बात भी नहीं जम पा रही है ।
भाजपा के लिए किसानों का यह विरोध चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है क्योंकि लोक सभा चुनाव सर पर हैं। किसान नेताओं के साथ बातचीत बहुत कठिन है क्योंकि किसान संगठनों की माँगें कुछ ऐसी भी हैं जिनका हल आसान नहीं है। सरकार को इस मामले को राजनीतिक ही नहीं बल्कि नीतिगत तरीक़े से बहुत संभालकर जल्दी हल करना चाहिए ।क्योंकि किसानों को रोकने के लिए बहुत ज़्यादा बल प्रयोग से एक ओर तो इससे किसानों में असंतोष बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर पुलिस की जगह जगह बैरिकेड लगाकर रास्ता रोक देने और किसानों को रोकने के लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बाधित करने से जनसामान्य की भी तक़लीफ़ बढ़ती जा रही है जो कि सरकार की गुड गवर्नेंस की छवि को प्रभावित कर रही है।साथ ही आंदोलन में किसानों की कुछ मौतें भी सरदर्द बढ़ाती जा रही हैं। विपक्ष भी आंदोलन और उससे हो रही तकलीफ़ों और दुर्घटनाओं से राजनीतिक लाभ लेने में जुटा है। यदि यह आंदोलन जल्द समाप्त नहीं हुआ तो एक समय बाद उससे होने वाली मुसीबतों का दोष किसानों के बजाय सरकार पर आएगा कि समय रहते उन्होंने इस मुद्दे पर ध्यान क्यों नहीं दिया।
( राजीव खरे राष्ट्रीय ब्यूरो)
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