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आज है विश्व गौरैया दिवस- आओ एक कदम हम भी बढ़ाये, घर में वापस चहचहाट चिड़ियों की लायें।

छत्तीसगढ़

रायपुर
बचपन की यादें गौरैया के बिना अधूरी होती हैं, जब आंगन में फुदकती एक नन्ही-सी चिड़िया चोंच में दाना दबाए फुर्र होती थी, तो उसकी चीं चीं से भरी चहचहाहट हमारी दिनचर्या का हिस्सा हुआ करती थी । कबूतर के बाद गौरैया ही एक ऐसा पक्षी है, जिसे मनुष्य से भय कम लगता है। शहरों में या गाँव के आस-पास जब भी मनुष्य की नई बस्ती का निर्माण होता है, तब पक्षियों में सबसे पहले गौरैया ही वहापर अपना घर बसाने पहुंचती है।

पक्षी-विज्ञान के अनुसार गौरैया की उत्पत्ति मध्य पूर्व (Middle East) में हुई थी और १९ वीं सदी के मध्य से यह कुछ जहाजों की मदत से और कुछ प्राकृतिक माध्यमों से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में स्थानांतरित हो गई । गौरैया का वैज्ञानिक नाम पैसर डोमेस्टिकस है, यह चिड़िया पक्षियों के पैसर वंश की एक जीववैज्ञानिक जाती है । गौरैया की लगभग छह तरह ही प्रजातियां हमारे आस-पास रोज मंडराती हैं, पर हम सभी को पहचान नहीं पाते, उनके नाम कुछ इस प्रकार है, हाउस स्पैरो (घरेलू गौरैया), स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो ।

पर आज इस समय घरेलू गोरैया की प्रजाति लगभग लुप्‍त होने के कगार पर है। कीटनाशकों के बढते उपयोग, भवन निर्माण शैली में बदलाव और घरों से बगीचे समाप्त हो जाने के कारण पिछले कुछ वर्षों में गोरैया की संख्‍या तेजी से घटी है। इसके अलावा मोबाइल और टीवी टावर से होने वाला र‍ेडिएशन भी इनकी संख्या घटने का मुख्‍य कारण है।और अब नन्ही सी चिरैया घर के आंगन से गुम होती जा रही है। डेढ़-दो दशक पहले तक गौरैया के घोंसले रोशनदान, लॉन, पौधों पर देखने को मिल जाते थे। सुबह-सुबह घरों में न केवल गौरैया की चींचीं सुनाई देती थी बल्कि फुदक-फुदक कर दाना चुंगती भी नजर आती थी। एक दशक से गौरैया की संख्या में लगातार कमी आ रही है।

कई पर्यावरण प्रेमी और संगठन भी गौरैया संरक्षण को लेकर मुहिम चला रहे हैं, लेकिन गौरैया घरों से दूर होती जा रही है। हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है, इसका उद्देश्य लोगों में गौरैया संरक्षण के प्रति जागरूकता लाना और गौरैया के संरक्षण के उपायों के बारे में लोगों को बताना है। विश्व गौरैया दिवस 2023 की थीम ‘आई लव स्पैरो’ (I Love Sparrow) रखी गई है। विश्व गौरैया दिवस की थीम हर साल चेंज नहीं की जाती है। विश्व गौरैया दिवस की थीम 2010 से निर्धारित है और इनकी थीम को कभी बदला नहीं गया है। साल 2012 के आसपास गौरैया दिल्ली के शहरी इलाकों से ‘लुप्त’ होने लगी थी, जिसके चलते दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इसे ‘राज्य चिड़िया’ घोषित किया था और इनके संरक्षण के लिए कई प्रयासों की शुरुआत की गई। तब से 11 साल बाद, गौरैया एक बार फिर लोगों को दिखाई देने लगी हैं, जो पेड़ों के आसपास उड़ रही हैं, जहां-तहां बैठी हैं और एक खिड़की से दूसरी खिड़की पर फुदक रही हैं।

गौरैया प्राकृतिक सद्भाव को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गौरैया को हरियाली की रानी क्यों कहा गया है? क्योंकि गौरैया हरे-भरे घास व पौधों के तिनके इकट्ठा करके घोंसला बनाती हैं। वास्तु शास्त्र के मुताबिक भी, गौरैया जिस घर में अपना घोंसला बनाती है, उस घर से स्वतः ही 10 प्रकार के वास्तु दोष दूर होते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार चिड़िया का घोंसला बनाना बहुत ही शुभ और शुभ माना जाता है । जिस घर की उत्तर दिशा और ईशान कोण में गौरैया अपना घोंसला बनाती है, वह उस घर के लिए अत्यंत शुभ होता है । घर के बिगड़े काम स्वतः ही बनने लगते हैं । चूंकि इनके आगमन से जीवन के भाग्य में सुधार होता है। इसलिए यह सुझाव दिया जाता है कि कभी भी किसी घोंसले को नष्ट नहीं करना चाहिए।गौरैया घर के बिगड़े काम बनाने लगती है। हिंदू धर्म ग्रंथों में गौरैया पक्षी साहस और सावधानी के प्रतीक के रूप में माना जाता है। जीवन की परेशानियों में साहस के प्रतीक गौरैया को माना गया है। गौरैया से सीखा जा सकता है कि कैसे वह सुबह जल्द उठकर हर रोज संघर्ष करती है। इसके अलावा गौरैया को लेकर यह भी मान्यता है कि यह पक्षी जिस घर में आते हैं, वहां सद्भावना का संदेश लेकर आते है। यदि कोई गौरैया घर की खिड़की में आकर बैठती है तो इसे परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है। खुले आकाश में उड़ने वाले वाली गौरैया को खुली सोच और विश्वास का भी प्रतीक माना जाता है। यह बताती है कि जीवन में कैसे परेशानियों से लड़कर उनसे छुटकारा पाया जा सकता है। जापान में तो गौरैया को कोमल स्वभाव और बौद्धिक व्यक्तिमत्व का प्रतीक माना जाता है।

संरक्षण प्रयासों के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि काले, भूरे और सफेद पंखों वाली छोटी सी चिड़िया और अपनी खास चहचाहट के लिए पहचाने जानी वाली ‘गौरैया’ फिर से अधिक संख्या में नजर आने लगेंगी। वर्ल्ड स्पैरो डे भी इस उद्देश्य के साथ मनाया जा रहा है कि मनुष्य में एक बार फिर से इंसानियत जाग सके और वह इस नन्हे पक्षी की रक्षा के लिए कुछ कदम उठाएँ और एक बार फिर घर के आंगन में खेलते बच्चे गौरैया को देखकर *चीं चीं करती आई चिड़िया दाल का दाना लाई चिड़िया,* चिरैया रानी जैसी कविता और गीत गुनगुना सकें।
( राजीव खरे स्टेट ब्यूरो चीफ़ छत्तीसगढ़)

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