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*दुर्ग जिले के डुमरडीह गांव में ईंट बनाने वाली यमुना ने नीट क्वालिफाई किया – डाक्टर बनकर पूरा करेगी अपना और परिवार का सपना। *

छत्तीसगढ़
दुर्ग

दुर्ग जिले के डुमरडीह गाँव के बैजनाथ चक्रधारी का चेहरा आज ख़ुशी से चमक रहा है, क्योंकि उनकी बेटी डाक्टर बनकर उनका ख़्वाब जो पूरा करेगी । बैजनाथ चक्रधारी ईँटें बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। वे खुद बचपन से इस कार्य में लगे हैं और अभी तक यही नियति उनकी अगली पीढ़ी की भी थी, जिसमें उनके बच्चे भी बचपन से ईंटें बना रहे थे।इन्हें सिर्फ़ यही पता है कि यदि ईंट नहीं बनाएंगे, तो क्या खाएंगे। जब ईंट बनकर बिक जाती है , तब जाकर इनके घर का चूल्हा जलता है।यमुना भी दिन में कई घंटे ईंट बनाती थी और रात में पढ़ती थी।

पर अब इनके जीवन में आशा की किरण जगमगाने लगी है क्योंकि इनकी बेटी यमुना ने नीट( NEET) क्वालिफ़ाई कर लिया है। बैजनाथ के परिवार में उनकी पत्नी, चार बेटियाँ व एक बेटा है।बैजनाथ स्वयं पाँचवीं तक पढ़े हैं और उनकी पत्नी खुद नहीं पढ़ सकी थीं पर इन दोनों ने अपने बच्चों को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यमुना के दसवीं पास करने के बाद तो उन्होंने अपने खाने-पीने में भी कटौती कर दी थी, यहाँ तक कि वे अपने आधे अधूरे घर में दरवाज़ा तक नहीं लगवा सके ताकि कोचिंग की फ़ीस, कापी किताब का खर्चा निकल सके।

यमुना ने बताया कि वो बचपन से ही पढ़ाई में ठीक थी और डाक्टर बनना शुरू से उसका सपना था । हालाँकि परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी पर फिर भी सभी ने उसका पूरा सपोर्ट किया। आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार में सबकी अपनी अपनी जिम्मेवारियां थीं पर सभी ने विशेषकर उसकी बड़ी बहन ने उसका पूरा ध्यान रखा यहाँ तक कि यमुना के हिस्से का काम भी उसकी बड़ी बहन कर देती थी ।उसके टीचर उसके किताबें दे देते थे यहाँ तक कि एक टीचर ने उसको आगे बढ़ाने के लिये स्मार्ट फ़ोन तक दिया।
पहले तीन प्रयासों में यमुना नीट की परीक्षा में सफल न हो सकी । उसने बताया कि तीसरी असफलता से सिर्फ़ वह ही नहीं पूरा परिवार मायूस था। यहाँ तक कि उसके पिता ने कहा कि यदि इस बार नीट की परीक्षा क्वालिफाई नहीं कर पाई, तो फिर पढ़ाई बंद करनी होगी। वो मायूस तो हुई पर हताश नहीं, वह फिर जुट गई और वह मेहनत ही क्या जो रंग न लाए । चौथे प्रयास में उसके नीट की परीक्षा में 516 नंबर मिले और उसकी ऑल इंडिया रैंक 92 हजार और कैटेगरी रैंक 42 हजार है। याने उसे मेडिकल में एडमिशन मिल जाएगा ।
उसका पूरा परिवार बहुत खुश हैं क्योंकि उनकी बेटी डाक्टर बन कर उनकी ज़िंदगी में ख़ुशियाँ लाएगी । और चेहरे में सफलता की ख़ुशी पर मन में अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास लिये यमुना का कहना है सबने मेरे लिये इतना किया अब मेरी बारी है इनका ऋण उतारने की।
( राजीव खरे स्टेट ब्यूरो चीफ़ छत्तीसगढ़ एवं राष्ट्रीय उप संपादक)

 

 

 

 

 

 

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