नदियाँ केवल जलधाराएँ नहीं हैं, बल्कि वे एक पूरी सभ्यता, संस्कृति और जीवन की धरोहर हैं। जिस प्रकार हमारी नसों में रक्त बहता है और हमें जीवित रखता है, उसी प्रकार नदियाँ धरती की नसों में प्रवाहित होकर जीवन को पोषित करती हैं। भारत में नदियों को माता का दर्जा दिया गया है और वे अनादि काल से हमारी आस्था, कृषि, व्यापार और जीविका का आधार रही हैं। परंतु आधुनिक विकास, बढ़ता प्रदूषण, अंधाधुंध खनन और बांधों के निर्माण के कारण नदियाँ संकट में हैं। आज आवश्यकता है कि हम इन्हें बहने दें, इन्हें पुनर्जीवित करें और अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखें।
नदियों का उद्गम: जीवन का प्रारंभ
नदियों का जन्म विभिन्न स्रोतों से होता है। कुछ नदियाँ पहाड़ों में बर्फ पिघलने से जन्म लेती हैं, तो कुछ झरनों, झीलों और भूजल स्रोतों से निकलती हैं। हिमालय से निकलने वाली गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ ग्लेशियरों से जन्म लेती हैं, जबकि गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और नर्मदा जैसी नदियाँ पठारी और पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित जलस्रोतों से निकलती हैं।
नदी का उद्गम स्थल पवित्र और निर्मल होता है। यहाँ पानी शुद्ध, ठंडा और जीवनदायी होता है। पहाड़ों से गिरती जलधारा तेज प्रवाह के साथ नीचे की ओर बढ़ती है और रास्ते में छोटे-छोटे स्रोतों से मिलकर बड़ी नदी का रूप ले लेती है।
नदी की यात्रा: पहाड़ों से मैदानों तक
जब नदी पहाड़ों से उतरकर समतल भूमि पर आती है, तो उसका वेग धीमा पड़ने लगता है। यह अपने साथ मिट्टी, खनिज और पोषक तत्व लाकर मैदानी इलाकों को उपजाऊ बनाती है। गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों की वजह से गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा दुनिया के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक बन चुका है।
नदी केवल पानी का प्रवाह नहीं है, बल्कि यह अपने साथ एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को भी समेटे रहती है। इसके किनारे बसे जंगल, इसमें रहने वाले जीव-जंतु, इसमें पलने वाली मछलियाँ और इसके पानी पर निर्भर रहने वाले करोड़ों लोग इसके अस्तित्व से जुड़े होते हैं।
नदियों पर बढ़ता प्रदूषण: संकट की पहली घंटी
कभी जो नदियाँ शुद्ध जल की धाराएँ थीं, वे आज प्रदूषण की शिकार हो चुकी हैं। औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू कचरा, कृषि में प्रयुक्त रसायन, प्लास्टिक और धार्मिक कचरे ने नदियों को विषैली बना दिया है। गंगा, जिसे हम माँ मानते हैं, उसमें हर दिन हजारों टन कचरा और सीवेज डाला जाता है।
शहरों के बढ़ते विस्तार ने नदियों के किनारों पर अतिक्रमण कर लिया है, जिससे इनका प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है। नालों और सीवर का पानी सीधा नदियों में बहाया जा रहा है, जिससे इसका पानी जहरीला हो चुका है। आज स्थिति यह है कि कई नदियों का पानी पीने योग्य तो दूर, नहाने लायक भी नहीं बचा है।
बांध और बैराज: नदियों के बहाव को रोकने वाली दीवारें
नदियों पर बनाए जा रहे बड़े-बड़े बांध और बैराज इनके प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर रहे हैं। जहां एक ओर ये बांध जल आपूर्ति और बिजली उत्पादन में सहायक होते हैं, वहीं दूसरी ओर ये नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।
बांधों के कारण नदियों का पानी रुक जाता है, जिससे नदी के प्रवाह में कमी आ जाती है और इसका असर उस पर निर्भर जीवों और लोगों पर पड़ता है। मछलियाँ प्रवास नहीं कर पातीं, जिससे उनका प्रजनन चक्र बाधित होता है। साथ ही, पानी के ठहराव के कारण उसमें गाद जमा होने लगती है, जिससे नदी धीरे-धीरे उथली होती जाती है।
नदी में हो रहा रेत खनन: एक और गंभीर संकट
नदी के किनारों और तल से अवैध रूप से रेत निकालने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। निर्माण कार्यों में रेत की भारी मांग के कारण बड़ी-बड़ी मशीनों से नदियों से रेत निकाली जा रही है। इससे नदी की धारा में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है और जलस्तर गिर रहा है।
रेत नदी की एक प्राकृतिक ढाल होती है, जो इसकी धाराओं को संतुलित रखती है। जब अत्यधिक मात्रा में रेत निकाली जाती है, तो इससे नदी की धारा गहरी और अस्थिर हो जाती है। कई नदियों में इस कारण कटाव और बाढ़ की समस्या बढ़ गई है।
नदी का अंतिम पड़ाव: समुद्र में मिलन
हर नदी का अंतिम लक्ष्य समुद्र में मिलना होता है। समुद्र में मिलने के दौरान नदी अपने साथ हजारों किलोमीटर की यात्रा की यादें समेटे हुए जाती है। यह अपने साथ उपजाऊ मिट्टी, खनिज और पोषक तत्व समुद्र तक ले जाती है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संजीवनी मिलती है।
लेकिन वर्तमान में कई नदियाँ समुद्र तक पहुँच ही नहीं पा रही हैं। अत्यधिक जल दोहन, बांधों का निर्माण और प्रदूषण ने कई नदियों को सूखने की कगार पर पहुँचा दिया है। कई नदियाँ अपनी यात्रा पूरी करने से पहले ही दम तोड़ रही हैं।
क्या करें ताकि नदियाँ बहती रहें?
1. प्रदूषण पर नियंत्रण: उद्योगों और शहरों के कचरे को सीधे नदी में गिरने से रोकने के लिए ठोस प्रबंधन आवश्यक है। जल शुद्धिकरण संयंत्रों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
2. अवैध रेत खनन पर रोक: सरकार को कड़े कानून बनाकर अवैध रेत खनन पर रोक लगानी चाहिए। साथ ही, प्राकृतिक रूप से रेत को पुनः भरने का मौका देना चाहिए।
3. बांधों का संतुलित उपयोग: जरूरत से ज्यादा बांधों के निर्माण से बचना चाहिए और पुराने बांधों के जलप्रबंधन में सुधार लाना चाहिए।
4. जन-जागरूकता: लोगों को नदियों की महत्ता के बारे में जागरूक करना होगा ताकि वे स्वयं आगे आकर नदियों को बचाने में योगदान दें।
5. वृक्षारोपण: नदियों के किनारे वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे भूमि कटाव रुके और जल धारण क्षमता बढ़े।
नदियों को बहने दो, जीवन को बचने दो
नदियाँ हमारी धरोहर हैं, हमारी सभ्यता की जननी हैं। यदि हम इन्हें नहीं बचा सके, तो हमारा अपना अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। हमें यह समझना होगा कि विकास जरूरी है, लेकिन वह प्रकृति की कीमत पर नहीं होना चाहिए। यदि हम नदियों को बहने देंगे, तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित रहेगा। हमें मिलकर यह प्रण लेना होगा कि हम नदियों को प्रदूषित नहीं करेंगे, इनके प्रवाह को नहीं रोकेंगे और इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। क्योंकि जब तक नदियाँ बहेंगी, तब तक जीवन भी बहता रहेगा।
नदियों को बहने दो, जीवन को बचने दो
नदियाँ हमारी धरोहर हैं, हमारी सभ्यता की जननी हैं। यदि हम इन्हें नहीं बचा सके, तो हमारा अपना अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। हमें यह समझना होगा कि विकास जरूरी है, लेकिन वह प्रकृति की कीमत पर नहीं होना चाहिए। यदि हम नदियों को बहने देंगे, तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित रहेगा। हमें मिलकर यह प्रण लेना होगा कि हम नदियों को प्रदूषित नहीं करेंगे, इनके प्रवाह को नहीं रोकेंगे और इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। क्योंकि जब तक नदियाँ बहेंगी, तब तक जीवन भी बहता रहेगा।
( राजीव खरे ब्यूरो चीफ छत्तीसगढ़)
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