बांग्लादेश
जो 1971 में भारत के समर्थन से स्वतंत्र हुआ, एक धर्मनिरपेक्ष और समावेशी समाज के आदर्श पर आधारित था। परंतु बीते कुछ दशकों में बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं, पर बढ़ते अत्याचार इस आदर्श को चुनौती देते नजर आते हैं। मंदिरों पर हमले, हिंदुओं की संपत्ति पर कब्जा, दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों में व्यवधान और हाल ही में इस्कॉन प्रमुख की गिरफ्तारी ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है। इन घटनाओं ने न केवल बांग्लादेश के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर किया है, बल्कि भारत जैसे पड़ोसी देश के लिए भी चिंता की लकीर खींच दी है।
बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय को दशकों से असहिष्णुता और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। दुर्गा पूजा के दौरान पंडालों पर हमले और अफवाहों के आधार पर सामूहिक हिंसा इस बात का प्रमाण हैं कि वहां धार्मिक अल्पसंख्यक कितने असुरक्षित हैं। 2021 के कुमिल्ला कांड और अब इस्कॉन प्रमुख की गिरफ्तारी जैसी घटनाएं इस असहिष्णुता को और उजागर करती हैं।
इस्कॉन, जो शांति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए एक प्रमुख संगठन है। ऐसे संगठन के प्रमुख को निशाना बनाना केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि पूरे हिंदू समाज के मनोबल को तोड़ने की कोशिश है।
भारत की भूमिका और जिम्मेदारी
भारत को न केवल इन घटनाओं पर नजर रखनी चाहिए, बल्कि प्रभावी ढंग से कार्रवाई भी करनी चाहिए। भारत और बांग्लादेश के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संबंध हैं, जो भारत को इस विषय में हस्तक्षेप करने के लिए नैतिक रूप से बाध्य करते हैं।
कूटनीतिक दबाव:
भारत को बांग्लादेश सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। यह दबाव द्विपक्षीय वार्ता, SAARC और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों के माध्यम से दिया जा सकता है। भारत को यह स्पष्ट करना चाहिए कि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष संविधान और उसके लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
मानवीय और कानूनी सहायता:
बांग्लादेश के हिंदू समुदाय को भारत से कानूनी और आर्थिक सहायता की जरूरत है। भारत उनके लिए एक मजबूत सहायता तंत्र बना सकता है, जिससे वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के साथ मिलकर उनकी समस्याओं को वैश्विक मंच पर उठाया जा सकता है।
शरणार्थी नीति का पुनर्मूल्यांकन:
भारत को अपनी शरणार्थी नीति को बेहतर बनाना चाहिए ताकि बांग्लादेश से आने वाले हिंदू शरणार्थियों को सुरक्षा और नागरिकता दी जा सके। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत इन्हें वैध संरक्षण दिया जा सकता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक पहल:
भारत को बांग्लादेश के साथ सांस्कृतिक और सामाजिक संवाद को बढ़ावा देना चाहिए। धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे को बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों और शैक्षिक परियोजनाओं के माध्यम से दोनों देशों के लोगों को करीब लाया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप:
भारत को बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठन और वैश्विक मंचों के माध्यम से इस विषय पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय दबाव बांग्लादेश की सरकार को अल्पसंख्यकों के प्रति अपने रवैये को सुधारने के लिए बाध्य कर सकता है।
सुरक्षा और खुफिया सहयोग:
भारत और बांग्लादेश के बीच सुरक्षा सहयोग को मजबूत किया जा सकता है ताकि सामूहिक हिंसा और धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं को रोका जा सके। भारत तकनीकी और खुफिया जानकारी साझा कर बांग्लादेश को सहायता प्रदान कर सकता है।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार केवल वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों का हनन नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक चुनौती है। भारत को न केवल एक पड़ोसी बल्कि एक जिम्मेदार देश के रूप में इस मुद्दे पर संवेदनशीलता और दृढ़ता से काम करना होगा। कूटनीतिक दबाव, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुद्दा उठाना, और सांस्कृतिक संवाद बढ़ाना—ये सभी कदम न केवल बांग्लादेश के हिंदुओं को राहत देंगे, बल्कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता को भी मजबूत करेंगे।
धार्मिक स्वतंत्रता और सह-अस्तित्व के बिना किसी समाज का विकास अधूरा है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि बांग्लादेश में हिंदुओं की आवाज न दबाई जाए और वे अपने देश में सम्मान और सुरक्षा के साथ जी सकें।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
Leave a comment