आलेख
21वीं सदी में शिक्षा और शिक्षक की भूमिका में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। तकनीकी विकास, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और नई शिक्षा नीति ने शिक्षकों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी की हैं। पहले शिक्षक का कार्य सिर्फ ज्ञान देना था, लेकिन अब उन्हें छात्रों को वैश्विक दृष्टिकोण, तकनीकी दक्षता, और नवाचार के साथ तैयार करना है।
भारतीय परंपरा में गुरु-शिष्य संबंध बहुत महत्वपूर्ण रहा है, और आज भी शिक्षक को केवल विषय विशेषज्ञता ही नहीं, बल्कि नई तकनीकों के साथ तालमेल बिठाने की आवश्यकता है। उन्हें छात्रों को न केवल शिक्षा देनी है, बल्कि लोकतांत्रिक विचारों और नैतिक मूल्यों के साथ उनका मार्गदर्शन भी करना है। इसके लिए शिक्षक को निरंतर ज्ञान अद्यतित रखना होगा और तकनीकी नवाचारों को अपनाना होगा।
नई शिक्षा नीति ने मानविकी, कला और विज्ञान के समन्वय पर जोर दिया है, ताकि शिक्षक छात्रों को एक समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज के निर्माण में मदद कर सकें। इस बदलाव के कारण शिक्षक की भूमिका और भी व्यापक हो गई है, जहाँ उन्हें शिक्षा के माध्यम से नैतिक मूल्यों को समाज में पुनः स्थापित करना है।
हालांकि, कुछ सरकारी नीतियों के कारण शिक्षकों का सम्मान समाज में कम हो रहा है। शिक्षक-छात्र अनुपात में असंतुलन, नियुक्ति प्रक्रियाओं में देरी, और वेतन संबंधी समस्याएँ शिक्षकों के लिए चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं। इसके अलावा, प्रशासनिक दबाव और सुविधाओं की कमी से शिक्षकों की कार्यक्षमता पर भी असर पड़ रहा है ।
आज, जब समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, तो शिक्षकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा के माध्यम से नए नैतिक सिद्धांतों को समाज में स्थापित किया जाए। शिक्षक की नई भूमिका अब केवल शिक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें नवाचार का नेतृत्व करना है। उन्हें उच्च लक्ष्यों का चयन करना होगा और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम करना होगा।
शिक्षकों के कंधों पर यह जिम्मेदारी है कि वे बचपन से ही छात्रों में नैतिक मूल्यों का बीजारोपण करें, क्योंकि ये मूल्य जीवनभर व्यक्तित्व निर्माण का आधार बनते हैं। एक अच्छा शिक्षक अपने छात्रों के माध्यम से न केवल अपने राष्ट्र को बल्कि वैश्विक समाज को भी मजबूत बना सकता है। इस संदर्भ में, शिक्षक का कार्य राष्ट्रीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।
शिक्षकों का यह दायित्व है कि वे केवल शिक्षा देने तक सीमित न रहें, बल्कि समाज में हो रहे परिवर्तनों को समझें और छात्रों को उनकी भूमिका के प्रति जागरूक करें। 21वीं सदी के शिक्षक को एक मार्गदर्शक, मित्र और प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य करना होगा।
( राजीव खरे)
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