इंदौर मध्य प्रदेश
श्री नवपाद ओलीजी के सातवें दिन मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने सातवें सम्यग्ज्ञान के विषय पर प्रवचन दिया। सम्यग्ज्ञान अज्ञान रूपी अंधेरा दूर करता है। जिस प्रकार से घर में प्रवेश के पहले प्रकाश करना पड़ता है उसी प्रकार जीवन के शुद्धिकरण के पहले ज्ञान रूपी प्रकाश की आवश्यकता होती है। ज्ञान बिना अंधकार है। जैसे अंधकार में सब कुछ समान दिखाई देता है, जो ढूंढो वह नहीं मिलता, दूसरा बहुत कुछ हाथ में आता है, भ्रमणा होती है, ठोकर लगती है, नहीं चाहिए वह वस्तु हाथ में आ जाती है, खड्डे में गिरना होता है, गलत दिशा में जाना होता है और सही दिशा में भी गलत रास्ते की ओर जाना होता है…. उसी प्रकार सम्यग्ज्ञान बिना सज्जन- दुर्जन, खाद्य-अखाद्य, कर्तव्य अकर्तव्य का विवेक भेद नहीं रहता, धन-साधन मिलते है लेकिन जो सुख-आनंद चाहिए वह नहीं मिलता, भयंकर भ्रमणा होती है। ज्ञान के पाँच मुख्य भेद हैं।
1. मतीज्ञान – चिंतन, मनन, विचार आदि मतीज्ञान हैं। इसमें पिछले आठ भवों का जाति स्मरण ज्ञान भी आता है।
2. श्रुतज्ञान – परमात्मा एवं गुरु भगवंत की वाणी का श्रवण श्रुतज्ञान की श्रेणी में आता है।
3. अवधिज्ञान – पिछले असंख्य भवों का स्मरण होना अवधिज्ञान है। इसके अनेक प्रकार हैं एवं यह ज्ञान घटता एवं बड़ता है। यह ज्ञान तीर्थंकर परमात्मा के पास तो होता ही है एवं सभी जीवों को हो सकता है।
4. मनःपर्यय ज्ञान – ऐसा ज्ञान जिससे मन की बात जानी जा सके वह मनः पर्यय ज्ञान होता है। यह ज्ञान केवल साधु भगवंतों को ही प्राप्त होता है।
5. केवलज्ञान – सभी प्रकार के ज्ञान का समावेश केवलज्ञान में होता है। जिसको केवलज्ञान हो जाता है उसका उसी भव में मोक्ष निश्चित है।
वर्तमान काल में विशिष्ट ज्ञान लुप्त हो गये है। सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान के बिना हमारा जीवन शून्य समान है, क्योंकि शून्य बिना अन्य अंक (1 से 9 तक) के कोई भी मूल्य नहीं रखता है ठीक इसी प्रकार (दर्शन व ज्ञान) के बिना जीवन का कुछ भी मूल्य नहीं है। सम्यग्ज्ञान का आराधक दृढ सम्यक्त्व पाता है, सच्चा चारित्र पालता है, मोक्ष की ओर शीघ्र गति करता है और बीच के भवों में भी श्रेष्ठ स्मरणशक्ति, समझशक्ति, योग्य निर्णयशक्ति, समझाने की शक्ति, सूक्ष्म पदार्थचिंतन शक्ति, व्याख्यान शक्ति, काव्यशक्ति, स्वर शक्ति वगैरह भी भरपूर पाता है। राजेश जैन युवा ने बताया की
सम्यग्ज्ञान पाने के लिये प्रतिदिन कम से कम एक श्लोक/सूत्र अवश्य याद करना चाहिए। ज्ञानी की सम्मान, सेवा करना भी ज्ञान की आराधना है। ज्ञान की आशातना-विराधना से बचते चलें। लिखे हुए वस्त्र कभी न पहने, भोजन के समय वार्तालाप न करें, नोट गिनते समय थूक न लगाएं, मोबाईल आदि शौचालय में लेकर न जाएँ, लिखे हुए कागज का उपयोग भोजन आदि में न करें। ज्ञान से आत्मा का स्वभाव प्रकट होता है एवं ज्ञान मग्न जीव को अनंत आनंद की प्राप्ति होती है। हमेशा हितकारी, मीठे एवं प्रिय वचन बोलना चाहिए। सम्यग्ज्ञान अमृत के समान है एवं इसका वर्ण श्वेत है।
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘ज्ञान का जिसने नहीं किया सम्मान उससे दूर है भगवान”
रिपोर्ट अनिल भंडारी
Leave a comment