डिंडौरी मध्य प्रदेश
होली के रंग माहौल में घुलने शुरू हो गए हैं। बाजार में भी तैयारी पूरी हो चुकी है। दुकानें रंग, गुलाल, पिचकारी और अन्य आइटमों से सज चुकी हैं और बाजारों में रौनक भी बढ़ने लगी है। रंगों का त्योहार होली खेलने को बेचैन लोगों का इंतजार दो दिन बाद खत्म हो जाएगा। हालांकि होली पर मस्ती और एक दूसरे को रंग लगाने के लिए लोग अभी से तैयारियों में जुट गए हैं। बाजार में रंगों की दुकानें भी सज गई हैं। इस बार लोगों में तिलक होली खेलने के लिए हर्बल गुलाल की मांग ज्यादा है। कलर की बिक्री बहुत ही कम हो रही है। शहर के मुख्य बाजारों में भी लगने वाली दुकानों पर पक्का रंग बहुत कम ही बिकता नजर रहा है। अधिकांश दुकानों पर गुलाल ही देखने को मिल रही है। बाजार में बिक रही अलग-अगल खुशबू वाली गुलाल की मांग भी अधिक है। व्यापारियों के अनुसार होली पर अब अधिकांश व्यापारी सहित आमजन भी अच्छी क्वालिटी वाली गुलाल की मांग कर रहे हैं।
पर्व को लेकर सजे बाजार : होली पर्व नजदीक आते ही शहर सहित गांवों में भी फाल्गुनी गीतों की गूंज सुनाई देने लगी है। साथ ही बाजार में पारंपरिक रस्म निभाने के लिए नन्हे दूल्हों की पगडिय़ों समेत कई सामान से दुकानें सजी हुई है। युवक-युवतियां चंग की थाप पर फाल्गुनी गीतों से त्योहार के रंगों की याद को ताजा कर रहे हैं।
शहर में तिलक होली मनाने के लिए शहरवासी आतूर हैं। होली को लेकर बाजारों में रंगों की दुकानें सज गई है। शहर के कई जगह सूखे रंग, पिचकारियों की दुकानें लगी है। ज्यों-ज्यों होली के दिन नजदीक आ रहे है इन दुकानों पर खरीदारों की भीड़ भी बढ़ती जा रही है। व्यापारियों ने ग्राहकों की मांग को ध्यान में रखते हुए खुशबू वाली गुलाल मंगाई है। साथ ही दुकानों काे मुखौटों और पिचकारियों से सजा रखा है। होली को दो दिन ही शेष है इसलिए दुकानों पर खरीददारों की काफी भीड़ भी है।
होली को देखते हुए बाजारों में विभिन्न प्रकार की पिचकारियां उपलब्ध है। व्यापारियों ने बताया कि बदलते दौर के अनुसार लोग भिन्न भिन्न प्रकार की पिचकारियां पसंद कर रहे हैं। अधिकांश बच्चे गणेश, डोरी मोन, टेंक, बंदूक, पिकाचू, भीम, डोरी मोन की पिचकारियां पसंद कर रहे हैं। वहीं छोटी लड़कियां बॉर्बी डोल, बर्ड, डक और शोल्डर टेंक की पिचकारियां अधिक पसंद कर रही है। साथ ही बाजार में एक से बढ़ कर एक मुखौटा लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।
घटी पक्के रंगों की मांग
व्यापारियों के अनुसार साल दर साल पक्के रंग की मांग कम होती जा रही है। इस बार तो इनकी मांग पिछले साल से आधी रह गई है। सभी लोग त्वचा को लेकर जागरूक हो गए हैं। अब तो गांव में भी यह नहीं बिक रहा है। बिक्री कम होने का कारण माल भी कम मंगवाया जा रहा है।
रिपोर्ट अखिलेश झारिया
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