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जलगांव रेल हादसा: क्या कोई सबक लेगा ? अफवाहें और घबराहट से बचाने की जिम्मेदारी किसकी?

 

महाराष्ट्र के जलगांव जिले में पुष्पक एक्सप्रेस में आग लगने की अफवाह ने 12 निर्दोष यात्रियों की जान ले ली। अफवाह सुनते ही यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई। किसी ने चेन पुलिंग की, तो कुछ यात्री चलती ट्रेन से कूद गए। घबराहट में कई यात्री पास की पटरियों पर बैठ गए, और दुर्भाग्यवश विपरीत दिशा से आ रही कर्नाटक एक्सप्रेस ने उन्हें कुचल दिया। यह हादसा भारतीय रेलवे की व्यवस्था और यात्रियों की सुरक्षा के प्रति हमारी लापरवाही को उजागर करता है।

21 जनवरी 2025 की सुबह, लखनऊ से मुंबई जा रही पुष्पक एक्सप्रेस के एक कोच में चिंगारी उठने की घटना ने भयावह मोड़ ले लिया। इस छोटी-सी घटना को कुछ यात्रियों ने आग लगने की अफवाह में बदल दिया। भयभीत यात्रियों ने हड़बड़ी में ट्रेन रुकवाई और कुछ ने बिना सोचे-समझे छलांग लगा दी। इसी बीच, कर्नाटक एक्सप्रेस विपरीत दिशा से आ रही थी, और पास की पटरी पर बैठे लोग उसकी चपेट में आ गए। इस हादसे में 12 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। एक प्रत्यक्षदर्शी यात्री ने बताया कि जब यात्री ट्रैक पर थे तो आने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस ने अपना हॉर्न भी नहीं बजाया। उन्होंने कहा, अगर कर्नाटक एक्सप्रेस ने हॉर्न बजाया होता तो यात्री सतर्क हो जाते।रेलवे प्रशासन और स्थानीय अधिकारियों ने तुरंत राहत कार्य शुरू किया, लेकिन यह जान बचाने के लिए काफी देर हो चुकी थी।

रेलवे एक ऐसी व्यवस्था है, जहां हर छोटी-सी चूक जानलेवा साबित हो सकती है। जलगांव हादसे ने रेलवे और प्रशासन की कई खामियों को उजागर किया है।
1. सुरक्षा प्रोटोकॉल का अभाव: ट्रेन के भीतर यात्री और स्टाफ के बीच संचार की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं थी। अगर तत्काल स्थिति स्पष्ट की जाती, तो शायद घबराहट टाली जा सकती थी।
2. यात्रियों की जागरूकता: भारतीय रेलवे में सुरक्षा संबंधी जागरूकता का घोर अभाव है। यात्रियों को यह समझना चाहिए कि घबराहट और अफवाहें जानलेवा हो सकती हैं।इस घटना में भी कर्नाटक एक्सप्रेस के ड्राइवर को हार्न बजाकर लोगों को सचेत करना चाहिए था।
3. रेलवे स्टाफ की जवाबदेही: ट्रेन टिकट निरीक्षक (टीटीई) और अन्य कर्मचारियों को ऐसी आपातकालीन परिस्थितियों के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

ऐसी घटनाओं से बचने के लिये बोगियों में इंटरनल कम्युनिकेशन सिस्टम होना चाहिए । प्रत्येक कोच में लाउडस्पीकर या डिस्प्ले स्क्रीन होनी चाहिए, जहां ड्राइवर, गार्ड या टीटीई तत्काल घोषणाएं कर सकें।कोचों में आपातकालीन इंटरकॉम सिस्टम लगाया जाना चाहिए, ताकि यात्रियों की संदेहपूर्ण स्थिति में सीधे ट्रेन स्टाफ से संवाद हो सके।
साथ ही यात्रियों को जागरूक करना भी बहुत आवश्यक है । हवाई जहाज़ की तरह ट्रेन में यात्रा से पहले और यात्रा के दौरान सुरक्षा दिशानिर्देश दिए जा सकते हैं। विशेषकर लंबी दूरी की ट्रेनों में सुरक्षा उपायों की जानकारी देना अनिवार्य किया जाना बेहतर होगा। इसके अलावा टीटीई और स्टाफ की जवाबदेही निर्धारित की जानी चाहिए ।टीटीई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी आपात स्थिति में यात्रियों को पैनिक न होने दिया जाए।इसके लिये सभी ट्रेन स्टाफ को नियमित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे आपातकालीन परिस्थितियों में शांत और व्यवस्थित तरीके से स्थिति को संभाल सकें। ट्रेनों में अफवाहों पर सख्त कदम उठाने बहुत ज़रूरी हैं । ट्रेन में किसी भी प्रकार की झूठी सूचना फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिये । रेलवे को साइबर सुरक्षात्मक तंत्र भी विकसित करना चाहिए, जिससे सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों पर फैलने वाली झूठी सूचनाओं पर तत्काल रोक लगाई जा सके।

भारतीय रेलवे में ऐसी घटनाएं नई नहीं हैं। 2012 में भी एक एक्सप्रेस ट्रेन में आग लगने की अफवाह ने कई यात्रियों की जान ली थी। हर बार ऐसी घटनाओं से सबक लेने की बात की जाती है, लेकिन जमीनी स्तर पर ठोस कदम उठाए बिना यह समस्या बनी रहती है।

जलगांव का यह हादसा हमारी असावधानी और घबराहट के गंभीर परिणामों का प्रतीक है। यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है कि हमें अपनी व्यवस्थाओं को सुधारने और यात्रियों को जागरूक बनाने की आवश्यकता है। रेलवे प्रशासन, यात्रियों और सरकार के बीच बेहतर समन्वय ही इस तरह की त्रासदियों को रोक सकता है। हमें इस घटना से सबक लेते हुए अपनी कमजोरियों को सुधारने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

( राजीव खरे ब्यूरो चीफ़ छत्तीसगढ़ )

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